अनुच्छेद 35A और अनुच्छेद 370, 371 तथा इंस्ट्रूमेंट ऑफ एक्सेशन
संदर्भ :
केंद्र सरकार ने एक ऐतिहासिक फैसला लेते हुए मे जम्मू-कश्मीर राज्य से संविधान का अनुच्छेद 370 हटाने और राज्य का विभाजन दो केंद्रशासित क्षेत्रों- जम्मू-कश्मीर एवं लद्दाख के रूप में करने का प्रस्ताव किया। इस संदर्भ में संसद ने जम्मू-कश्मीर पुनर्गठन विधेयक 2019 पारित कर दिया है। यह विधेयक पहले राज्यसभा में और उसके बाद लोकसभा में पारित हुआ। यह विधेयक जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 के अधिकतर प्रावधान समाप्त करने, जम्मू कश्मीर को विधायिका वाला केंद्रशासित क्षेत्र और लद्दाख को बिना विधायिका वाला केंद्रशासित क्षेत्र बनाने का प्रावधान करता है। अब राज्य में अनुच्छेद 370 (1) ही लागू रहेगा, जो संसद द्वारा जम्मू-कश्मीर के लिये कानून बनाने से संबंधित है।
प्रधानमंत्री की अध्यक्षता में केंद्रीय मंत्रिमंडल ने संविधान (जम्मू और कश्मीर में लागू) संशोधन आदेश, 2019 [Constitution (Application to Jammu & Kashmir) Amendment Order, 2019] को मंज़ूरी दी गई थीं।
राष्ट्रपति द्वारा अनुच्छेद 370 की धारा (1) के अंतर्गत संविधान (जम्मू और कश्मीर में लागू) संशोधन आदेश, 2019 जारी किये जाने के बाद संविधान (77वाँ संशोधन) अधिनियम, 1995 तथा संविधान (103वाँ संशोधन) अधिनियम, 2019 के माध्यम से भारतीय संविधान के संशोधित तथा प्रासंगिक प्रावधान लागू होंगे।
अनुच्छेद 370 :
- 17 अक्तूबर, 1949 को संविधान में शामिल, अनुच्छेद 370 भारतीय संविधान से जम्मू-कश्मीर को छूट देता है (केवल अनुच्छेद 1 और अनुच्छेद 370 को छोड़कर) और राज्य को अपने संविधान का मसौदा तैयार करने की अनुमति देता है।
- यह तब तक के लिये एक अंतरिम व्यवस्था मानी गई थी, जब तक कि सभी हितधारकों को शामिल करके कश्मीर मुद्दे का अंतिम समाधान हासिल नहीं कर लिया जाता।
- यह राज्य को स्वायत्तता प्रदान करता है और इसे अपने स्थायी निवासियों को कुछ विशेषाधिकार देने की अनुमति देता है।
- राज्य की सहमति के बिना आंतरिक अशांति के आधार पर राज्य में आपातकालीन प्रावधान पर लागू नहीं होते हैं|
- राज्य का नाम और सीमाओं को इसकी विधायिका की सहमति के बिना बदला नहीं जा सकता है।
- राज्य का अपना अलग संविधान, एक अलग ध्वज और एक अलग दंड संहिता (रणबीर दंड संहिता) है।
- राज्य विधानसभा की अवधि छह साल है, जबकि अन्य राज्यों में यह अवधि पाँच साल है।
- भारतीय संसद केवल रक्षा, विदेश और संचार के मामलों में जम्मू-कश्मीर के संबंध में कानून पारित कर सकती है। संघ द्वारा बनाया गया कोई अन्य कानून केवल राष्ट्रपति के आदेश से जम्मू-कश्मीर में तभी लागू होगा जब राज्य विधानसभा की सहमति हो।
- राष्ट्रपति, लोक अधिसूचना द्वारा घोषणा कर सकते हैं कि इस अनुच्छेद को तब तक कार्यान्वित नहीं किया जा सकेगा, जब तक कि राज्य विधानसभा इसकी सिफारिश नहीं कर देती है|
