भारत में जनजातीय विद्रोह
पूर्वी भारत में जनजातीय विद्रोह :
मुंडा एवं हो विद्रोह :
कोल विद्रोह (1831) :
संथाल विद्रोह (1855) :
चुआर विद्रोह (1798) :
खासी विद्रोह :
पागलपंथी विद्रोह :
अहोम आदिवासी विद्रोह (1828) :
फरायजी विद्रोह (1838) :
पश्चिम भारत के प्रमुख आदिवासी विद्रोह :
भील विद्रोह (1818) :
बघेरा विद्रोह :
यह विद्रोह ओखा मंडल के बघेरा लोगों द्वारा सन 1818 से 1819 ई.तक बड़ौदा की गायकवाड राजा द्वारा किया गया, इस विद्रोह का मुख्य कारण जमीदारों द्वारा अंग्रेजों की सहायता से ज्यादा कर वसूली करना था, और 1820 ईसवी में एक सैन्य कार्यवाही द्वारा बघेरा विद्रोह का भी दमन कर दिया गया।
गडकरी विद्रोह (1844) :
महाराष्ट्र के कोल्हापुर में 1844 ईसवी में गडकरी विद्रोह हुआ इस विद्रोह का मुख्य कारण गडकरी जाति के सैनिकों का विस्थापन था इन विस्थापित सैनिकों ने अंग्रेजों का विरोध करते हुए भूदरगढ़ और समतनगर के किलो पर हमला कर दिया।
किट्टूर विद्रोह :
किट्टूर के स्थानीय शासक की विधवा रानी चेन्नमा ने किया, क्योंकि अंग्रेजों ने राजा के दत्तक पुत्र को मान्यता नहीं दी, यद्यपि ब्रिटिश सरकार ने दमनात्मक कार्यवाही द्वारा इस विद्रोह को दबा दिया यह विद्रोह 1824 से 1829 ईसवी तक चला।
कच्छ विद्रोह (1819) :
कच्छ के राजा भारमल को अंग्रेजों द्वारा शासन से बेदखल करना कच्छ विद्रोह का मुख्य कारण था, अंग्रेजों ने अल्प वयस्क पुत्र को वहां का शासक बना दिया, और भूकर में वृद्धि कर दी इसका विरोध स्वरूप भारमल और उसके समर्थकों ने 1819 में यह विद्रोह शुरू कर दिया।
सावंतवादी विद्रोह (1844) :
दक्कन में सन 1844 में मराठा सरदार फोंट सावंत और अन्ना साहब ने मिलकर अपनी महत्वाकांक्षाओं को पूरा करने के लिए ब्रिटिश सरकार के विरुद्ध एक तीव्र आन्दोलन किया, यह आन्दोलन सावंतवादी विद्रोह के नाम से जाना जाता है, ब्रिटिश सरकार ने इस विद्रोह को दमन पूर्वक कुचल दिया।
भारत के अन्य प्रमुख विद्रोह :
बहावी आंदोलन (1830) :
1830 में रायबरेली के सैयद अहमद के नेतृत्व में 1807 ईस्वी तक यह विद्रोह चला जो दिल्ली के शाह वली उल्लाह से प्रभावित था, इस विद्रोह का मुख्य उद्देश्य मुस्लिम धर्म में व्याप्त बुराइयों को दूर करके हजरत मोहम्मद से संबंधित मूल इस्लाम धर्म को स्थापित करना था, भारत में इसका मुख्य केंद्र पटना था, पटना के अतिरिक्त यह आंदोलन हैदराबाद, बंगाल, मद्रास तथा उत्तर प्रदेश में चला सैयद अहमद ने शस्त्र धारण करने के लिए प्रेरित किया और पंजाब में सिखों के राज्य के विरुद्ध जिहाद की घोषणा कर दी, जिहाद का अर्थ होता है धर्म ‘युद्ध’ 1857 के विद्रोह में बहावी लोगों ने जनता को अंग्रेजो के खिलाफ भड़काया और बहावी लोगों ने कुछ समय तक पेशावर पर सैयद अहमद के नेतृत्व में कब्जा कर लिया परंतु सैयद अहमद ही युद्ध में मारे गए और 1860 के बाद अंग्रेजों ने सैन्य कार्यवाही द्वारा बहावी विद्रोह को कुचल दिया इस विद्रोह के प्रमुख नेता विलायत अली मौलवी इनायत अली और अब्दुल्ला आदि थे।
पाॅलीगार विद्रोह 1801 :
