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भारत की आजादी

भारत की आजादी 

पृष्ठभूमि :

भारत के ब्रिटिश शासकों ने हमेशा ही भारत में "फूट डालो और राज्य करो" की नीति का अनुसरण किया। उन्होंने भारत के नागरिकों को संप्रदाय के अनुसार अलग-अलग समूहों में बाँट कर रखा। उनकी कुछ नीतियाँ हिन्दुओं के प्रति भेदभाव करती थीं तो कुछ मुसलमानों के प्रति। 20वीं सदी आते-आते मुसलमान, हिन्दुओं के बहुमत से डरने लगे और हिन्दुओं को लगने लगा कि ब्रिटिश सरकार और भारतीय नेता मुसलमानों को विशेषाधिकार देने और हिन्दुओं के प्रति भेदभाव करने में लगे हैं। इसलिए भारत में जब आज़ादी की भावना उभरने लगी तो आज़ादी की लड़ाई को नियंत्रित करने में दोनों संप्रदायों के नेताओं में होड़ रहने लगी।

भारत को आज़ादी दिलाने के लिए बहुत से क्रांतिकारी शहीद हो गये। अगर उन्होंने अपनी कुर्बानी नहीं दी होती तो आज भी हम अंग्रेजो के गुलाम होते। गुलामी ही हमारे देश में गरीबी का कारण है, भारत का काफी समय तक शोषण हुआ जिस वजह से विकास में काफी समय लगा। कभी इस देश को सोने की चिड़िया कहा जाता था लेकिन गुलामी के बाद से लगभग सब कुछ बदल गया। लेकिन फिर भी हार ना मानते हुए आज़ादी के बाद सभी भारतीयों ने अपनी मेहनत के दम पर दुनियाभर में कामयाबी पाई है। हम सभी को गर्व होना चाहिए की हमने भारत के मिट्टी पर जन्म लिया है.

भारत कब आज़ाद हुआ था?

भारत, 15 अगस्त 1947 में आज़ाद हुआ था, आज से ठीक 72 साल पहले हमारा देश ब्रिटिश हुकूमत से आजाद हुआ। ब्रिटीशर्स ने भारत पर लगभग 200 साल तक शासन किया, ना जाने कितने लोग शहीद हुए तब जा कर भारत को आज़ादी मिली। 

भारत कैसे आज़ाद हुआ?

हम में से बहुत लोग यह सवाल भी जानना चाहते होंगे की भारत अंग्रेजो का गुलाम कैसे बना तथा किस प्रकार भारत को आज़ादी मिली। इसकी शुरुवात 1600 में ईस्ट इंडिया कंपनी की स्थापना के साथ हुई। ईस्ट इंडिया कंपनी ने भारत के मुगल बादशाह जहांगीर से इजाजत लेकर इस कंपनी का आरंभ किया। कंपनी का गठन मसाले के व्यापार के लिए किया गया था। लेकिन समय के साथ इसने कपास, रेशम, चाय, नील और अफीम का भी व्यापार शुरू कर दिया। बाद में कंपनी ने भारत के लगभग सभी क्षेत्रों पर अपना सैनिक तथा प्रशासनिक हक जमा लिया था। 

विभाजन की प्रक्रिया :

सन् 1947 का भारत विभाजन भारत के लिए अत्यंत ही दुःख पूर्ण घटना थी। सदियों तक साथ-साथ रहने के बाद भी हिन्दू और मुसलमान अपने धार्मिक मतभेदों को मिटा न सके। अंग्रेजी शासन ने इस सांप्रदायिकता की भावना को निरंतर प्रोत्साहन दिया। अंग्रेजों ने फुट डालों और शासन करो की नीति को अपनाया। भारत के विभाजन के ढांचे को '3 जून प्लान' या माउण्टबैटन योजना का नाम दिया गया। भारत और पाकिस्तान के बीच की सीमारेखा लंदन के वकील सर सिरिल रैडक्लिफ ने तय की। हिन्दू बहुमत वाले इलाके भारत में और मुस्लिम बहुमत वाले इलाके पाकिस्तान में शामिल किए गए। 18 जुलाई 1947 को ब्रिटिश संसद ने भारतीय स्वतंत्रता अधिनियम पारित किया, जिसमें विभाजन की प्रक्रिया को अंतिम रूप दिया गया। इस समय ब्रिटिश भारत में बहुत से राज्य थे, जिनके राजाओं के साथ ब्रिटिश सरकार ने तरह-तरह के समझौते कर रखे थे। इन 565 राज्यों को आज़ादी दी गयी कि वे चुनें कि वे भारत या पाकिस्तान किस में शामिल होना चाहेंगे। अधिकतर राज्यों ने बहुमत धर्म के आधार पर देश चुना। जिन राज्यों के शासकों ने बहुमत धर्म के अनुकूल देश चुना, उनके एकीकरण में काफ़ी विवाद हुआ। विभाजन के बाद पाकिस्तान को संयुक्त राष्ट्र में नए सदस्य के रूप में शामिल किया गया और भारत ने ब्रिटिश भारत की कुर्सी संभाली। 