- जम्मू-कश्मीर भारतीय संघ का एक संवैधानिक राज्य है और इसे भारत के संविधान के भाग-प् तथा अनुसूची 1 में रखा गया है। किंतु इसका नाम, क्षेत्रफल या सीमा को केंद्र द्वारा बिना इसके विधान सभा की सहमति से नहीं बदला जा सकता है।
- जम्मू-कश्मीर राज्य का अपना संविधान है, तथा इसी संविधान द्वारा इस पर प्रशासन चलाया जाता है। अतः भारत के संविधान का भाग-टप् (राज्य सरकार से संबंधित) इस राज्य पर लागू नहीं है। इस भाग के अंतर्गत राज्य की परिभाषा में जम्मू एवं कश्मीर शामिल नहीं है।
- संसद राज्य के संबंध में संघ सूची में उल्लिखित विषयों पर और समवर्ती सूची में उल्लिखित विषयों पर विधि बना सकती है। परंतु अवशेषीय शक्तियाँ राज्य विधानमंडल के पास हैं सिवाय आतंकवादी कृत्यों में संलिप्त को संरक्षण, भारत के राज्यक्षेत्र की अखण्डता और संप्रभुता पर प्रश्न या विघटन करने वाले मामले, राष्ट्रीय झण्डे, राष्ट्रगान और भारत के संविधान का सम्मान न करना।
- भाग-VI (राज्य नीति के निदेशक तत्वों से संबंधित) तथा भाग-IV क (मूल कर्तव्यों से संबंधित) राज्य पर लागू नहीं होते। हिन्दू विवाह (1955), सूचना का अधिकार अधिनियम (2005) एवं अनुसूचित जाति-जनजाति अधिनियम (1989) लागू नहीं होते।
- भाग-III (मूल अधिकारों से संबंधित) कुछ अपवादों एवं शर्तों के साथ राज्य पर लागू हैं। राज्य में संपत्ति मूल अधिकार की श्रेणी में आता है।
- आंतरिक असंतुलन की स्थिति में घोषित आपातकाल राज्य के विधानमंडल की सहमति के बिना नहीं लागू होगी।
- राष्ट्रपति को राज्य के संबंध में वित्तीय आपातकाल (अनुच्छेद 360) की घोषणा करने का अधिकार नहीं है।
- राष्ट्रपति राज्य के संविधान को उसके दिए निर्देशों (अनुच्छेद 365) को न मानने की स्थिति में विघटित नहीं कर सकता।
- राज्य आपातकाल (राष्ट्रपति शासन) राज्य पर लागू है। फिर भी, यह आपातकाल राज्य पर संवैधानिक तंत्र के (राज्य संविधान के न कि भारतीय संविधान के) विफल होने पर लागू हो सकता है। वास्तव में राज्य में दो तरीके से आपातकाल घोषित हो सकता है, जिनमें प्रथम भारतीय संविधान के अंतर्गत राष्ट्रपति शासन (अनुच्छेद-35A6) तथा दूसरा राज्य संविधान के अंतर्गत राज्यपाल शासन (धारा 92) है। 1986 में प्रथम बार राज्य में राष्ट्रपति शासन लगा था।
- राज्य के किसी क्षेत्र को प्रभावित करने वाली अंतर्राष्ट्रीय संधि या सहमति को केंद्र, जम्मू-कश्मीर राज्य विधानमण्डल की सहमति के बिना प्रभावी नहीं कर सकता।
- भारत के संविधान में किसी प्रकार का संशोधन राज्य पर लागू नहीं होता, जब तक कि यह राष्ट्रपति के आदेश द्वारा विस्तारित न हो जाए।
- राजभाषा उपबंध राज्य पर प्रयोज्य है, जहां तक की संघ की राजभाषा, अंतर राज्य राजभाषा और केंद्र राज्य संचार और उच्चतम न्यायालय की कार्यवाहियों की भाषा का संबंध है।
