दंड प्रक्रिया संहिता(CrPC), की धारा 144
कोविड-19 मामलों की बढ़ती संख्या के कारण गुरुग्राम में दंड प्रक्रिया संहिता, 1973 (CrPC) की धारा 144 लागू की गई है।
इससे पहले, मध्य प्रदेश के करीब 8 शहरों में कोरोना वायरस के लगातार बढ़ते मामलों के कारण भोपाल जिला मजिस्ट्रेट ने धारा 144 के तहत रात 10 से सुबह 6 बजे के बीच प्रतिबंध लगाया है। वहीं अहमदाबाद प्रशासन ने कोरोना के चलते गुरुवार से जिम, स्पोर्ट्स क्लब, गेमिंग जोन फिर से बंद करने का आदेश दिया है।
प्रमुख बिंदु :
धारा 144 :
क्रिमिनल प्रोसीजर कोड, 1973 सीआरपीसी (CrPC) की धारा,144 किसी भी राज्य या शहर में चार या चार से ज्यादा लोगों के इकट्ठा होने पर रोक लगाती है। हिंसा, दंगे या असुरक्षा या उन्य खतरे के दौरान आपातकालीन स्थिति में शांति कायम रखने के लिए धारा 144 लागू की जाती है।
- यह धारा भारत में किसी भी राज्य या केंद्रशासित प्रदेश के मजिस्ट्रेट को एक निर्दिष्ट क्षेत्र में चार या अधिक लोगों के एकत्रित होने पर रोक लगाने के आदेश को पारित करने का अधिकार देती है।
- धारा 144, ज़िला मजिस्ट्रेट, उप-विभागीय मजिस्ट्रेट या राज्य सरकार द्वारा किसी कार्यकारी मजिस्ट्रेट को हिंसा या उपद्रव की स्थिति में तात्कालिक प्रावधान लागू करने का अधिकार प्रदान करती है।
- यह आदेश किसी व्यक्ति विशिष्ट या आम जनता के विरुद्ध पारित किया जा सकता है।
धारा 144 की विशेषताएँ:
- यह धारा, एक विशिष्ट अधिकार क्षेत्र में किसी भी तरह के हथियार को रखने या उसके आदान-प्रदान पर प्रतिबंध लगाती है। ऐसे कृत्य के लिये अधिकतम तीन वर्ष की सज़ा दी जा सकती है।
- इस धारा के तहत जारी आदेश के मुताबिक, आम जनता के आवागमन पर प्रतिबंध लग जाएगा तथा सभी शैक्षणिक संस्थान भी बंद रहेंगे।
- इसके अलावा इस आदेश के संचालन की अवधि के दौरान किसी भी तरह की जनसभा या रैलियाँ आयोजित करने पर पूर्ण प्रतिबंध होगा।
- कानून प्रवर्तन एजेंसियों को किसी गैर-कानूनी सभा को भंग करने से रोकना दंडनीय अपराध माना जाता है।
- यह धारा अधिकारियों को क्षेत्र में इंटरनेट पहुँच को अवरुद्ध करने यानी इंटरनेट शटडाउन का आदेश देने का अधिकार देती है।
- धारा 144 का अंतिम उद्देश्य उन क्षेत्रों में शांति और व्यवस्था बनाए रखना है, जहाँ आम जनमानस के नियमित जीवन को बाधित करने संबंधी चुनौतियाँ मौजूद हैं।
- इस प्रावधान के अन्तर्गत किसी के आवागमन को भी अस्थाई तौर पर रोका जा सकता है।
धारा 144 की अवधि :
- इस धारा के तहत जारी कोई भी आदेश सामान्यतः 2 माह से अधिक समय तक लागू नहीं रह सकता है।
- हालाँकि इस अवधि की समाप्ति के बाद राज्य सरकार के विवेकाधिकार के तहत आदेश की अवधि को दो और माह के लिये बढाया जा सकता है, किंतु इसकी अधिकतम अवधि छह माह से अधिक नहीं हो सकती है।
- एक बार स्थिति सामान्य हो जाने के बाद धारा 144 हटाई जा सकती है।
- धारा 144 की सजा क्या है? :
अगर कोई व्यक्ति को धारा 144 का उल्लंघन करता हुआ पाया जाता है, और दोषी ठहराया जाता है तो अधिनियम के तहत ज्यादा से ज्यादा छह महीने की जेल हो सकती है। अधिनियम के तहत धारा 144 के उल्लंघन से गिरफ्तारी के बाद में रिहा कराना पड़ता है।
