अर्मेनियाई नरसंहार : अंतर्राष्ट्रीय सम्बन्ध
हाल ही में अमेरिकी राष्ट्रपति, जो बाइडन ने वर्ष 1915-16 में ऑटोमन तुर्कों (Ottoman Turks) द्वारा अर्मेनियाई लोगों की सामूहिक हत्याओं को आधिकारिक तौर पर ‘नरसंहार’ (Genocide) के रूप में मान्यता दे दी है।
- अर्मेनियाई प्रवासी 24 अप्रैल को ‘अर्मेनियाई नरसंहार स्मरण दिवस’ (Armenian Genocide Remembrance Day) के रूप में चिह्नित करते हैं।
नरसंहार का अर्थ :
- संयुक्त राष्ट्र के ‘जेनोसाइड कन्वेंशन’ (दिसंबर 1948) के अनुच्छेद II के अनुसार, ‘नरसंहार का आशय एक राष्ट्रीय, जातीय, नस्लीय या धार्मिक समूह को पूर्णतः अथवा आंशिक रूप से नष्ट करने के उद्देश्य से किये गए कृत्य से है।
- वर्ष 1943 में पोलिश वकील राफेल लेमकिन (Raphael Lemkin) द्वारा सर्वप्रथम ‘नरसंहार’ शब्द का प्रयोग किया गया था।
प्रमुख बिंदु :
अर्मेनियाई नरसंहार :
- अर्मेनियाई नरसंहार को 20वीं सदी का पहला नरसंहार कहा जाता है।
- यह वर्ष 1915 से 1917 तक तुर्क साम्राज्य में हुए अर्मेनियाई लोगों के व्यवस्थित विनाश को उल्लेखित करता है।
- नवंबर 1914 में प्रथम विश्व युद्ध की शुरुआत के बाद, ऑटोमन तुर्कों ने जर्मनी और ऑस्ट्रो-हंगेरियन साम्राज्य के साथ युद्ध में भाग लिया।
- ऑटोमन तुर्कों का विश्वास था कि अर्मेनियाई लोग युद्ध में रूस का साथ देगे, इसके परिणामस्वरूप ऑटोमन तुर्क पूर्वी सीमा क्षेत्रों में बड़े पैमाने पर अर्मेनियाई लोगों को हटाने के अभियान में शामिल हो गए।
- 24 अप्रैल, 1915 को ऑटोमन तुर्की सरकार के हज़ारों अर्मेनियाई बुद्धिजीवियों को गिरफ्तार किया और उन्हें मार डाला। यही ‘अर्मेनियाई नरसंहार’ की शुरुआत थी। (ऑटोमान सरकार ने 250 आर्मीनियाई बुद्धिजीवियों को कांन्स्टेनटीनोपोल में बन्दी बना लिया।)
- इसे दो चरणों में किया गया: पुरुषों की एकमुश्त हत्याएँ, सेना द्वारा जबरन गुलामी व महिलाओं, बच्चों व बूढों को सीरिया के रेगिस्तान में मौत की पदयात्रा (डेथ मार्च) पर भेजना। सैनिकों द्वारा खदेडे जाते हुए प्राय ही इन लोगो के साथ बार बार लूटपाट, भूखे रखे जाने, बलात्कार, मारपीट व हत्याएँ हुईं।
- इनके साथ ही अन्य ईसाई समूहों जैसे कि असीरियाई व ओट्टोमन के यूनानियों को भी निशाना बनाया गया। इतिहासकार इसे ओट्टोमन साम्राज्य की उसी नरसंहार नीति का हिस्सा मानते हैं।
- एक अनुमान के अनुसार, उपचार के अभाव, दुर्व्यवहार, भुखमरी और नरसंहार के कारण इस दौरान लगभग 1.5 लाख आर्मीनियाई लोगों की मृत्यु हुई थी।
- अपने प्रायोजित व योजनाबद्ध कत्लेआम के लिये आर्मीनियाई नरसंहार को आधुनिक काल के पहले नरसंहारों में गिना जाता है। यहूदी नरसंहार के बाद यह दूसरा सबसे ज्यादा अध्ययन किया जाने वाला नरसंहार है। हालाँकि तुर्की हमेशा ही इस घटना को नरसंहार कहे जाने का विरोध करता रहा है।
इस मान्यता का महत्व :
- अमेरिका द्वारा इसे नरसंहार की मान्यता प्रदान करने से इसका तुर्की पर कानूनी प्रभाव पड़ेगा तथा अन्य देशों के द्वारा भी ऐसी मान्यता प्रदान किये जाने से तुर्की के सामने समस्या उत्पन्न हो सकती है।
- अर्मेनियाई राष्ट्रीय संस्थान के अनुसार, 30 देश आधिकारिक रूप से अर्मेनियाई नरसंहार को मान्यता देते हैं।
