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भीमराव रामजी आम्बेडकर : जयंती विशेष

 भीमराव रामजी आम्बेडकर : जयंती विशेष 

भीमराव रामजी आम्बेडकर : जयंती विशेष

  • हाल ही में (14 अप्रैल, 2021) डॉ. बी. आर. अंबेडकर की 130वीं जयंती मनायी गई है।
भीमराव रामजी आम्बेडकर, (14 अप्रैल1891 – 6 दिसंबर1956), डॉ॰ बाबासाहब आम्बेडकर नाम से लोकप्रिय, भारतीय बहुज्ञविधिवेत्ताअर्थशास्त्रीराजनीतिज्ञ, और समाजसुधारक थे। उन्होंने दलित बौद्ध आन्दोलन को प्रेरित किया और अछूतों (दलितों) से सामाजिक भेदभाव के विरुद्ध अभियान चलाया था। श्रमिकों, किसानों और महिलाओं के अधिकारों का समर्थन भी किया था। वे स्वतंत्र भारत के प्रथम विधि एवं न्याय मन्त्रीभारतीय संविधान के जनक एवं भारत गणराज्य के निर्माताओं में से एक थे।

प्रारम्भिक जीवन :

आम्बेडकर का जन्म 14 अप्रैल 1891 को ब्रिटिश भारत के मध्य भारत प्रांत (अब मध्य प्रदेश) में स्थित महू नगर सैन्य छावनी में हुआ था। वे रामजी मालोजी सकपाल और भीमाबाई की 14 वींअंतिम संतान थे। उनका परिवार कबीर पंथ को माननेवाला मराठी मूूल का था, और वो वर्तमान महाराष्ट्र के रत्नागिरी जिले में आंबडवे गाँव का निवासी था।वे हिंदू महार जाति से संबंध रखते थे, जो तब अछूत कही जाती थी और इस कारण उन्हें सामाजिक और आर्थिक रूप से गहरा भेदभाव सहन करना पड़ता था। भीमराव आम्बेडकर के पूर्वज लंबे समय से ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी की सेना में कार्यरत रहे थे और उनके पिता रामजी सकपाल, भारतीय सेना की महू छावनी में सेवारत थे तथा यहां काम करते हुये वे सूबेदार के पद तक पहुँचे थे। उन्होंने मराठी और अंग्रेजी में औपचारिक शिक्षा प्राप्त की थी।

7 नवम्बर 1900 को रामजी सकपाल ने सातारा की गवर्न्मेण्ट हाइस्कूल में अपने बेटे भीमराव का नाम भिवा रामजी आंबडवेकर दर्ज कराया। उनके बचपन का नाम 'भिवा' था। आम्बेडकर का मूल उपनाम सकपाल की बजाय आंबडवेकर लिखवाया था, जो कि उनके आंबडवे गाँव से संबंधित था। क्योंकी कोकण प्रांत के लोग अपना उपनाम गाँव के नाम से रखते थे, अतः आम्बेडकर के आंबडवे गाँव से आंबडवेकर उपनाम स्कूल में दर्ज करवाया गया। बाद में एक देवरुखे ब्राह्मण शिक्षक कृष्णा महादेव आंबेडकर जो उनसे विशेष स्नेह रखते थे, ने उनके नाम से 'आंबडवेकर' हटाकर अपना सरल 'आंबेडकर' उपनाम जोड़ दिया। तब से आज तक वे आम्बेडकर नाम से जाने जाते हैं।

रामजी सकपाल परिवार के साथ बंबई (अब मुंबई) चले आये। अप्रैल 1906 में, जब भीमराव लगभग 15 वर्ष आयु के थे, तो नौ साल की लड़की रमाबाई से उनकी शादी कराई गई थी। तब वे पांचवी अंग्रेजी कक्षा पढ रहे थे। उन दिनों भारत में बाल-विवाह का प्रचलन था।