- 5वीं अनुसूची (अनुसूचित क्षेत्रें एवं अनुसूचित जनजातीय पर प्रशासन एवं नियंत्रण से संबंधित) तथा 6ठी अनुसूची (जनजातीय क्षेत्र के प्रशासन से संबंधित) इस राज्य पर लागू नहीं होती।
- उच्चतम न्यायालय के विशेष अधिकार, चुनाव आयोग, नियंत्रक एवं महालेखापरीक्षक का अधिकार क्षेत्र राज्य पर लागू है।
- जम्मू-कश्मीर के उच्च न्यायालय को वे सभी शक्तियाँ प्राप्त होंगी जो अन्य राज्यों के उच्च न्यायालयों को प्राप्त हैं, सिवाय इसके कि वह ‘अन्य प्रयोजन’ के लिए रिट जारी नहीं कर सकता। उच्चतम न्यायालय की अधिकारिता (केवल अनुच्छेद 135 और 139 को छोड़कर) उस राज्य पर है।
- अनुच्छेद 22 के अन्तर्गत निवारक एवं निरोधक अधिकार अधिनियम बनाने का अधिकार केवल राज्य विधान सभा को दिया गया है। सामान्य रूप से यह केन्द्र का अधिकार है।
- पाकिस्तान जाने वालों को नागरिक अधिकार के निषेध संबंधी भाग-II का प्रावधान जम्मू कश्मीर में स्थायी रूप से रहने वाले उन लोगों पर लागू नहीं होता जो पाकिस्तान जाकर पुनः राज्य में विस्थापित हुए हैं। ऐसे सभी व्यक्तियों को भारत का नागरिक माना जाता है।
कैसे लागू हुआ अनुच्छेद 370? :
जम्मू-कश्मीर सरकार ने इसका मूल मसौदा पेश किया। संशोधन व विचार-विमर्श के बाद 27 मई, 1949 को संविधान सभा में अनुच्छेद 306ए (अब 370) पारित हुआ। 17 अक्तूबर, 1949 को अनुच्छेद 370 भारतीय संविधान का हिस्सा बन गया।
स्थायी या अस्थायी का विवाद :
इस अनुच्छेद को संविधान में शीर्षक में ‘टेम्परेरी’ शब्द का इस्तेमाल करते हुए शामिल किया गया था। इसे इस रूप में भी अस्थायी माना जा सकता है कि जम्मू-कश्मीर संविधान सभा को इसे बदलने, हटाने या रखने का अधिकार था। संविधान सभा ने इसे लागू रखने का फैसला किया। इसके अलावा यह तब तक के लिये एक अंतरिम व्यवस्था मानी गई थी, जब तक कि सभी हितधारकों को शामिल करके कश्मीर मुद्दे का अंतिम समाधान नहीं निकल आता।
अनुच्छेद 35A :
- अनुच्छेद 35A, जो कि अनुच्छेद 370 का विस्तार है, राज्य के स्थायी निवासियों को परिभाषित करने के लिये जम्मू-कश्मीर राज्य की विधायिका को शक्ति प्रदान करता है और उन स्थायी निवासियों को विशेषाधिकार प्रदान करता है तथा राज्य में अन्य राज्यों के निवासियों को कार्य करने या संपत्ति के स्वामित्व की अनुमति नहीं देता है।
- इस अनुच्छेद का उद्देश्य जम्मू-कश्मीर की जनसांख्यिकीय संरचना की रक्षा करना था।
- अनुच्छेद 35A की संवैधानिकता पर इस आधार पर बहस की जाती है कि इसे संशोधन प्रक्रिया के माध्यम से नहीं जोड़ा गया था। हालाँकि, इसी तरह के प्रावधानों का इस्तेमाल अन्य राज्यों के विशेष अधिकारों को बढ़ाने के लिये भी किया जाता रहा है।
दिल्ली समझौता और अनुच्छेद 35A :