- अमेरिका द्वारा इसे नरसंहार की मान्यता प्रदान करने से इसका तुर्की पर कानूनी प्रभाव पड़ेगा तथा अन्य देशों के द्वारा भी ऐसी मान्यता प्रदान किये जाने से तुर्की के सामने समस्या उत्पन्न हो सकती है।
तुर्की की प्रतिक्रिया :
- इस तरह के कदमों से अमेरिका और तुर्की के मध्य संबंध और अधिक तनावपूर्ण हो सकते हैं, दोनों ही देश उत्तर अटलांटिक संधि संगठन (North Atlantic Treaty Organization Allies) में सहयोगी हैं।
- रूस से एस-400 रक्षा प्रणालियों की खरीद, सीरिया के संबंध में विदेश नीति में मतभेद, मानवाधिकारों और अन्य कानूनी मुद्दों को सुलझाने के साथ विदेश नीति में उत्पन्न मतभेदों ने अमेरिका और तुर्की के मध्य संबंधों को और अधिक तनावपूर्ण बना दिया है।
- तुर्की द्वारा इस बात को स्वीकार किया गया है, कि अर्मेनियाई लोगों पर अत्याचार किये गए थे, लेकिन इस बात से इनकार करता है कि यह एक नरसंहार था, साथ ही तुर्की इस दौरान 1.5 लाख लोगों की मृत्यु की बात को भी चुनौती देता है।
भारत का रुख :
- भारत, जिसने औपचारिक रूप से अर्मेनियाई नरसंहार को मान्यता नहीं दी है, ने मुख्य रूप से इस क्षेत्र में अपने व्यापक विदेश नीति निर्णयों और भू-राजनीतिक हितों को ध्यान में रखते हुए अपना पक्ष रखा है।
- यद्यपि भारत द्वारा नरसंहार पर संयुक्त राष्ट्र कन्वेंशन की पुष्टि की गई है, किंतु भारत के पास नरसंहार से संबंधित कोई राष्ट्रीय कानून नहीं है।
- दिल्ली उच्च न्यायालय द्वारा ‘राज्य बनाम सज्जन कुमार’ (2018) वाद में वर्ष 1984 में दिल्ली और पूरे देश में हुए सिख विरोधी दंगों के दौरान सिखों की सामूहिक हत्या के मामले का अवलोकन किया गया था।
- यद्यपि भारत द्वारा नरसंहार पर संयुक्त राष्ट्र कन्वेंशन की पुष्टि की गई है, किंतु भारत के पास नरसंहार से संबंधित कोई राष्ट्रीय कानून नहीं है।
- इस तरह के कदमों से अमेरिका और तुर्की के मध्य संबंध और अधिक तनावपूर्ण हो सकते हैं, दोनों ही देश उत्तर अटलांटिक संधि संगठन (North Atlantic Treaty Organization Allies) में सहयोगी हैं।
आर्मीनिया से संबंधित अन्य समाचार :
- अर्मेनिया-अजरबैजान संघर्ष:
- हाल ही में रूस की मध्यस्थता से आर्मीनिया और अज़रबैजान के मध्य एक नया शांति समझौता किया गया है। दोनों देश दक्षिण काकेशस में नागोर्नो-करबख के विवादित क्षेत्र पर सैन्य संघर्ष में उलझे हुए थे।
- नागोर्नो-करबख संघर्ष का प्रमुख केंद्र अज़रबैजान में स्थित है, जहाँ की अधिकतर आबादी अर्मेनियाई जातीयता समूह की है (अज़रबैजान की शिया मुस्लिम बहुल आबादी की तुलना में अधिकतर ईसाई लोग)।
नागोर्नाे-काराबाख रणनीतिक महत्व :
- ऊर्जा संपन्न अजरबैजान ने काकेशस (काला सागर और कैस्पियन सागर के बीच का क्षेत्र) से तुर्की और यूरोप तक कई गैस और तेल पाइपलाइनों का निर्माण किया है।
- इसमें बाकू-तबलिसी-सेहान तेल पाइपलाइन (एक दिन में 1.2 बिलियन बरैल परिवहन की क्षमता के साथ), पश्चिमी मार्ग निर्यात तेल पाइपलाइन, ट्रांस-अनातोलियन गैस पाइपलाइन और दक्षिण काकेशस गैस पाइपलाइन शामिल हैं।
- इनमें से कुछ पाइपलाइनें संघर्ष क्षेत्र (सीमा के 16 किमी के भीतर) के करीब से गुजरती हैं। दोनों देशों के बीच एक खुले युद्ध में, पाइपलाइनों को लक्षित किया जा सकता है, जो ऊर्जा आपूर्ति को प्रभावित करेगा।
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