भारत का विभाजन 

अंग्रेजों ने मुसलमानों की सहानुभूति प्राप्त करने के लिए हिन्दू और मुसलमानों मे अंतर करना प्रारंभ कर दिया। जैसे की मुसलमानों को सुरक्षा प्रदान करना, हिन्दुओं की राष्ट्रीयता की भावना के विरूद्ध उन्हे प्रयोग में लाने का प्रयत्य करना आदि। 


1947 के भारत विभाजन के प्रमुख कारण :

भारत विभाजन के मुख्य कारण इस प्रकार है -

1. मुस्लिम लीग की स्थापना एवं मुस्लिम साम्प्रदायिकता :

शिमला प्रतिनिधिमंडल के समय मुस्लिम नेताओं ने एक केन्द्रीय मुस्लिम सभा बनाने की सोची जिसका उद्देश्य केवल मुसलमानों के हित की रक्षा करना था। 30 दिसम्बर 1906 को "अखिल भारतीय मुस्लिम लीग" का गठन हुआ। मुस्लिम लीग का उद्देश्य और दृष्टिकोण साम्प्रदायिकता और हठधार्मिता का रहा। लीग का उद्देश्य विदेशी हुकूमत के प्रति राजभक्ति मे वृध्दि और राष्ट्रीय आन्दोलन के प्रवाह को रोकना था। सन् 1910 के समाप्त होते-होते मुस्लिम लीग की प्रतिक्रियावदी नीति कुछ शिथिल पड़ गई थी। मुसलमानों की नई पीढ़ी राष्ट्रीयता की ओर झुकने लगी थी, उनमे राष्ट्रीय विचारों का विकास होने लगा था। लेकिन अब्दुल कलाम आजाद, मोहम्मद अली जिन्ना, अली बिन्दुओं, अजमल खां डाॅ. अंसारी जैसे आदि मुस्लिम नेताओं ने मुस्लिम राष्ट्रवाद के उत्कर्ष करने और साम्प्रदायिकता मे महत्वपूर्ण योगदान रहा।

2 . कांग्रेस की संतुष्टीकरण की दुर्बल नीति

भारत-विभाजन और पाकिस्तान के निर्माण के लिए कांग्रेस की संतुष्टीकरण की दुर्बल नीति भी उत्तरदायी रही थी। कांग्रेस ने मुस्लिम लीग की अनुचित मांगो को भी स्वीकार कर लिया था। अनेक अवसरों पर कांग्रेस ने अपने सिद्धान्तों को तक त्याग दिया था। 1916 ई. का "लखनऊ समझौता" में की गई भूल जिसके अन्तर्गत कांग्रेस ने मुसलमानों के पृथक प्रतिनिधित्व और उनको उनकी जनसंख्या से अधिक अनुपात में व्यवस्थापिका-सभाओं मे सदस्य भेजने के अधिकार को स्वीकार करना था। इससे मुसलमानों को बढ़ावा मिला

3. साम्प्रदायिक हिंसा

खिलाफत आन्दोलन और असहयोग आंदोलन के समाप्त हो जाने के बाद साम्प्रदायिक विद्वेष की आग बढ़ने गली। सन् 1921 में मालाबार मे हुए मोपला विद्रोह ने हिन्दू-मुस्लिम साम्प्रदायिकता को चिंगारी प्रदान की।  सन् 1922 से लेकर 1927 ई. तक हिन्दू-मुस्लिम उपद्रवों ने इतना भयावह रूप धारण कर लिया कि दोनों सम्प्रदाय की एकता का अतं होने लगा। मुस्लिम लीग धीरे-धीरे प्रतिगामी नेतृत्व की अधीनता में चली गई और मुसलमानों के बीच हिन्दूराज दिखा-दिखाकर अपनी जड़े मजबूत कर प्रारंभ कर दिया।

4. पाकिस्तान की माँग

डॉ. बृजेश कुमार, श्री वास्तव की पुस्तक के अनुसार सन् 1930 में सर मुहम्मद इकबाल मुस्लिम लीग का सभापति बना उसने अपने भाषण मे कहा " मुस्लिम हितों की सुरक्षा एक पृथक राज्य की स्थापना के द्वारा ही सम्भव हो सकती हैं। इकबाल ने उन सभी मुसलमान बुध्दिजीवियों को गम्भीरता से प्रभावित किया जिन्होंने पाकिस्तान बनाये जाने की मांग की यद्यपि इकबाल ने पाकिस्तान शब्द को जन्म नहीं दिया था इस शब्द का सर्वप्रथम प्रयोग लन्दन मे कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय के एक विद्यार्थी चौधरी रहम अली और उनके तीन साथियों ने जनवरी 1933 ई. मे प्रकाशित किये गये छोटे पैम्पलेट "अब या फिर कभी नही" मे किया और दक्षिण में हैदराबाद, उत्तर-पूर्व में बंगाल और तीन मुसलमानी राज्यों को एक संघ राज्य में सम्मिलित करके उसका नाम पाकिस्तान रखने का विचार व्यक्त किया। सन् 1940 मे अपने लाहौर अधिवेशन में मुस्लिम लीग ने स्पष्टतया पाकिस्तान की माँग रखी। पाकिस्तान की पृष्ठभूमि का निर्माण पर्याप्त समय से पहले से ही हो चुका था।