शिक्षा :

प्राथमिक शिक्षा -

आंबेडकर ने सातारा शहर में राजवाड़ा चौक पर स्थित गवर्न्मेण्ट हाईस्कूल (अब प्रतापसिंह हाईस्कूल) में 7 नवंबर 1900 को अंग्रेजी की पहली कक्षा में प्रवेश लिया। इसी दिन से उनके शैक्षिक जीवन का आरम्भ हुआ था, इसलिए 7 नवंबर को महाराष्ट्र में विद्यार्थी दिवस रूप में मनाया जाता हैं। उस समय उन्हें 'भिवा' कहकर बुलाया जाता था। स्कूल में उस समय 'भिवा रामजी आंबेडकर' यह उनका नाम उपस्थिति पंजिका में क्रमांक - 1914 पर अंकित था। जब वे अंग्रेजी चौथी कक्षा की परीक्षा उत्तीर्ण हुए, तब क्योंकि यह अछूतों में असामान्य बात थी, इसलिए भीमराव की इस सफलता को अछूतों के बीच सार्वजनिक समारोह के रूप में मनाया गया, और उनके परिवार के मित्र एवं लेखक दादा केलुस्कर द्वारा खुद की लिखी 'बुद्ध की जीवनी' उन्हें भेंट दी गयी। इसे पढकर उन्होंने पहली बार गौतम बुद्ध व बौद्ध धर्म को जाना एवं उनकी शिक्षा से प्रभावित हुए।

माध्यमिक शिक्षा -

1897 में, आम्बेडकर का परिवार मुंबई चला गया जहां उन्होंने एल्फिंस्टोन रोड पर स्थित गवर्न्मेंट हाईस्कूल में आगे कि शिक्षा प्राप्त की।

बॉम्बे विश्वविद्यालय में स्नातक अध्ययन -

1907 में, उन्होंने अपनी मैट्रिक परीक्षा उत्तीर्ण की और अगले वर्ष उन्होंने एल्फिंस्टन कॉलेज में प्रवेश किया, जो कि बॉम्बे विश्वविद्यालय से संबद्ध था। इस स्तर पर शिक्षा प्राप्त करने वाले अपने समुदाय से वे पहले व्यक्ति थे।

1912 तक, उन्होंने बॉम्बे विश्वविद्यालय से अर्थशास्त्र और राजनीतिक विज्ञान में कला स्नातक (बी॰ए॰) प्राप्त की, और बड़ौदा राज्य सरकार के साथ काम करने लगे। उनकी पत्नी ने अभी अपने नये परिवार को स्थानांतरित कर दिया था और काम शुरू किया जब उन्हें अपने बीमार पिता को देखने के लिए मुंबई वापस लौटना पड़ा, जिनका 2 फरवरी 1913 को निधन हो गया।

कोलंबिया विश्वविद्यालय में स्नातकोत्तर अध्ययन -

1913 में, आम्बेडकर 22 साल की आयु में संयुक्त राज्य अमेरिका चले गए जहां उन्हें सयाजीराव गायकवाड़ तृतीय (बड़ौदा के गायकवाड़) द्वारा स्थापित एक योजना के तहत न्यूयॉर्क शहर स्थित कोलंबिया विश्वविद्यालय में स्नातकोत्तर शिक्षा के अवसर प्रदान करने के लिए तीन साल के लिए 11.50 डॉलर प्रति माह बड़ौदा राज्य की छात्रवृत्ति प्रदान की गई थी। वहां पहुँचने के तुरन्त बाद वे लिविंगस्टन हॉल में पारसी मित्र नवल भातेना के साथ बस गए। जून 1915 में उन्होंने अपनी कला स्नातकोत्तर (एम॰ए॰) परीक्षा पास की, जिसमें अर्थशास्त्र प्रमुख विषय, और समाजशास्त्र, इतिहास, दर्शनशास्त्र और मानव विज्ञान यह अन्य विषय थे। उन्होंने स्नातकोत्तर के लिए एंशियंट इंडियन्स कॉमर्स (प्राचीन भारतीय वाणिज्य) विषय पर शोध कार्य प्रस्तुत किया। आम्बेडकर जॉन डेवी और लोकतंत्र पर उनके काम से प्रभावित थे।

