गैर-शमनीय अपराध
(Non-Compoundable Crime)
शमनीय अपराध (compoundable offences)
- शमनीय अपराध मुख्यतः दो प्रकार के होते हैं-
- न्यायालय की अनुमति के साथ शमनीय
- न्यायालय की अनुमति के बिना शमनीय
हिन्दी में एक और शब्द समाधेय अपराध भी प्रचलित है, समाधेय अपराध के नाम से ही स्पष्ट है कि ऐसा अपराध जिसका समाधान हो सकता है। यहाँ समाधान हो सकता है इसका सीधा सा मतलब है कि दोनों पक्षों के बीच समझौते से समाधान हो सकता है।
इसे दूसरे शब्दों में कहें तो समाधेय अपराध वे अपराध हैं जहां, दोनों पक्षों में से एक पक्ष दूसरे पक्ष द्वारा लगाए गए आरोप को स्वीकार कर लेता है,और इस तरह दोनों मामले को रफा-दफा करने के लिए एक समझौता कर लेता है।
हालांकि, इस तरह के समझौते में ये ध्यान रखना होता है कि समझौता बिलकुल प्रामाणिक या वास्तविक हो। इसका मतलब ये है ,कहीं ऐसा न हो जिस पर आरोप लगा है वो आरोप लगाने वाले को पैसों का लालच देकर समझौता करवा ले।
दो प्रकार के समझौते हो सकते हैं एक तो बगैर कोर्ट के अनुमति के और एक कोर्ट के अनुमति के बाद। जिन मामलों में समझौता कोर्ट के अनुमति के बगैर हो सकता है उसे CRPC के सेक्शन 320(1) में रखा गया है। और जिन मामलों में कोर्ट की अनुमति बहुत ही जरूरी है, उन मामलों को CRPC के सेक्शन 320 (2) में रखा गया है। और जो इन दोनों में नहीं लिखा है उसे कहा जाता है गैर-शमनीय या गैर-समाधेय अपराध (Non-Compoundable offences)।
ऐसा कह सकते है कि, CRPC के सेक्शन 320(1) में कुछ मामलों का उल्लेख किया गया है, जिसका समाधान बगैर कोर्ट के अनुमति के भी हो सकता है। और इसी प्रकार के अपराध को (जिसका कि इसमें उल्लेख किया गया है) शमनीय अपराध (compoundable offences) कहा जाता है। हालांकि इस प्रकार के समझौते की जानकारी पुलिस को देनी पड़ती है।
गैर-समाधेय अपराध (Non- Compoundable Offences)
कुछ अपराधों कि प्रकृति इतनी गंभीर और आपराधिक होती है कि उसमें समझौते की कोई गुंजाइश ही नहीं होती है। क्योंकि आमतौर पर ये कोई दो व्यक्तियों का मसला नहीं होता है बल्कि ये राज्य का मसला बन जाता है, समाज पर इसका इम्पैक्ट पर रहा होता है। इसमें आरोपी को सजा देने के अलावा और कोई चारा ही नहीं बचता है।
वे सभी अपराध, जिनका उल्लेख CRPC की धारा (320) के तहत सूची में नहीं है, गैर-समाधेय अपराध (Non- Compoundable Offences) हैं।
मतलब कहा जा सकता है कि CRPC section 320 को देख लेते है, उसमें जितने भी मामले लिखे हुए है उस पर तो समझौता हो सकता है।और जो उसमें नहीं लिखा हुआ है, ऐसे सभी विषयों पर समझौता नहीं किया जा सकता।
सुप्रीम कोर्ट की शब्दों का निहितार्थ
- उच्चतम, पूर्व-प्रतिष्ठित न्यायालय के न्यायाधीशों द्वारा कहे गए शब्दों का समाज में बहुत प्रभाव होता है। इनके पास नागरिकों के संवैधानिक अधिकारों का विस्तार करने और कबीलाई, जातिगत, तथा पितृसत्ता के असमान मूल्य प्रणालियों से उनकी रक्षा करने की शक्ति है।
- ऐसे में सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी, बलात्कार के आघात के बदले में विवाह के प्रस्ताव प्रस्तुत करना पीड़िता के साथ-साथ सम्पूर्ण समाज के लिए अत्यधिक आक्रामक और प्रतिगामी विचार है।
- अदालत ने एक सरकारी कर्मचारी, जिसपर 16 वर्ष की नाबालिक लड़की के साथ एक से अधिक बार बलात्कार करने और उसके 18 वर्ष के होने के बाद विवाह करने के अस्वासन से उसकी माँ पर शिकायत न करने के लिए दबाव बनाए का आरोप है, से यह पूछा है कि वह लड़की से विवाह करेगा या नहीं?
- भारत के कानून के तहत, बलात्कार एक "गैर-शमनीय" अपराध (Non-Compoundable Crime) है। अर्थात्, किसी भी समझौते के तहत अदालत के बाहर ऐसे अपराध को कम या क्षमा नहीं किया जा सकता है।
- सुप्रीम कोर्ट ने पहले इस तरह के गंभीर मामलों के खिलाफ निर्णय दिये हैं, जहां पुरुष की प्रतिष्ठा और सम्मान को बनाए रखने के लिए महिला के मूल्यों के उल्लंघन बावजूद भी परिवारों ने अदालत के बाहर समझौता करने का प्रयास किया था।
सुप्रीम कोर्ट ने पूर्व-निर्णय
- 2015 में, मध्यप्रदेश बनाम मदनलाल मामले में अदालत ने स्पष्ट रूप से कहा था कि-
- “बलात्कार या बलात्कार के प्रयास के मामले में, किसी भी परिस्थिति में समझौता करने की अवधारणा के बारे सोचा भी नहीं जा सकता है।”
- इससे पहले हरियाणा बनाम शिंभु मामले में भी अपने फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा था-
- "बलात्कार ऐसा मामला नहीं है, जिसे सुलह और समझौता करने के लिए दोनों पक्षों पर छोड़ा दिया जाना चाहिए है।"
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English translation of this topic below :-
Non-Compoundable Crime
- Contemporary with permission of the court
- Contemptible without the permission of the court
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