ईस्ट इंडिया कंपनी ने भारतियों पर अपना अत्याचार शुरू कर दिया. भारत लगभग अपना अधिकार खो चूका था प्रशासन तथा सेना भी अंग्रेजो के हाथ में आ गयी थी। अंग्रेजो ने अपना अत्याचार जारी रखा और लोगो का शोषण करते रहे। भारत में लोग गरीबी से मर रहे थे, वही दूसरी तरफ अंग्रेज उनसे लगान वसूलने में लगी रही, इस परिस्थिति को देखते हुए क्रांतिकारी जन्म ले चुके थे और युद्ध की तैयारियां होने लगी। यह सब देखते हुए ब्रिटेन की महारानी ने ईस्ट इंडिया कंपनी से भारत पर राज करने का अधिकार वापस ले लिया। सन 1858 में ‘गवर्नमेंट ऑफ इंडिया एक्ट 1858’ पास कर दिया गया। अब ब्रिटिश क्राउन का भारत पर सीधा नियंत्रण हो गया, जिसे ब्रिटिश राज के नाम से जाना जाता है। 

ईस्ट इंडिया कंपनी ख़तम होने के बाद भारत में विकास दिखने लगा। सबसे पहले न्याय व्यवस्था स्थापित करने के लिए सुप्रीम कोर्ट का गठन किया गया। इसके बाद हावड़ा-कोलकाता से रानीगंज की 120 किमी लंबी रेल लाइन बनाने का फैसला लिया गया। इसके अलावा भारत में पोस्टल सिस्टम और टेलीग्राफी की भी शुरुआत की गई. वैसे तो इसमें अंग्रेजो का ही फायदा था लेकिन देश में विकास देखने को मिल रहा था.

1939-1945 द्वितीय विश्व युद्ध का समय था यह लगभग 6 साल चला। इस युद्ध की शुरुवात तानाशाह हिटलर द्वारा हुई जिसमे लाखों लोग मारे गये। जब 1945 में यह युद्ध समाप्त हुआ उस समय तक ब्रिटेन की आर्थिक हालात काफी दयनीय हो गयी थी। उस समय वे अपने देश पर ही शासन नहीं कर पा रहे थे तो ऐसे में भारत पर शासन करना काफी मुश्किल प्रतीत हो रहा था. उसी समय 1945 में ब्रिटिश चुनाव हुए और लेबर पार्टी की जीत हुई. इस जीत के कारण आज़ादी की रुकावट कम हो गयी। क्योंकि लेबर पार्टी ने अपने मैनिफेस्टो में भारत जैसी दूसरी इंग्लिश कॉलोनियों को भी आज़ादी देने का वादा किया था। 

यह निर्णय लिया गया की भारत को 1948 में आज़ादी दी जाएगी। लेकिन उस समय जिन्ना और नेहरू के बीच बंटवारा भी एक मुद्दा बना हुआ था। जिन्ना के अलग देश की मांग के कारण भारत के कई इलाकों में साम्प्रदायिक झगड़े शुरू हो गए थे। हालात ज्यादा ना बिगाड़ें इस कारण से लार्ड माउंटबैटन ने 1948 का इन्तेजार ना करते हुए 1947 को ही आजादी देने का फैसला किया। इस प्रकार भारत और पाकिस्तान अलग हुए तथा एक साथ दोनों कोआज़ादी मिली।

लेकिन बहुत से लोग पूछते है अगर पाकिस्तान 15 अगस्त को आज़ाद हुआ, तो पाकिस्तान में स्वतंत्रता दिवस 14 अगस्त को क्यों मनाते है। वास्तव में पाकिस्तान को अलग राष्ट्र की स्वीकृति 14 अगस्त को मिल गयी थी। इसी दिन ब्रिटिश लॉर्ड माउंटबेटेन ने पाकिस्तान को स्वत्रंत राष्ट्र का दर्जा देकर सत्ता सौंपी थी। साल 1948 में पाकिस्तान में आजादी की तारीख को 14 अगस्त कर दिया गया था। कई मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार उस दिन रमजान का 27वां दिन था। जो इस्लामी कैलेंडर के अनुसार खास और पवित्र दिन माना जाता है। 

लंबे वक्त तक अंग्रेजों के शासन में रहे भारत के लिए 20 फरवरी की तारीख बहुत अहमियत रखती है।  1947 में इसी दिन ब्रिटेन के तत्कालीन प्रधानमंत्री क्लेमेंट एटली ने भारत को 30 जून, 1948 तक ब्रिटेन की गुलामी से आजाद करने की घोषणा की थी, हालांकि, भारत 15 अगस्त, 1947 को ही स्वतंत्र हो गया। 

आजादी के समय क्रांतिकारी :

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