1916 में, उन्हें अपना दूसरा शोध कार्य, नेशनल डिविडेंड ऑफ इंडिया - ए हिस्टोरिक एंड एनालिटिकल स्टडी के लिए दूसरी कला स्नातकोत्तर प्रदान की गई, और अन्ततः उन्होंने लंदन की राह ली। 1916 में अपने तीसरे शोध कार्य इवोल्युशन ओफ प्रोविन्शिअल फिनान्स इन ब्रिटिश इंडिया के लिए अर्थशास्त्र में पीएचडी प्राप्त की, अपने शोध कार्य को प्रकाशित करने के बाद 1927 में अधिकृत रुप से पीएचडी प्रदान की गई। 


छुआछूत के विरुद्ध संघर्ष :

आम्बेडकर ने कहा था "छुआछूत गुलामी से भी बदतर है।" आम्बेडकर बड़ौदा के रियासत राज्य द्वारा शिक्षित थे, अतः उनकी सेवा करने के लिए बाध्य थे। उन्हें महाराजा गायकवाड़ का सैन्य सचिव नियुक्त किया गया, लेकिन जातिगत भेदभाव के कारण कुछ ही समय में उन्हें यह नौकरी छोड़नी पडी। उन्होंने इस घटना को अपनी आत्मकथा, वेटिंग फॉर अ वीजा में वर्णित किया। इसके बाद, उन्होंने अपने बढ़ते परिवार के लिए जीविका साधन खोजने के पुनः प्रयास किये, जिसके लिये उन्होंने लेखाकार के रूप में, व एक निजी शिक्षक के रूप में भी काम किया, और एक निवेश परामर्श व्यवसाय की स्थापना की, किन्तु ये सभी प्रयास तब विफल हो गये जब उनके ग्राहकों ने जाना कि ये अछूत हैं। 1918 में, ये मुंबई में सिडेनहम कॉलेज ऑफ कॉमर्स एंड इकोनॉमिक्स में राजनीतिक अर्थशास्त्र के प्रोफेसर बने। हालांकि वे छात्रों के साथ सफल रहे, फिर भी अन्य प्रोफेसरों ने उनके साथ पानी पीने के बर्तन साझा करने पर विरोध किया।

बॉम्बे हाईकोर्ट में विधि का अभ्यास करते हुए, उन्होंने अछूतों की शिक्षा को बढ़ावा देने और उन्हें ऊपर उठाने के प्रयास किये। उनका पहला संगठित प्रयास केंद्रीय संस्थान बहिष्कृत हितकारिणी सभा की स्थापना था, जिसका उद्देश्य शिक्षा और सामाजिक-आर्थिक सुधार को बढ़ावा देने के साथ ही अवसादग्रस्त वर्गों के रूप में सन्दर्भित "बहिष्कार" के कल्याण करना था।दलित अधिकारों की रक्षा के लिए, उन्होंने मूकनायक, बहिष्कृत भारत, समता, प्रबुद्ध भारत और जनता जैसी पांच पत्रिकाएं निकालीं।


अस्पृश्यता को दूर करने के लिये अपनाए गए तरीके :