तमिलनाडु में नई भूमि व्यवस्था लागू करने के बाद ब्रिटिश सरकार के खिलाफ सन 1801 ईसवी में वहां के स्थानीय पाली वालों ने वीपी कट्टा बामन्नान के नेतृत्व में विद्रोह किया गया, और यह विद्रोह 1856 ईस्वी तक चला।
फकीर विद्रोह(1776) :
बंगाल में 1776 ईस्वी में फकीर विद्रोह प्रारंभ हुआ, इस आंदोलन के नेतृत्वकर्ता चिराग अली शाह तथा मजनू शाह थे, इस विद्रोह में देवी चौधरानी तथा भवानी पाठक ने अपना महत्वपूर्ण सहयोग दिया।
पाइका विद्रोह (1817) :
मध्य उड़ीसा में पाइका जनजाति द्वारा सन 1817 ईस्वी से 1825 ईसवी तक यह विद्रोह किया, इस विद्रोह के नेतृत्वकर्ता बख्शीजगबंधु ने किया।
सूरत का नमक विद्रोह (1817) :
अंग्रेजों द्वारा नमक के कर में 50 पैसे की वृद्धि करने पर इसका विरोध करने के लिए 1844 ईस्वी में सूरत के स्थानीय लोगों ने यह विद्रोह किया, इसे विद्रोह के परिणाम स्वरूप अंग्रेजों ने बढाए नमक करो को वापस ले लिया।
नागा विद्रोह(1931) :
नागा विद्रोह, रोगमइ जादोनांग के नेतृत्व में भारत के पूर्वी राज्य नागालैंड में हुआ, नागा आंदोलन का मुख्य उद्देश्य नागा राज्य की स्थापना करके प्राचीन धर्म को स्थापित करना था, अंग्रेजों ने नेता जादोनांग को गिरफ्तार करके 29 अगस्त 1931 को फांसी पर लटका दिया, इसके बाद में इस आंदोलन की बागडोर एक नागा महिला गैडिनल्यु ने अपने हाथों में ले ली, इन्होंने नागा आंदोलन को गांधीजी के सविनय अवज्ञा आंदोलन से जोड़कर इस आंदोलन को विस्तारित किया, गैडिनल्यु ने पूर्व नेता जादोनांग के विचारों से प्रेरित होकर एक होर्का पंथ की स्थापना की। पंडित जवाहरलाल नेहरू ने भारत की स्वतंत्रता के पश्चात इस महिला को रानी की उपाधि से सम्मानित किया, और रानी गैडिनल्यु को कारावास से मुक्त करके स्वतंत्र करवाया।
खोंड एवं सवार विद्रोह (1837) :
खोंड एवं सवार विद्रोह 1837 ईस्वी से लेकर 1856 ईसवी तक बंगाल, तमिलनाडु तथा मध्य भारत में रहने वाली खोंड तथा सवार नामक जनजातियों द्वारा चलाया गया, इस विद्रोह का मुख्य कारण अंग्रेजी सरकार द्वारा नरबलि पर रोक तथा नए कर लगाना था, खोंड एवं सवार विद्रोह का नेतृत्व श्री चक्र बिसोई नीतियां 1857 में शुरू हुए, इस विद्रोह में राधा कृष्ण दंड सेन को अंग्रेजों ने फांसी पर लटका दिया और यह विद्रोह समाप्त हो गया।
युआन जुआंग विद्रोह (1867) :
युआन विद्रोह 1867 ई. ने रन्न नायक के नेतृत्व में क्योंझर में हुआ था, क्योंझर के राजा के राज्य अभिषेक पर युआन सरदारों को उपस्थित होना अनिवार्य था। इस प्रथा को अंग्रेज सरकार द्वारा एकदम से समाप्त कर दिया जिससे कि हर राज्य में की है, विद्रोह भड़क गया और अंग्रेजों ने इस विद्रोह को कठोर दंडात्मक कार्यवाही द्वारा कुचल दिया, युआन लोगों ने दूसरा विद्रोह धारनी नायक के नेतृत्व में 1891 ईसवी में किया। काल एवं जुआंग लोगों ने इस आंदोलन में भाग लिया, धारनी नायक के नेतृत्व में स्थानीय जनता के सहयोग से क्योझर के राजा को कटक भागना पड़ा और स्थानीय प्रशासन के सहयोग से अंग्रेजों ने यह विद्रोह भी कुचल दिया।
खोण्ड डोरा विद्रोह (1900) :