अनुच्छेद 370 के समाप्त होने से अनुच्छेद 35A स्वत: अमान्य हो गया है। इस तरह भूमि, कारोबार और रोज़गार पर वहाँ के लोगों के विशेषाधिकार भी खत्म हो जाएंगे। अनुच्छेद 35A, जो कि अनुच्छेद 370 का विस्तार है, राज्य के स्थायी निवासियों को परिभाषित करने के लिये जम्मू-कश्मीर राज्य की विधायिका को शक्ति प्रदान करता है और वहाँ के स्थायी निवासियों को विशेषाधिकार प्रदान करता है तथा राज्य में अन्य राज्यों के निवासियों को कार्य करने या संपत्ति के स्वामित्व की अनुमति नहीं देता। इस अनुच्छेद का उद्देश्य जम्मू-कश्मीर की जनसांख्यिकीय संरचना की रक्षा करना था।
दरअसल, जम्मू-कश्मीर के भारत में शामिल होने के बाद शेख अब्दुल्ला वहाँ के अंतरिम प्रधानमंत्री बने। वर्ष 1952 में जम्मू-कश्मीर के प्रधानमंत्री शेख अब्दुल्ला और भारत के प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू के बीच एक समझौता हुआ, जिसे दिल्ली समझौता कहा जाता है। इस दिल्ली समझौते के तहत संविधान की धारा 370(1)(D) के तहत भारत के राष्ट्रपति को जम्मू-कश्मीर के ‘राज्य विषयों’ के लिये संविधान में ‘अपवाद और संशोधन’ करने का अधिकार मिला हुआ था। इसका इस्तेमाल करते हुए राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद ने 14 मई, 1954 को एक आदेश के ज़रिये धारा 35A को लागू किया था।
अनुच्छेद 35A की संवैधानिकता को लेकर इस आधार पर बहस की जाती रही है कि इसे संशोधन प्रक्रिया के माध्यम से नहीं जोड़ा गया था। हालाँकि इसी तरह के प्रावधानों का इस्तेमाल अन्य राज्यों के विशेष अधिकारों को बढ़ाने के लिये भी किया जाता रहा है।
अनुच्छेद-35A को हटाने और 370 को अप्रभावी करने के विपक्ष में तर्क
- विधि विशेषज्ञों का कहना है कि ‘संविधान सभा’ को विधान सभा के समतुल्य नहीं माना जा सकता है, जैसा कि सरकार ने किया है। यह तर्कसंगत नहीं है।
- साथ ही उनका कहना है कि सरकार ने खुद ही सहमति ले ली है क्योंकि राज्यपाल तो केन्द्र के ही प्रतिनिधि होते हैं, ना कि वहाँ की जनता के।
- इस कदम से कश्मीर के युवाओं में उग्रवाद एवं अलगाववाद की भावना और पनपेगी।
- आज के परिप्रेक्ष्य में अनुच्छेद 370 के द्वारा दी गयी ‘विशेष दर्जे’ को काफी हद तक मन्द (Dilute) किया गया है, क्योंकि संविधान के कुल अनुच्छेद 395 में से लगभग 260 अनुच्छेद, कुल 12 अनुसूचियों में से 7 अनुसूचियाँ और संघ सूची (97 विषय) में से 94 विषय वहाँ पर लागू होते हैं। वहीं विधि विशेषज्ञों का कहना है कि जब इस हद तक अनुच्छेद 370 को मन्द किया जा चुका है, तो सरकार को चाहिए था कि एकाएक अनुच्छेद 370 को अप्रभावी करने के बजाय अगर धीरे-धीरे अनुच्छेद 370 को मंद किया जाता तो यह एक बेहतर तरीका साबित हो सकता था।
नहीं चलेगी रणबीर दंड संहिता :
- कानूनी मामलों में अदालतें भारतीय दंड संहिता (Indian Penal Code-IPC) के तहत कार्रवाई करती हैं, लेकिन जम्मू-कश्मीर को मिले विशेष दर्जे की वज़ह से वहाँ भारतीय दंड संहिता लागू नहीं होती थी।
- वहाँ इसके बजाय रणबीर दंड संहिता (Ranbir Penal Code) का इस्तेमाल होता था। इसे रणबीर आचार संहिता भी कहा जाता है।