  • शिक्षा :
    • बाबासाहेब के लिये ज्ञान मुक्ति का एक मार्ग है। अछूतों के पतन का एक कारण यह था कि उन्हें शिक्षा के लाभों से वंचित रखा गया था। उन्होंने निचली जातियों की शिक्षा के लिये पर्याप्त प्रयास नहीं करने के लिये अंग्रेज़ों की आलोचना की। उन्होंने छात्रों के बीच स्वतंत्रता और समानता के मूल्यों को स्थापित करने के लिये धर्मनिरपेक्ष शिक्षा पर जोर दिया।
  • आर्थिक प्रगति :
    • वह चाहते थे कि अछूत लोग, ग्रामीण समुदाय और पारंपरिक नौकरियों के बंधन से मुक्त हों। वह चाहते थे कि अछूत लोग नए कौशल प्राप्त करें और एक नया व्यवसाय शुरू करें तथा औद्योगीकरण का लाभ उठाने के लिये शहरों की ओर रुख करें। उन्होंने गाँवों को 'स्थानीयता का एक सिंक, अज्ञानता, संकीर्णता और सांप्रदायिकता का एक खंड' के रूप में वर्णित किया।
  • राजनीतिक ताकत:
    • वह चाहते थे कि अछूत खुद को राजनीतिक रूप से संगठित करें। राजनीतिक शक्ति के साथ अछूत अपनी रक्षा, सुरक्षा और मुक्ति संबंधी नीतियों को पेश करने में सक्षम होंगे।
  • रूपांतरण :
    • जब उन्होंने महसूस किया कि हिंदू धर्म अपने तौर-तरीकों को सुधारने में सक्षम नहीं है, तो उन्होंने बौद्ध धर्म अपनाया और अपने अनुयायियों को भी बौद्ध धर्म अपनाने को कहा। उनके लिये बौद्ध धर्म मानवतावाद पर आधारित था और समानता एवं बंधुत्व की भावना में विश्वास करता था।
    • "मैं अपने जन्म के धर्म को अस्वीकार करते हुए पुनर्जन्म लेता हूँ। मैं उस धर्म का त्याग करता हूँ जो मानवता के विकास के लिए रुकावट पैदा करता है और जो मुझे एक नीच के रूप में मानता है।”
    • इसलिये सामाजिक स्तर पर शिक्षा, भौतिक स्तर पर आजीविका के नए साधन, राजनीतिक स्तर पर राजनीतिक संगठन और आध्यात्मिक स्तर पर आत्म-विश्वास और रुपांतरण ने अस्पृश्यता को समाप्त करने का एक समग्र कार्यक्रम तैयार किया।
  • आंबेडकर ने अपनी पुस्तक हू वर द शुद्राज़? (शुद्र कौन थे?) के द्वारा हिंदू जाति व्यवस्था के पदानुक्रम में सबसे नीची जाति यानी शुद्रों के अस्तित्व मे आने की व्याख्या की। उन्होंने इस बात पर भी जोर दिया कि किस तरह से अतिशुद्र (अछूत), शुद्रों से अलग हैं। 1948 में हू वेयर द शुद्राज़? की उत्तरकथा द अनटचेबलस: ए थीसिस ऑन द ओरिजन ऑफ अनटचेबिलिटी (अछूत: छुआछूत के मूल पर एक शोध) में आम्बेडकर ने हिंदू धर्म को लताड़ा।

    हिंदू सभ्यता, जो मानवता को दास बनाने और उसका दमन करने की एक क्रूर युक्ति है और इसका उचित नाम बदनामी होगा। एक सभ्यता के बारे मे और क्या कहा जा सकता है, जिसने लोगों के एक बहुत बड़े वर्ग को विकसित किया जिसे एक मानव से हीन समझा गया और जिसका स्पर्श मात्र प्रदूषण फैलाने का पर्याप्त कारण है?

