सौर धब्बे (Sunspots)
चर्चा में क्यों?
हाल ही में वैज्ञानिक सौर धब्बों (Sunspots) व सौर चक्रों (Solar Cycles) के अध्ययन हेतु रिसर्च कर रहे हैं।
सूर्य-पृष्ठ का वह धब्बा जो कभी-कभी इतना बड़ा होता है कि मेघ की पतली परत अथवा गहरे रंगीन कांच से ही स्पष्ट दिखाई पड़ता है। यह विश्वास किया जाता है कि सूर्य के पर्यावरण में ही विद्यमान भ्रमिल गैस-राशि से ही इसकी उत्पत्ति होती है। यह भी विचार किया जाता है कि पृथ्वी पर चुम्बकीय विक्षोभ, सूर्य के धब्बों की संख्या पर निर्भर रहते हैं। इस विक्षोभ के बढ़ने पर अरोरा दिखाई पड़ते हैं तथा चुम्बकीय तूफान अधिक उठते हैं।
चलिये जानें थोड़ा सा सूर्य के बारे में, सूर्य की बाहरी संरचना में तीन स्तर पाये जाते है -
1. प्रकाश मण्डल (Photosphere)
2. वर्णमण्डल (Chromosphere)
3. किरीट (Corona)
- प्रकाश मण्डल सूर्य का धरातल है जिसका औसत तापमान 6000॰C रहता है |
- सूर्य के वायुमंडल को ही वर्णमण्डल कहा जाता है, इसका रंग लाल पाया जाता है |
- सूर्य का सबसे बाहरी भाग सूर्य मुकुट या किरीट कहलाता है|
चलिये अब समझते हैं सौर कलंक को –
प्रकाश मण्डल के ऊपर का जिस हिस्से का औसत तापमान 1500॰C से कम कम पाया जाता है वो सौर कलंक यानि Sunspots कहलाता है, इस धब्बे का जीवनकाल कुछ घंटे से लेकर कुछ सप्ताह तक होता है। कई दिनों तक सौर कलंक बने रहने के पश्चात रेडियो संचार में बाधा आती है।
सौर कलंक के अंदर के अधिक काले भाग को अम्ब्रा (Umbra) तथा बाहरी भाग को जो कि अपेक्षाकृत कम काला होता है उसे पेन अम्ब्रा (Pen Umbra) कहा जाता है |
प्रमुख बिन्दु
- भारत सरकार के विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग के अंतर्गत स्वायत्त संस्थान आर्यभट्ट प्रेक्षण विज्ञान शोध संस्थान के अनुसंधानकर्ताओं के साथ ही मैक्स प्लांक इंस्टीट्यूट फॉर सोलर सिस्टम रिसर्च, जर्मनी और साउथवेस्ट रिसर्च इंस्टीट्यूट, अमेरिका के सहयोगियों ने एक सदी पुराने डिजिटलाज्ड फिल्म और फोटो(Century-Old Digitalized Films and Photographs) की मदद से सौर धब्बों (सनस्पॉट) का पता लगाकर सौर परिक्रमा का अध्ययन किया है।
- पुरानी फिल्में और फोटोग्राफ विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग के स्वायत्त संस्थान भारतीय तारा भौतिकी संस्थान के कोडाईकनाल सोलर ऑब्जर्वेटरी(Kodaikanal Solar Observatory -KoSO) से प्राप्त किए गए और उन्हें अब डिजिटाइज कर दिया गया है।
- वैज्ञानिकों ने डिजिटाइज्ड पुरानी फिल्मों और फोटोग्राफ्स (Old Films and Photographs)से हासिल डाटा के द्वारा यह अनुमान लगाया है कि पिछली सदी के दौरान सूर्य ने किस तरह परिक्रमा की। इससे सूर्य के भीतरी हिस्से में उत्पन्न होने वाले चुंबकीय क्षेत्र के अध्ययन में मदद मिलेगी जो कि सौर धब्बों(सनस्पॉट) के लिए जिम्मेदार है और जिसके परिणामस्वरूप पृथ्वी पर ऐतिहासिक लघु हिमयुग (सौर धब्बों का अभाव) जैसी चरम परिस्थितियां पैदा होती हैं।