- भारतीय संविधान के अनुच्छेद 370 के मुताबिक जम्मू-कश्मीर में भारतीय दंड संहिता का इस्तेमाल नहीं किया जा सकता था। राज्य में केवल रणबीर दंड संहिता का प्रयोग होता था, जो ब्रिटिश काल से इस राज्य में लागू थी।
- भारत के आज़ाद होने से पहले जम्मू-कश्मीर एक स्वतंत्र रियासत था और उस समय वहाँ डोगरा राजवंश का शासन था। महाराजा रणबीर सिंह जम्मू-कश्मीर के शासक थे; इसलिये 1932 में उन्हीं के नाम पर रणबीर दंड संहिता लागू की गई थी।
अब चर्चा अनुच्छेद 371 की :
जम्मू-कश्मीर को विशेष दर्जा देने वाले अनुच्छेद 370 को समाप्त किये जाने के साथ अनुच्छेद 371 भी अचानक चर्चा में आ गया है, जो अन्य राज्यों, विशेषकर पूर्वोत्तर के राज्यों को विशेष दर्जा प्रदान करता है। जिन राज्यों के लिये अनुच्छेद 371 के तहत विशेष प्रावधान किये गए हैं, उनमें से अधिकतर राज्य पूर्वोत्तर के हैं और विशेष दर्जा उनकी जनजातीय संस्कृति को संरक्षण प्रदान करने पर केंद्रित है।
- अनुच्छेद 371(A) में यह प्रावधान है कि नागालैंड के मामले में नगाओं की धार्मिक या सामाजिक परंपराओं, इसके पारंपरिक कानून और प्रक्रिया, नगा परंपरा कानून के अनुसार फैसलों से जुड़े दीवानी और फौज़दारी न्याय प्रशासन और भूमि तथा संसाधनों के स्वामित्व और हस्तांतरण के संदर्भ में संसद की कोई भी कार्यवाही लागू नहीं होगी। यह तभी लागू होगी जब राज्य विधानसभा इसे लागू करने के लिये प्रस्ताव पारित करे। अनुच्छेद 371(A) कहता है कि राज्य में भूमि और संसाधन सरकार के नहीं, बल्कि लोगों के हैं। इसी वज़ह से कई भूस्वामी अपनी ज़मीन पर सरकार को कोई भी विकास कार्य करने की अनुमति नहीं देते।
- अनुच्छेद 371(G), भी इसी तरह का है जो मिज़ोरम के लिये विशेष प्रावधान करता है। इसमें यह उल्लेख है कि मिज़ो लोगों की धार्मिक या सामाजिक परंपराओं, इसके पारंपरिक कानून और प्रक्रिया, मिज़ो परंपरा कानून के अनुसार फैसलों से जुड़े दीवानी और फौजदारी न्याय प्रशासन और भूमि तथा संसाधनों के स्वामित्व और हस्तांतरण के संदर्भ में संसद की कोई भी कार्यवाही तब तक लागू नहीं होगी जब तक कि राज्य विधानसभा इसे लागू करने के लिये प्रस्ताव पारित न करे।
- अनुच्छेद 371(B), असम के लिये विशेष प्रावधान करता है। इस अनुच्छेद को लाने का मुख्य उद्देश्य उप-राज्य मेघालय का गठन करना था।
- अनुच्छेद 371(C), 1972 में अस्तित्व में आए मणिपुर को विशेष प्रावधान उपलब्ध कराता है।
- अनुच्छेद 371(F), 371(H) क्रमश: सिक्किम और अरुणाचल प्रदेश को विशेष प्रावधान उपलब्ध कराते हैं। अनुच्छेद 371 राष्ट्रपति को महाराष्ट्र के विदर्भ और मराठवाड़ा क्षेत्रों और शेष राज्य तथा गुजरात के सौराष्ट्र, कच्छ और शेष राज्य के लिये अलग विकास बोर्डों के गठन की शक्ति प्रदान करता है।
- अनुच्छेद 371(D), अनुच्छेद 371(E), अनुच्छेद 371 (J), अनुच्छेद 371(I) क्रमश: आंध्र प्रदेश, कर्नाटक और गोवा को विभिन्न विशेष प्रावधान उपलब्ध कराते हैं।