    आम्बेडकर दक्षिण एशिया के इस्लाम की रीतियों के भी बड़े आलोचक थे। उन्होने भारत विभाजन का तो पक्ष लिया पर मुस्लिमो में व्याप्त बाल विवाह की प्रथा और महिलाओं के साथ होने वाले दुर्व्यवहार की घोर निंदा की। उन्होंने कहा,

  • बहुविवाह और रखैल रखने के दुष्परिणाम शब्दों में व्यक्त नहीं किये जा सकते जो विशेष रूप से एक मुस्लिम महिला के दुःख के स्रोत हैं। जाति व्यवस्था को ही लें, हर कोई कहता है कि इस्लाम गुलामी और जाति से मुक्त होना चाहिए, जबकि गुलामी अस्तित्व में है और इसे इस्लाम और इस्लामी देशों से समर्थन मिला है। जबकि कुरान में निहित गुलामों के न्याय और मानवीय उपचार के बारे में पैगंबर द्वारा किए गए नुस्खे प्रशंसनीय हैं, इस्लाम में ऐसा कुछ भी नहीं है जो इस अभिशाप के उन्मूलन का समर्थन करता हो। अगर गुलामी खत्म भी हो जाये पर फिर भी मुसलमानों के बीच जाति व्यवस्था रह जायेगी।

    "सांप्रदायिकता" से पीड़ित हिंदुओं और मुसलमानों दोनों समूहों ने सामाजिक न्याय की माँग की उपेक्षा की है।

  • भारतीय संविधान के मुख्य निर्माता :

    • बाबासाहेब अंबेडकर की कानूनी विशेषज्ञता और विभिन्न देशों के संविधान का ज्ञान संविधान के निर्माण में बहुत मददगार साबित हुआ। वह संविधान सभा की मसौदा समिति के अध्यक्ष बने और उन्होंने भारतीय संविधान को तैयार करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई।
    • इसके अलावा उनका सबसे महत्त्वपूर्ण योगदान मौलिक अधिकारों, मज़बूत केंद्र सरकार और अल्पसंख्यकों की सुरक्षा के क्षेत्र में था।
      • अनुच्छेद 32 का उद्देश्य मूल अधिकारों के संरक्षण हेतु गारंटी, प्रभावी, सुलभ और संक्षेप उपचारों की व्यवस्था से है। डॉ. अंबेडकर ने अनुच्छेद 32 को संविधान का सबसे महत्त्वपूर्ण अनुच्छेद बताते हुए कहा था कि इसके बिना संविधान अर्थहीन है, यह संविधान की आत्मा और हृदय है।
      • उन्होंने एक मज़बूत केंद्र सरकार का समर्थन किया। उन्हें डर था कि स्थानीय और प्रांतीय स्तर पर जातिवाद अधिक शक्तिशाली है तथा इस स्तर पर सरकार उच्च जाति के दबाव में निम्न जाति के हितों की रक्षा नहीं कर सकती है। क्योंकि राष्ट्रीय सरकार इन दबावों से कम प्रभावित होती है, इसलिये वह निचली जाति का संरक्षण सुनिश्चित करेगी।
      • उन्हें यह भी डर था, कि अल्पसंख्यक जो कि राष्ट्र का सबसे कमज़ोर समूह है, राजनीतिक अल्पसंख्यकों में परिवर्तित हो सकता है। इसलिये 'वन मैन वन वोट' का लोकतांत्रिक शासन पर्याप्त नहीं है, और अल्पसंख्यक को सत्ता में हिस्सेदारी की गारंटी दी जानी चाहिये। वह 'मेजरिटेरियनिज़्म सिंड्रोम' (Majoritarianism Syndrome) के खिलाफ थे, और उन्होंने अल्पसंख्यकों के लिये संविधान में कई सुरक्षा उपाय सुनिश्चित किये।
    • भारतीय संविधान, विश्व का सबसे अधिक व्यापक और विशाल संविधान है, क्योंकि इसमें विभिन्न प्रशासनिक विवरणों को शामिल किया गया है। बाबासाहेब ने इसका बचाव करते हुए कहा कि हमने पारंपरिक समाज में एक लोकतांत्रिक राजनीतिक संरचना बनाई है। यदि सभी विवरण शामिल नहीं होंगे तो भविष्य में नेता तकनीकी रूप से संविधान का दुरुपयोग कर सकते हैं। इसलिये ऐसे सुरक्षा उपाय आवश्यक हैं। इससे पता चलता है कि वह जानते थे कि संविधान लागू होने के बाद भारत को किन व्यावहारिक कठिनाइयों का सामना करना पड़ सकता है।
  • संवैधानिक नैतिकता :

