भारत एवं पश्चिमी देशों के मध्य संबंध : अंतर्राष्ट्रीय सम्बन्ध
हाल ही में भारत ने विदेश नीति के क्षेत्र में दो बड़े फैसला लिया है- ब्रेक्ज़िट के बाद ब्रिटेन के साथ के संबंधों को मज़बूत करने का एवं भारत-यूरोप संबंधों को फिर से मज़बूती प्रदान करने का।
ज्ञात है, कि दोनों संबंधों का आधार बेहतर व्यापार है। भारत द्वारा वर्ष 2019 में क्षेत्रीय व्यापक आर्थिक साझेदारी (Regional Comprehensive Economic Partnership- RCEP) से बाहर निकलने का निर्णय लेने के बाद यह महत्त्वपूर्ण है। यह निर्णय आत्मनिर्भर भारत की दृष्टि से भी महत्त्वपूर्ण है। इसके अलावा भारत और अमेरिका एक मिनी ट्रेड डील पर भी बातचीत कर रहे हैं।
व्यापार समझौतों के अलावा, यूरोपीय संघ, ब्रिटेन और अमेरिका के साथ भारत का रणनीतिक जुड़ाव पश्चिम के साथ इसके बढ़ते संबंधों का प्रतीक है। भारत और पश्चिम के बीच यह मज़बूत संबंध चीन के उदय का परिणाम है।
इस परिदृश्य में जहाॅं वैश्विक अर्थव्यवस्था महामारी की चपेट में आ गई है, भारत को उन सुधारों पर भी गंभीरता से विचार करना चाहिये, जो पश्चिमी देशों के साथ संबंधों को स्थायित्व प्रदान करते हैं।
भारत एवं पश्चिमी देशों के मध्य संबंध -
- ब्रेक्ज़िट के बाद तेज़ी से संबंधों में सुधार करना: ब्रेक्ज़िट का लाभ उठाते हुए, भारत और ब्रिटेन के मध्य संबंधों की शुरुआत बाज़ार तक पहुॅंच एवं विश्वास-निर्माण उपायों (Confidence-building measures ) के साथ करते हुए मुक्त-व्यापार समझौते (Free-Trade Agreement) तक पहुॅंचना चाहिये।
- भारत-यूरोपीय संघ के संबंधों को फिर से मज़बूत करना: हाल ही में आयोजित एक आभासी शिखर सम्मेलन में, भारत और यूरोपीय संघ ने एक व्यापक व्यापार समझौते के लिये बातचीत फिर से शुरू करने का फैसला किया है।
- इसके अलावा शिखर सम्मेलन में डिजिटल, ऊर्जा, परिवहन एवं दोनों पक्षों के लोगों के बीच एक महत्त्वाकांक्षी 'कनेक्टिविटी साझेदारी' की शुरुआत हुई है, जिसके तहत दोनों देश अफ्रीका, मध्य एशिया से लेकर हिंद-प्रशांत क्षेत्र तक फैले क्षेत्रों में स्थायी संयुक्त परियोजनाओं को आगे बढ़ाने में सहयोग करेंगे।
- यूरोपीय देशों के साथ जुड़ाव: वर्षों से भारत ने यूरोपीय संघ के स्थान पर फ्राँस, जर्मनी, ब्रिटेन आदि के साथ स्वतंत्र संबंधों को प्राथमिकता दी है।
- उदाहरण के लिये, फ्राँस, यूरोप में भारत का गो-टू पार्टनर बन गया है, जिसके साथ रक्षा, सामरिक, परमाणु और बहुपक्षीय क्षेत्रों में इतने समझौते हुए हैं, कि वह रूस की जगह भी ले सकता है।
- स्मार्ट सिटी, 5G, AI और सेमीकंडक्टर्स जैसे - क्षेत्रों में नॉर्डिक देश, भारत की पहली पसंद हैं।
- इसके अलावा, स्वच्छ पानी, स्वच्छता और स्मार्ट शहरों जैसे मुद्दों पर भारत की दिलचस्पी स्वाभाविक रूप से यूरोपीय देशों की ओर बढ़ी है।
- क्वाड: क्वाड के सदस्य के रूप में एवं हिन्द- प्रशांत के भू-राजनीति के केंद्र में होने के कारण भारत-पश्चिमी देशों के रणनीतिक रूप से महत्त्वपूर्ण है।
चुनौतियाॅं -
- दृढ़ यूरोपीय संघ: दोनों पक्षों के निहित स्वार्थों के कारण ब्रिटेन के साथ बहुत तेज़ी से समझौते होने की संभावना है। हालाॅंकि, यूरोपीय संघ बहुत अधिक दृढ़ रहता है, एवं उसकी मांग भी तुलनात्मक रूप से अधिक होती है।
- चीन का विश्व शक्ति के रूप में उदय: अमेरिका और यूरोप ने चीन के विकास में सामूहिक रूप से महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। उनका विचार था, कि एक समृद्ध चीन अधिक लोकतांत्रिक देश बनेगा न कि तानाशाही के मार्ग पर चलने वाला। आज चीन की कार्रवाई इन देशों के लिये एक प्रमुख रणनीतिक चुनौती है। इसलिये भारत को यह उम्मीद नहीं करनी चाहिये, कि यूरोपीय संघ, अमेरिका और ब्रिटेन के साथ इसके जुड़ाव के परिणामस्वरूप वैश्विक स्थितियों में बहुत अधिक परिवर्तन होगा।
- चीन का प्रतिरोध: चीन, क्वाड को एक छोटे भू-राजनीतिक समूह के रूप में देखता है, जो एशिया को विभाजित करना चाहता है, और चीन को अलग-थलग करना चाहता है।
- इस कारण, किसी भी एशियाई गठबंधन के उदय को रोकना अब चीन के लिये सर्वोच्च रणनीतिक प्राथमिकता है।
आगे की राह -
- घरेलू सहमति: भारत और पश्चिमी देशों के बीच घनिष्ठ संबंध के लिये, भारत को आपूर्ति-शृंखला के अंतराल को भरना चाहिये और बड़े मुद्दों जैसे- वस्तु एवं सेवाएँ, कृषि, सरकारी खरीद, अंतर्राष्ट्रीय मध्यस्थता आदि पर घरेलू सहमति का निर्माण करना चाहिये।
- अन्य शक्तियों के साथ संबंध: भारत को अन्य शक्तियों, जैसे- बहुपक्षीय समूहों के नेटवर्क के साथ, भारत-ऑस्ट्रेलिया-जापान मंच और फ्राँस तथा ऑस्ट्रेलिया के साथ त्रिपक्षीय वार्ता एवं अमेरिका के साथ अपनी साझेदारी को विकसित करना चाहिये।
- प्राकृतिक संबंध: भारत पहले से ही एक मज़बूत लोकतंत्र और एक बाज़ार आधारित अर्थव्यवस्था है।
- इसके अलावा भारत अपनी खूबियों जैसे- प्रौद्योगिकी विकास, 21वीं सदी की प्रतिभाओं का पश्चिम की तरफ झुकाव; जलवायु परिवर्तन के प्रति सकारात्मक सोच का उपयोग पश्चिमी देशों के साथ अपने संबंधों को मज़बूत करने के लिये कर सकता है।
निष्कर्ष -
भारतीय दृष्टिकोण से पश्चिमी देशों का सहयोग क्षेत्रीय स्थिरता प्रदान कर सकता है, शांति को बढ़ावा दे सकता है, आर्थिक विकास ला सकता है, और सतत् विकास को आगे बढ़ा सकता है।
__________________________________________________________________________
0 Comments