धारा 144 और कर्फ्यू के बीच अंतर :
- धारा-144 संबंधित क्षेत्र में चार या अधिक लोगों के एकत्रित होने पर रोक लगाती है, जबकि कर्फ्यू के तहत लोगों को एक विशेष अवधि के दौरान घर के अंदर रहने के निर्देश दिये जाते हैं। सरकार यातायात पर भी पूर्ण प्रतिबंध लगा देती है।
- बाज़ार, स्कूल, कॉलेज और कार्यालय कर्फ्यू के तहत बंद रहते हैं, और केवल आवश्यक सेवाओं को पूर्व-सूचना पर चलने की अनुमति होती है।
धारा 144 की आलोचना :
- प्रायः आलोचक इस धारा को काफी व्यापक मानते हैं, और इसके क्रियान्वयन में ज़िला मजिस्ट्रेट द्वारा अपनी शक्ति के दुरुपयोग की आशंका के कारण इसकी आलोचना की जाती है।
- इस तरह के आदेश के विरुद्ध स्वयं मजिस्ट्रेट को एक ‘संशोधन आवेदन’ दिये जाने से अधिक कुछ नहीं किया जा सकता है।
- इस कानून के अंतर्गत व्यक्ति के मौलिक अधिकारों का हनन होता है, इसलिये भी इस कानून की आलोचना की जाती है। यद्यपि मौलिक अधिकारों की रक्षा हेतु न्यायालय जाने का विकल्प सदैव रहता है।
धारा 144 पर न्यायालय की राय :
- वर्ष 1967 में राम मनोहर लोहिया मामले में इस कानून को पुनः न्यायालय के समक्ष चुनौती दी गई, जिसे न्यायालय ने खारिज कर दिया और इस कानून के पक्ष में कहा कि “कोई भी लोकतंत्र जीवित नहीं रह सकता यदि उस देश के किसी एक वर्ग के लोगों को आसानी से लोक व्यवस्था को नुकसान पहुँचाने दिया जाए”।
- एक अन्य हालिया निर्णय में सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि इस धारा का प्रयोग नागरिकों को शांति से एकत्रित होने के मौलिक अधिकार पर प्रतिबंध लगाने के लिये नहीं किया जा सकता है, इसे किसी भी लोकतांत्रिक अधिकारों की राय या शिकायत की वैध अभिव्यक्ति को रोकने के 'उपकरण' के रूप में प्रयोग नहीं किया जा सकता है।
- - न्यायपालिका ने मधु लिमये बनाम उप-जिलाधिकारी मामले में 1970 में भी इसी बात को और पुख्या किया।
- - इस मामले में तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश एम- हिदायतुल्लाह की अध्यक्षता वाली सात न्यायाधीशों की पीठ ने भी धारा-144 की संवैधानिकता को सही बताया।
- साथ ही धारा-144 को अभिव्यक्ति की स्वतन्त्रता का उल्लंघन नही माना जा सकता, क्योंकि यह धारा भारतीय संविधान के अर्न्तगत आने वाले अनुच्छेद-19(2) को युक्तियुक्त प्रतिबन्धों अर्थात् Reasonable Restrictions के दायरे में आता है।
निष्कर्ष :
- धारा 144 आपात स्थिति से निपटने में मदद करने के लिये एक महत्त्वपूर्ण उपकरण है, किंतु इसका अनुचित प्रयोग इस संबंध में चिंता उत्पन्न करता है।
- इस धारा को लागू करने से पूर्व मजिस्ट्रेट को जाँच करनी चाहिये और मामले की तात्कालिकता को दर्ज करना चाहिये।
- आकस्मिक स्थितियों से निपटने के लिये विधायिका द्वारा परिपूर्ण शक्तियों के अनुदान और मौलिक अधिकारों के तहत नागरिकों को दी गई व्यक्तिगत स्वतंत्रता तथा अन्य प्रकार की स्वतंत्रताओं की रक्षा करने की आवश्यकता के बीच संतुलन स्थापित किया जाना महत्त्वपूर्ण है।
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