    • बाबासाहेब अंबेडकर के परिप्रेक्ष्य में संवैधानिक नैतिकता का अर्थ विभिन्न लोगों के परस्पर विरोधी हितों और प्रशासनिक सहयोग के बीच प्रभावी समन्वय होगा।
    • उनके अनुसार, भारत को जहाँ समाज में जाति, धर्म, भाषा और अन्य कारकों के आधार पर विभाजित किया गया है, एक सामान्य नैतिक विस्तार की आवश्यकता है, तथा संविधान उस विस्तार में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है।

    लोकतंत्र :

    • उन्हें लोकतंत्र पर पूरा भरोसा था। उनका मानना था कि जो तानाशाही त्वरित परिणाम दे सकती है वह सरकार का मान्य रूप नहीं हो सकती है। लोकतंत्र श्रेष्ठ है क्योंकि यह स्वतंत्रता में अभिवृद्धि करता है। उन्होंने लोकतंत्र के संसदीय स्वरूप का समर्थन किया, जो कि अन्य देशों के मार्गदर्शकों के साथ संरेखित होता है।
    • उन्होंने 'लोकतंत्र को जीवन पद्धति’ के रूप में महत्त्व दिया, अर्थात् लोकतंत्र का महत्त्व केवल राजनीतिक क्षेत्र में ही नहीं बल्कि व्यक्तिगत, सामाजिक और आर्थिक क्षेत्र में भी है।
    • इसके लिये लोकतंत्र को समाज की सामाजिक परिस्थितियों में व्यापक बदलाव लाना होगा, अन्यथा राजनीतिक लोकतंत्र यानी 'एक आदमी, एक वोट' की विचारधारा गायब हो जाएगी। केवल एक लोकतांत्रिक समाज में ही लोकतांत्रिक सरकार की स्थापना से उत्पन्न हो सकती है, इसलिये जब तक भारतीय समाज में जाति की बाधाएँ मौजूद रहेंगी, वास्तविक लोकतंत्र की स्थापना नहीं हो सकती। इसलिये उन्होंने लोकतंत्र और सामाजिक लोकतंत्र सुनिश्चित करने के लिये लोकतंत्र के आधार के रूप में बंधुत्व और समानता की भावना पर ध्यान केंद्रित किया।
    • सामाजिक आयाम के साथ-साथ अंबेडकर ने आर्थिक आयाम पर भी ध्यान केंद्रित किया। वे उदारवाद और संसदीय लोकतंत्र से प्रभावित थे, तथा उन्होंने इसे भी सीमित पाया। उनके अनुसार, संसदीय लोकतंत्र ने सामाजिक और आर्थिक असमानता को नज़रअंदाज किया। यह केवल स्वतंत्रता पर केंद्रित होती है, जबकि लोकतंत्र में स्वतंत्रता और समानता दोनों की व्यवस्था सुनिश्चित करना ज़रुरी है।

    समाज सुधार :

