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गैर-शमनीय अपराध (Non-Compoundable Crime)

 

गैर-शमनीय अपराध 

(Non-Compoundable Crime)

गैर-शमनीय अपराध (Non-Compoundable Crime)


भारत के मुख्य न्यायाधीश की अगुवाई वाली सुप्रीम कोर्ट की एक बेंच ने बलात्कार के मामले की सुनवाई के दौरान एक नाबालिग से बलात्कार के आरोपी से पूछा कि क्या वह पीड़िता से विवाह करेगा या नहीं, जबकि बलात्कार एक गैर-शमनीय (Non-Compoundable) अपराध है।

शमनीय और गैर शमनीय

 अपराध दो तरह के हैं। पहला शमनीय और दूसरा गैर शमनीय। जिन अपराधों को दंड प्रक्रिया सहिंता के अंर्तगत समझौते के लिए बताया गया अर्थात जिन में समझौता किया जा सकता है वह अपराध शमनीय है। जिन अपराधों में समझौता नहीं किया जा सकता अर्थात जिनमे न्यायालय द्वारा या तो दोषमुक्त किया जाएगा या दोषसिद्ध किया जाएगा, परन्तु अपराध का शमन नहीं होगा। जैसे भारतीय दंड संहिता के अंतर्गत धारा 302 और 376 इत्यादि के अपराध बहुत से मामलों में लोग हत्या जैसे अपराध को भी शमनीय समझ लेते हैं। 

शमनीय अपराध (compoundable offences)

  • शमनीय अपराध मुख्यतः दो प्रकार के होते हैं-
  1. न्यायालय की अनुमति के साथ शमनीय
  2. न्यायालय की अनुमति के बिना शमनीय

हिन्दी में एक और शब्द समाधेय अपराध भी प्रचलित है, समाधेय अपराध के नाम से ही स्पष्ट है कि ऐसा अपराध जिसका समाधान हो सकता है। यहाँ समाधान हो सकता है इसका सीधा सा मतलब है कि दोनों पक्षों के बीच समझौते से समाधान हो सकता है।

इसे दूसरे शब्दों में कहें तो समाधेय अपराध वे अपराध हैं जहां, दोनों पक्षों में से एक पक्ष दूसरे पक्ष द्वारा लगाए गए आरोप को स्वीकार कर लेता है,और इस तरह दोनों मामले को रफा-दफा करने के लिए एक समझौता कर लेता है।

हालांकि, इस तरह के समझौते में ये ध्यान रखना होता है कि समझौता बिलकुल प्रामाणिक या वास्तविक हो। इसका मतलब ये है ,कहीं ऐसा न हो जिस पर आरोप लगा है वो आरोप लगाने वाले को पैसों का लालच देकर समझौता करवा ले।

दो प्रकार के समझौते हो सकते हैं एक तो बगैर कोर्ट के अनुमति के और एक कोर्ट के अनुमति के बाद। जिन मामलों में समझौता कोर्ट के अनुमति के बगैर हो सकता है उसे CRPC के सेक्शन 320(1) में रखा गया है। और जिन मामलों में कोर्ट की अनुमति बहुत ही जरूरी है, उन मामलों को CRPC के सेक्शन 320 (2) में रखा गया है। और जो इन दोनों में नहीं लिखा है उसे कहा जाता है गैर-शमनीय या गैर-समाधेय अपराध (Non-Compoundable offences)

ऐसा कह सकते है कि, CRPC के सेक्शन 320(1) में कुछ मामलों का उल्लेख किया गया है, जिसका समाधान बगैर कोर्ट के अनुमति के भी हो सकता है। और इसी प्रकार के अपराध को (जिसका कि इसमें उल्लेख किया गया है) शमनीय अपराध (compoundable offences) कहा जाता है। हालांकि इस प्रकार के समझौते की जानकारी पुलिस को देनी पड़ती है।

गैर-समाधेय अपराध (Non- Compoundable Offences)

कुछ अपराधों कि प्रकृति इतनी गंभीर और आपराधिक होती है कि उसमें समझौते की कोई गुंजाइश ही नहीं होती है। क्योंकि आमतौर पर ये कोई दो व्यक्तियों का मसला नहीं होता है बल्कि ये राज्य का मसला बन जाता है, समाज पर इसका इम्पैक्ट पर रहा होता है। इसमें आरोपी को सजा देने के अलावा और कोई चारा ही नहीं बचता है।

वे सभी अपराध, जिनका उल्लेख CRPC की धारा (320) के तहत सूची में नहीं है, गैर-समाधेय अपराध (Non- Compoundable Offences) हैं।

मतलब कहा जा सकता है कि CRPC section 320 को देख लेते है, उसमें जितने भी मामले लिखे हुए है उस पर तो समझौता हो सकता है।और जो उसमें नहीं लिखा हुआ है, ऐसे सभी विषयों पर समझौता नहीं किया जा सकता।