खोंड डोरा विद्रोह विशाखापट्टनम के डाबर क्षेत्र में सन 1900 में खोंड डोरा नामक जनजाति द्वारा प्रारंभ किया गया, इस विद्रोह के नेतृत्वकर्ता कोरा मलैया थे। कोरा मलैया ने स्वयं को पांडवों का अवतार तथा अपने पुत्र को श्री कृष्ण का अवतार बताया। अंग्रेजों ने कठोर और बर्बर सैन्य कार्यवाही से इस विद्रोह को भी कुचल दिया।
कूका विद्रोह (1840) :
भगत जवाहर मल ने पश्चिमी पंजाब में 1840 ईसवी में कूका विद्रोह की शुरुआत की। कूका आंदोलन की आरंभिक प्रवृत्ति धार्मिक थी, परंतु जल्दी ही कूका आंदोलन एक राजनैतिक आंदोलन में परिवर्तित हो गया इस विद्रोह का उद्देश्य सिख धर्म की बुराइयों को दूर करना था, हजारा को विद्रोह का केंद्र बनाते हुए श्री जवाहर मल ने बालक सिंह और राम सिंह की मदद से कूका विद्रोह किया। भगत जवाहर मल को सीएम साहब के नाम से भी संबोधित किया जाता है। अंग्रेजों ने कठोर सैनिक कार्यवाही कर कूका विद्रोह का दमन कर दिया और राम सिंह को निर्वासित करके रंगून भेज दिया।
विजय नगर का विद्रोह (1765) :
1765 ईस्वी में ईस्ट इंडिया कंपनी ने राज्य के उत्तरी जिलों पर अधिकार करके कठोर नीति का पालन किया तथा 1794 ईस्वी में राजा को सेना भंग करने तथा ₹300000 देने के लिए कहा गया, जिससे राजा असहमत हुआ और असहमति के परिणाम स्वरूप राजा की जागीर को जप्त कर लिया गया। अंग्रेजी सेना से लड़ते हुए राजा के मरने के बाद ईस्ट इंडिया कंपनी ने राजा के बड़े बेटे को जागीर पुणे वापस कर वहां शांति की स्थापना की।
दीवान वेलुथम्पी का विद्रोह(1805) :
त्रावणकोर के राजा को लार्ड वेलेजली ने 1805 ईसवी में वादे कर दिया, परंतु राजा ने संधि की शर्तों से असहमति व्यक्त करते हुए कर देने में आनाकानी की, जिससे अंग्रेजों का व्यवहार थोड़ा कठोर हो गया जिसके पल्सर रूप नायर बटालियन के सहयोग से दीवान वेलुथम्पी ए विद्रोह कर दिया, अंग्रेजों ने दीवान वेलुथम्पी का विद्रोह कार्यवाही द्वारा दबा दिया।
खामती विद्रोह(1843) :
अहोम राजा ने म्यामार की खामोशी जाति को बसने की इजाजत देने के बाद यह लोग सदिया के आसपास क्षेत्रों में बस गए अंग्रेजों ने इनकी रीति रिवाज एवं राजस्व वसूली को लेकर मतभेद होने पर खामती जाति के लोगों ने रूनू गुहाई और खवा गुहाई के मजबूत नेतृत्व में दुर्गा कर दिया और सदियां में स्थित अंग्रेजी रेजीमेंट के मेजर वाइट को मौत के घाट उतार दिया। परंतु सरदारों की आपसी फूट का लाभ उठाया और 1843 ईस्वी में इस विद्रोह को भी कुचल दिया गया।
कोया विद्रोह (1879) :
कोया विद्रोह, दो चरणों में हुआ, पहले चरण का नेतृत्व टेंपर सोरा ने किया और द्वितीय चरण में राजन अनंत शैय्यार ने नेतृत्व किया।
कोया आन्दोलन, गोदावरी के पूर्वी क्षेत्र में रंपा प्रदेश में शुरू हुआ, इस कोया विद्रोह का मुख्य कारण आदिवासियों के जंगल संबंधी प्राकृतिक अधिकारों को अंग्रेजों द्वारा खेल लिया गया, तथा कोया लोगों पर ताड़ी के घरेलू उत्पादन पर कर लगा देना मुख्य कारण था।
राजू रंपा में कोया विद्रोह का कुछ समय तक नेतृत्व किया, द्वितीय चरण में कोया विद्रोह का नेतृत्व अनंत शैय्यार ने किया अंग्रेजों ने कठोर सैन्य कार्यवाही द्वारा कोया विद्रोह को समाप्त कर दिया।
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