    • बाबा साहेब ने अपना जीवन समाज से छूआछूत व अस्पृश्यता को समाप्त करने के लिये समर्पित कर दिया था। उनका मानना था कि अस्पृश्यता को हटाए बिना राष्ट्र की प्रगति नहीं हो सकती है, जिसका अर्थ है समग्रता में जाति व्यवस्था का उन्मूलन। उन्होंने हिंदू दार्शनिक परंपराओं का अध्ययन किया और उनका महत्त्वपूर्ण मूल्यांकन किया।
    • उनके लिये अस्पृश्यता पूरे हिंदू समाज की गुलामी (Slavery) है जबकि अछूतों को हिंदू जातियों द्वारा गुलाम बनाया जाता है, हिंदू जाति स्वयं धार्मिक मूर्तियों की गुलामी में रहते हैं। इसलिये अछूतों की मुक्ति पूरे हिंदू समाज को मुक्ति की ओर ले जाती है।
    • सामाजिक सुधार की प्राथमिकता :
      • उनका मानना था कि सामाजिक न्याय के लक्ष्य को प्राप्त करने के बाद ही आर्थिक और राजनीतिक मुद्दों को हल किया जाना चाहिये।
      • यह विचार कि आर्थिक प्रगति, सामाजिक न्याय को जन्म देगी, यह  जातिवाद के रूप में हिंदुओं की मानसिक गुलामी की अभिव्यक्ति है। इसलिये सामाजिक सुधार के लिये जातिवाद को समाप्त करना आवश्यक है।
      • सामाजिक सुधारों में परिवार सुधार और धार्मिक सुधार को शामिल किया गया। पारिवारिक सुधारों में बाल विवाह जैसी प्रथाओं को हटाना शामिल था। यह महिलाओं के सशक्तीकरण का पुरज़ोर समर्थन करता है। यह महिलाओं के लिये संपत्ति के अधिकारों का समर्थन करता है, जिसे उन्होंने हिंदू कोड बिल के माध्यम से हल किया था।
      • हिंदू कोड बिल :

        • अम्बेडकर ने स्वतंत्र भारत के प्रथम विधिमंत्री रहते हुए ‘हिंदू कोड बिल’ संसद में प्रस्तुत किया, और हिन्दू स्त्रियों के लिए न्याय सम्मत व्यवस्था बनाने के लिए इस विधेयक में उन्होंने व्यापक प्रावधान रखे।
        • हालांकि संसद में अपने हिन्दू कोड बिल मसौदे को रोके जाने पर उन्होंने मंत्रिमंडल से इस्तीफा दे दिया था। इस मसौदे में उत्तराधिकार, विवाह और अर्थव्यवस्था के कानूनों में लैंगिक समानता की बात कही गई थी।
    • जाति :
      • जाति व्यवस्था ने हिंदू समाज को स्थिर बना दिया है, जो बाहरी लोगों के साथ एकीकरण में बाधा पैदा करता है। जाति व्यवस्था निम्न जातियों की समृद्धि के मार्ग में बाधक है जिसके कारण नैतिक पतन हुआ। इस प्रकार अस्पृश्यता को समाप्त करने की लड़ाई मानव अधिकारों और न्याय के लिये लड़ाई बन जाती है।
    • तथ्य पत्र :