सुप्रीम कोर्ट की शब्दों का निहितार्थ

  • उच्चतम, पूर्व-प्रतिष्ठित न्यायालय के न्यायाधीशों द्वारा कहे गए शब्दों का समाज में बहुत प्रभाव होता है। इनके पास नागरिकों के संवैधानिक अधिकारों का विस्तार करने और कबीलाई, जातिगत, तथा पितृसत्ता के असमान मूल्य प्रणालियों से उनकी रक्षा करने की शक्ति है।
  • ऐसे में सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी, बलात्कार के आघात के बदले में विवाह के प्रस्ताव प्रस्तुत करना पीड़िता के साथ-साथ सम्पूर्ण समाज के लिए अत्यधिक आक्रामक और प्रतिगामी विचार है।
  • अदालत ने एक सरकारी कर्मचारी, जिसपर 16 वर्ष की नाबालिक लड़की के साथ एक से अधिक बार बलात्कार करने और उसके 18 वर्ष के होने के बाद विवाह करने के अस्वासन से उसकी माँ पर शिकायत न करने के लिए दबाव बनाए का आरोप है, से यह पूछा है कि वह लड़की से विवाह करेगा या नहीं?
  • भारत के कानून के तहत, बलात्कार एक "गैर-शमनीय" अपराध (Non-Compoundable Crime) है। अर्थात्, किसी भी समझौते के तहत अदालत के बाहर ऐसे अपराध को कम या क्षमा नहीं किया जा सकता है।
  • सुप्रीम कोर्ट ने पहले इस तरह के गंभीर मामलों के खिलाफ निर्णय दिये हैं, जहां पुरुष की प्रतिष्ठा और सम्मान को बनाए रखने के लिए महिला के मूल्यों के उल्लंघन बावजूद भी परिवारों ने अदालत के बाहर समझौता करने का प्रयास किया था।

सुप्रीम कोर्ट ने पूर्व-निर्णय

  • 2015 में, मध्यप्रदेश बनाम मदनलाल मामले में अदालत ने स्पष्ट रूप से कहा था कि-
  • “बलात्कार या बलात्कार के प्रयास के मामले में, किसी भी परिस्थिति में समझौता करने की अवधारणा के बारे सोचा भी नहीं जा सकता है।”
  • इससे पहले हरियाणा बनाम शिंभु मामले में भी अपने फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा था-
  • "बलात्कार ऐसा मामला नहीं है, जिसे सुलह और समझौता करने के लिए दोनों पक्षों पर छोड़ा दिया जाना चाहिए है।"


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English translation of this topic below :-


Non-Compoundable Crime


गैर-शमनीय अपराध (Non-Compoundable Crime)

A Supreme Court bench headed by the Chief Justice of India, during the hearing of a rape case, asked the accused of raping a minor whether or not he would marry the victim, while rape was a non-compoundable crime is.

Compulsive and non-compulsive

Crimes are of two types. The first one is compulsive and the second is non-compulsive. The offenses mentioned under the Criminal Procedure Agreement,  those which can be compromised, are punishable. Crimes which cannot be compromised, in which the court will either be acquitted or convicted, but the crime will not be mitigated. For example, under the Indian Penal Code, offenses under Sections 302 and 376, etc., in many cases, people also consider the crime like murder to be criminal.

Compoundable offences

Criminal offenses are mainly of two types -
  1. Contemporary with permission of the court
  2. Contemptible without the permission of the court
Another term in Hindi is also known as trespassing crime, it is clear from the name of trespassing crime that such a crime can be solved. There can be a solution here. It simply means that an agreement between the two parties can lead to a solution.

To put it in other words, trespassing offenses are those where one of the two parties accepts the charge leveled by the other party, and thus an agreement is reached to make both the cases clear.

However, in such an agreement, it is necessary to ensure that the agreement is genuine or genuine. This means that it should not happen that the person who is accused should get the accuser compromised by greed for money.

There can be two types of agreements, one without the permission of the court and one after the permission of the court. Cases in which settlement can take place without the permission of the court are placed in section 320 (1) of CRPC. And in cases where the permission of the court is very important, those cases are placed in section 320 (2) of CRPC. And what is not written in these two is called Non-Compoundable Offenses.

It can be said that, some cases have been mentioned in section 320 (1) of CRPC, which can be resolved without the permission of the court. And a similar offense (which is mentioned in it) is called Compoundable offences. However, this type of agreement has to be reported to the police.

Non-Compoundable Offences

The nature of some crimes is so serious and criminal that there is no scope for compromise. Because usually it is not an issue of two people but it becomes an issue of the state, it has been an influence on the society. There is no other option but to punish the accused.

All those offenses which are not mentioned in the list under Section (320) of CRPC are Non-Compoundable Offenses.

It can be said that if we look at CRPC section 320, there can be agreement on all the matters that are written in it, and all those which are not written in it, cannot be compromised on all such topics.

Implications of the words of the Supreme Court

The words uttered by the judges of the highest, pre-eminent court have great influence in the society. They have the power to extend the constitutional rights of citizens and protect them from the unequal value systems of tribal, caste, and patriarchy.

In such a case, the Supreme Court's comment, submission of marriage proposals in exchange for the trauma of rape is a highly offensive and regressive view for the victim as well as the society as a whole.
The court asked a government employee who is accused of raping a 16-year-old minor girl more than once and pressurizing her mother not to complain about the fact that she is married after she turns 18. Is he going to marry the girl or not?

Under India's law, rape is a "Non-Compoundable Crime". Namely, such an offense cannot be reduced or excused outside the court under any agreement.

The Supreme Court has previously ruled against such serious cases, where families attempted to compromise outside the court, despite violations of the woman's values ​​to maintain the man's reputation and honor.

Supreme Court pre-decided

In 2015, the court explicitly stated in Madhya Pradesh v. Madanlal case that-
"In the case of rape or attempted rape, the concept of compromise cannot be imagined under any circumstances."

Earlier, in its decision in Haryana v. Shimbhu case, the Supreme Court said-
"Rape is not a case that should be left to both sides for reconciliation and compromise."

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