- इसके अतिरिक्त, यह सौर चक्रों और भविष्य में इनमें आने वाले बदलावों का अनुमान लगाने में भी मदद कर सकता है।
- शोधकर्ताओ ने परिक्रमा(rotation) के मानव जनित आंकड़ों की डिजिटाइज्ड डाटा से तुलना की और कहा कि वे पहली बार बड़े और छोटे सौर धब्बों (सनस्पॉट) के व्यवहार में अंतर कर पाने में सफल हुए हैं।
लाभ
- वैज्ञानिकों के इस प्रयास से सौर चुंबकीय क्षेत्र और सौर धब्बों (सनस्पॉट)की समझ विकसित हो सकेगी तथा इससे भविष्य में सौर चक्रों का अनुमान लगाने में भी मदद मिलेगी।
सौर कलंक से जुड़े महत्वपूर्ण तथ्य (Important facts)
- सूर्य की सतह पर सौर कलंक हमेशा मौजूद नहीं होते, इनकी आयु कुछ दिनों से लेकर कुछ महीनों तक ही होती है।
- सौर कलंक सूर्य की सतह पर आगे बढ़ते हुए अपना आकार बदलते रहते हैं। इनका व्यास (diameter) 16 किलोमीटर से लेकर 1,60,000 किलोमीटर हो सकता है।
- विश्व में सौर कलंक का पहला जिक्र ईसा से 800 वर्ष पहले लिखी गई चीन की एक पुस्तक ‘इत्सिंग’ (Book of Changes) में मिलता है।
- पहली बार टेलीस्कोप द्वारा सौर कलंक को 1610 ई.वी. में अंग्रेज खगोल वैज्ञानिक थाॅमस हैरियट और दो जर्मन खगोल वैज्ञानिकों जोहानिस और डेविड फैब्रिसियस द्वारा देखा गया था।
- सौर कलंक का तापमान सूर्य के सतह के तापमान (6000 °C) से लगभग आधा होता है।
- सौर कलंक के दो भाग होते हैः अधिक काले बीच वाले भाग को ‘umbra’ और उसके चारों ओर के घेरे को ‘penumbra’ कहते है।
- 11 वर्षीय सौर चक्र के दौरान जब सूर्य पर सबसे ज्यादा कलंक नजर आते है; तो उस स्थिती को ‘solar maximum’ कहा जाता है; वही जिस समय सबसे कम कलंक नजर आते है उसे ‘solar minimum’ कहा जाता है।
सौर चक्र (Solar Cycle)
- सौर चक्र को सौर चुंबकीय गतिविधि चक्र(Solar Magnetic Activity Cycle) भी कहते हैं।
- सूर्य की गतिविधि में समय-समय पर लगभग 11 वर्ष में परिवर्तन होता है, जिसे सूर्य की बाहरी सतह (फोटोस्फीयर) पर देखे गए सौर धब्बों (सनस्पॉट) की विविधताओं के संदर्भ में मापा जाता है। इसे ही सौर चक्र कहा जाता है।
- सूर्य की सतह पर विद्युत आवेशित गैसें शक्तिशाली चुंबकीय बलों के क्षेत्र को उत्पन्न करती हैं, जिसे सूर्य का चुंबकीय क्षेत्र कहा जाता है।
- ये गैसें लगातार चलती रहती हैं। इस प्रकार, ये चुंबकीय क्षेत्र सौर गतिविधि के रूप में ज्ञात सतह पर खिंचाव या दबाव के कारण गति प्राप्त करते हैं।
- सौर गतिविधि सौर चक्र के विभिन्न चरणों को दर्शाती है, जो औसतन 11 वर्षों तक चलती है।
- सौर चक्रों का पृथ्वी पर जीवन और प्रौद्योगिकी के साथ-साथ अंतरिक्ष यात्रियों के लिए विशेष महत्व है।
- वैज्ञानिक सूर्य के स्थानों का उपयोग करके एक सौर चक्र को ट्रैक करते हैं।
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