      • वर्ष 1923 में उन्होंने 'बहिष्कृत हितकारिणी सभा (आउटकास्ट्स वेलफेयर एसोसिएशन)’ की स्थापना की, जो दलितों के बीच शिक्षा और संस्कृति के प्रचार-प्रसार के लिये समर्पित थी।
      • वर्ष 1930 के कालाराम मंदिर आंदोलन में अंबेडकर ने कालाराम मंदिर के बाहर विरोध प्रदर्शन किया, क्योंकि दलितों को इस मंदिर परिसर में प्रवेश नहीं करने दिया जाता था। इसने भारत में दलित आंदोलन को शुरू करने में एक महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई।
      • डॉ. अंबेडकर ने हर बार लंदन में तीनों गोलमेज़ सम्मेलनों (1930-32) में भाग लिया और सशक्त रूप से 'अछूत' के हित में अपने विचार व्यक्त किये। 
      • वर्ष 1932 में उन्होंने महात्मा गांधी के साथ पूना समझौते (Poona Pact) पर हस्ताक्षर किये, जिसके परिणामस्वरूप वंचित वर्गों के लिये अलग निर्वाचक मंडल (सांप्रदायिक पंचाट) के विचार को त्याग दिया गया। हालाँकि दलित वर्गों के लिये आरक्षित सीटों की संख्या प्रांतीय विधानमंडलों में 71 से बढ़ाकर 147 तथा केंद्रीय विधानमंडल में कुल सीटों का 18% कर दी गई। 
      • वर्ष 1936 में बाबासाहेब अंबेडकर ने स्वतंत्र लेबर पार्टी (Independent Labour Party) की स्थापना की।
      • वर्ष 1939 में द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान उन्होंने बड़ी संख्या में नाज़ीवाद को हराने के लिये भारतीयों को सेना में शामिल होने का आह्वान किया।
      • 14 अक्तूबर, 1956 को उन्होंने अपने कई अनुयायियों के साथ बौद्ध धर्म ग्रहण किया। उसी वर्ष उन्होंने अपना अंतिम लेखन कार्य 'बुद्ध एंड हिज़ धर्म' (Buddha and His Dharma) पूरा किया।
      • वर्ष 1990 में डॉ. बी. आर. अंबेडकर को भारत रत्न पुरस्कार से सम्मानित किया गया था।
      • 14 अप्रैल, 1990 से 14 अप्रैल, 1991 की अवधि को बाबासाहेब की याद में 'सामाजिक न्याय के वर्ष' के रूप में मनाया गया।
      • भारत सरकार द्वारा डॉ. अंबेडकर फाउंडेशन को सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय (Ministry of Social Justice and Empowerment) के तत्त्वावधान में 24 मार्च, 1992 को सोसायटी पंजीकरण अधिनियम (Societies Registration Act), 1860 के तहत एक पंजीकृत सोसायटी के रूप में स्थापित किया गया था।
        • फाउंडेशन का मुख्य उद्देश्य बाबासाहेब डॉ. बी.आर. अंबेडकर की विचारधारा और संदेश को भारत के साथ-साथ विदेशों में भी जनता तक पहुँचाने के लिये कार्यक्रमों और गतिविधियों के कार्यान्वयन की देखरेख करना है।
      • डॉ. अंबेडकर की कुछ महत्त्वपूर्ण कृतियाँ: समाचार पत्र मूकनायक (1920), एनिहिलेशन ऑफ कास्ट (1936), द अनटचेबल्स (1948), बुद्ध ऑर कार्ल मार्क्स (1956) इत्यादि।
    • वर्तमान समय में अंबेडकर की प्रासंगिकता :

      • भारत में जाति आधारित असमानता अभी भी कायम है, जबकि दलितों ने आरक्षण के माध्यम से एक राजनीतिक पहचान हासिल कर ली है, और अपने स्वयं के राजनीतिक दलों का गठन किया है, किंतु सामाजिक आयामों (स्वास्थ्य और शिक्षा) तथा आर्थिक आयामों का अभी भी अभाव है।
      • सांप्रदायिक ध्रुवीकरण और राजनीति के सांप्रदायिकरण का उदय हुआ है। यह आवश्यक है कि संवैधानिक नैतिकता की अंबेडकर की दृष्टि को भारतीय संविधान में स्थायी क्षति से बचाने के लिये धार्मिक नैतिकता का समर्थन किया जाना चाहिये।
  • इतिहासकार आर.सी. गुहा के अनुसार, डॉ. बी.आर. अंबेडकर अधिकांश विपरीत परिस्थितियों में भी सफलता का अनूठा उदाहरण हैं। आज भारत जातिवाद, सांप्रदायिकता, अलगाववाद, लैंगिग असमानता आदि जैसी कई सामाजिक-आर्थिक चुनौतियों का सामना कर रहा है। हमें अपने भीतर अंबेडकर की भावना को खोजने की ज़रूरत है, ताकि हम इन चुनौतियों से खुद को बाहर निकाल सकें।

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