इंस्ट्रूमेंट ऑफ एक्सेशन (IOA) :
विलय का प्रारूप (Instrument of Accession-IOA) इसलिये बनाया गया था क्योंकि भारत के दो हिस्से किये जा रहे थे- एक का नाम भारत और दूसरे का नाम पाकिस्तान, अतः ऐसे में विलय पत्र का होना ज़रूरी था। विलय प्रारूप बनाकर 25 जुलाई, 1947 को गवर्नर जनरल माउंटबेटन की अध्यक्षता में सभी रियासतों को बुलाया गया। इन सभी रियासतों को बताया गया कि आपको अपना विलय करना है, चाहे हिंदुस्तान में करें या पाकिस्तान में, यह उनका निर्णय है। यह विलय पत्र सभी रियासतों के लिये एक ही फॉर्मेट में बनाया गया था जिसमें कुछ भी लिखना या काटना संभव नहीं था। इस विलय पत्र पर रियासतों के प्रमुख राजा या नवाब को अपना नाम, पता, रियासत का नाम और सील लगाकर उस पर हस्ताक्षर करके गवर्नर जनरल को देना था, जिसे यह निर्णय लेना था कि कौन सी रियासत किस देश के साथ रह सकती है।
26 अक्तूबर,1947 को महाराजा हरि सिंह द्वारा दस्तखत किये गए संधि-पत्र को भी इंस्ट्रूमेंट ऑफ एक्सेशन कहा जाता है। इंस्ट्रूमेंट ऑफ एक्सेशन भारतीय स्वतंत्रता अधिनियम, 1947 के ज़रिये अमल में आया था। दरअसल कश्मीर के महाराजा हरि सिंह ने शुरू में स्वतंत्र रहने का फैसला किया था, लेकिन पाकिस्तान के कबायली आक्रमण के बाद उन्होंने भारत से मदद मांगी तथा कश्मीर को भारत में शामिल करने पर रज़ामंदी जताई। गौरतलब है कि महाराजा हरि सिंह ने 26 अक्तूबर, 1947 को इंस्ट्रूमेंट ऑफ एक्सेशन पर हस्ताक्षर किये और गवर्नर जनरल लॉर्ड माउंटबेटन ने 27 अक्तूबर, 1947 को इसे स्वीकार कर लिया। इसमें न कोई शर्त शामिल थी और न ही रियासत के लिये विशेष दर्जे जैसी कोई मांग। इस वैधानिक दस्तावेज़ पर दस्तखत होते ही समूचा जम्मू और कश्मीर, जिसमें पाकिस्तान के अवैध कब्ज़े वाला इलाका (POK) भी शामिल है, भारत का अभिन्न अंग बन गया।
इस अधिनियम के ज़रिये ब्रिटिश साम्राज्य का भारत और पाकिस्तान में बँटवारा हुआ और भारत एक स्वतंत्र देश बना। तब करीब 600 रियासतों की आज़ादी बहाल रखी गई थी। इस अधिनियम में तीन विकल्प दिये गए थे- आज़ाद देश बने रहें, भारत में मिल जाएँ या पाकिस्तान में शामिल हो जाएँ। रियासतों के भारत या पाकिस्तान में विलय का आधार इंस्ट्रूमेंट ऑफ एक्सेशन को बनाया गया था। इसके लिये कोई तय रूपरेखा नहीं थी। इसलिये यह रियासतों पर निर्भर था कि वे किन शर्तों पर भारत या पाकिस्तान में शामिल होती हैं।
अनुच्छेद-370 के अप्रभावी होने से होने वाले परिवर्तन :
- अब जम्मू-कश्मीर में देश के अन्य राज्यों के लोग भी जमीन खरीद सकेंगे।
- जम्मू-कश्मीर का अब अलग झंडा नहीं होगा। वहां अब तिरंगा झंडा लहराएगा। जम्मू-कश्मीर में अब तिरंगे का अपमान या उसे जलाना या नुकसान पहुँचाना संगीन अपराध की श्रेणी में आएगा।
- अब वहाँ भी भारत का संविधान लागू होगा।
- जम्मू-कश्मीर में स्थानीय लोगों को जो विशेष अधिकार दिए गए हैं वे समाप्त हो जाऐंगे।
- जम्मू-कश्मीर और लद्दाख अब अलग-अलग केंद्र शासित प्रदेश होंगे। जम्मू-कश्मीर में विधानसभा होगी, लेकिन लद्दाख में विधानसभा नहीं होगी।
- अब अनुच्छेद-370 का खंड-1 केवल लागू रहेगा। शेष खंड समाप्त कर दिए गए हैं। खंड-1 भी राष्ट्रपति द्वारा लागू किया गया था। राष्ट्रपति द्वारा इसे भी हटाया जा सकता है। अनुच्छेद 370 के खंड-1 के मुताबिक जम्मू और कश्मीर की सरकार से सलाह कर राष्ट्रपति, संविधान के विभिन्न अनुच्छेदों को जम्मू और कश्मीर पर लागू कर सकते हैं।
- जम्मू-कश्मीर की लड़कियों को अब दूसरे राज्य के लोगों से भी शादी करने की स्वतंत्रता होगी। दूसरे राज्य के पुरुष से शादी करने पर उनकी नागरिकता खत्म नहीं होगी। जैसा कि अब तक होता रहा है।
- जम्मू-कश्मीर सरकार का कार्यकाल अब छह साल का नहीं, बल्कि पांच वर्ष का ही होगा।
- भारत का कोई भी नागरिक अब जम्मू-कश्मीर में सरकारी नौकरी कर सकेगा। अब तक जम्मू-कश्मीर में केवल स्थानीय लोगों को ही सरकारी नौकरी का अधिकार था।
- इस कदम से भाग-VI (राज्य नीति के निदेशक तत्वों से संबंधित) तथा भाग-VI क (मूल कर्तव्यों से संबंधित) हिन्दू विवाह (1955), सूचना का अधिकार अधिनियम (2005) एवं अनुसूचित जाति-जनजाति अधिनियम (1989) राज्य पर लागू होंगे।
- रणबीस दंड संहिता के स्थान पर भारतीय दंड संहिता प्रभावी होगी तथा नए कानून या कानूनों में बदलाव स्वतः जम्मू-कश्मीर में भी लागू हो जाएंगे।
निष्कर्ष :
राज्य में पिछले तीन-चार दशकों से जिस तरह के हालात बने हुए थे, उसे देखते हुए यह ज़रूरी भी हो गया था कि इस अनुच्छेद को ख़त्म कर दिया जाए। ऐसा करते समय जाहिर है सरकार के सामने राज्य के विकास को लेकर अपनी परिकल्पनाएं होंगी। वैसे भी यह संवेदनशील कदम काफी सोच-विचार के बाद ही उठाया गया होगा। राज्य की संवेदनशील स्थिति के मद्देनज़र किसी भी जोखिम से निपटने की रणनीति सरकार के पास होगी और इसके लिये ज़रूरी तैयारी भी उसने कर रखी होगी। लेकिन यह धारणा बनाना उचित नहीं होगा कि अनुच्छेद 370 खत्म होने से कश्मीर की समस्या रातोंरात सुलझ जाएगी। इसके अलावा इसे किसी की जीत या हार के रूप में प्रचारित करना ठीक नहीं है, क्योंकि इससे बाकी देश में भी तनाव पैदा हो सकता है। सबसे बड़ा सवाल यह है कि अनुच्छेद 370 हटाए जाने और जम्मू-कश्मीर को दो राज्यों में बाँट देने के बाद भी वहाँ अमन-चैन कायम हो पाएगा या नहीं?
सरकार को पूरे देश में धर्मनिरपेक्षता के मॉडल को सही तरीके से लागू करने की आवश्यकता है। भारत एक धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र है, इसलिए यहाँ सभी धर्मों के लोग आपस में मिलजुलकर रहते हैं, जिसकी तारीफ पश्चिमी देश भी समय-समय पर किया करते हैं।
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