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वैश्विक चिंता का कारण बना : स्वेज नहर

 

वैश्विक चिंता का कारण बना : स्वेज नहर 


वैश्विक चिंता का कारण बना : स्वेज नहर


23 मार्च, 2021 को बंद हुए स्वेज नहर को फिर से संचालन के योग्य बना दिया गया है। इस घटना से भारत सहित सम्पूर्ण विश्व प्रभावित रहे हैं।

हाल ही में एक बड़े कंटेनर पोत, एम.वी. एवर गिवेन (MV Ever Given) के कारण स्वेज़ नहर का पारगमन मार्ग अवरुद्ध हो गया। विश्व के सबसे महत्त्वपूर्ण पारगमन मार्गों में से एक मानी जाने वाली स्वेज़ नहर में इस तरह के ब्लॉकेज/अवरोध के चलते वैश्विक शिपिंग में अत्यधिक व्यवधान उत्पन्न हो गया।

यह अस्थायी अवरुद्धता वैश्विक व्यापार के लिये बहुत महँगी साबित हुई है, क्योंकि अनुमान लगाया जा रहा है कि इसके कारण प्रति घंटे लगभग 400 मिलियन डॉलर का नुकसान हुआ है। जटिल एवं नाजुक रूप से संतुलित वैश्विक आपूर्ति-शृंखला और तेल की कीमतों पर इसके नकारात्मक प्रभाव के कारण ग्राहकों पर अतिरिक्त भार पड़ेगा।

स्वेज़ नहर का पारगमन मार्ग अवरुद्ध होने के कारण व्यापार और अर्थव्यवस्था पर पड़ने वाला नकारात्मक प्रभाव वैश्विक व्यापार की नाजुकता की ओर इशारा करता है जिसे मज़बूत किये जाने की आवश्यकता है।

परिचय :

  • ताइवान की एवरग्रीन कंपनी द्वारा संचालित एवरगिवेन जहाज जो चीन से रोटरडम (नीदरलैंड ) के लिए रवाना हुआ था , 23 मार्च 2021 को स्वेज नहर में पोर्ट टोफिक के पास फस गया, जिससे इस मार्ग में संचालन बंद हो गया था ।
  • इस घटना के कारण भारत सहित सम्पूर्ण विश्व को व्यापारिक हानि का सामना करना पड़ा। यह जहाज जो लगभग 400 मीटर लम्बा था, बहुत तीव्र वायु प्रवाह से प्रभावित हो कर स्वेज नहर के दोनों तटों पर फस गया। लगभग 1 हफ्ते की कड़ी मेहनत के उपरान्त जहाज को निकाला जा चुका है, परन्तु इस घटना ने कई प्रश्नो को जन्म दिया है।

जहाज एवर गिवेन के विषय में :

  • इसका निर्माण 2018 में हुआ था।
  • यह ताइवानी कंपनी एवरग्रीन मरीन द्वारा संचालित होती है।
  • यह लगभग 400 मीटर लम्बी है।
  • इस जहाज का संचालन 25 सदस्यों का भारतीय चालक दल कर रहा है।

स्वेज़ नहर : पृष्ठभूमि :

  • स्वेज़ नहर की उत्पत्ति का इतिहास बहुत पुराना है, मिस्र के राजा सेनूस्रेट तृतीय फिरौन के शासनकाल (1874 ईसा पूर्व) के दौरान प्रथम जलमार्ग की खुदाई की गई थी।
    • हालाँकि इस अल्पविकसित नहर को सिल्टिंग यानी गाद जमा होने के कारण छोड़ दिया गया था, और बीच की शताब्दियों के दौरान इसे कई बार खोला भी गया था।
  • फ्राँसीसियों के प्रयासों द्वारा 19वीं शताब्दी के मध्य में आधुनिक स्वेज़ नहर का निर्माण किया गया और 17 नवंबर, 1869 को इसे नेविगेशन के लिये खोला गया था।
  • वर्ष 1858 में यूनिवर्सल स्वेज़ शिप कैनाल कंपनी (Universal Suez Ship Canal Company) को 99 वर्षों के लिये नहर के निर्माण और संचालन का काम सौंपा गया, जिसके बाद इसका अधिकार मिस्र सरकार को सौंपा जाना था।
  • मिस्र स्थित इस कृत्रिम समुद्री जलमार्ग का निर्माण भूमध्य सागर और लाल सागर को जोड़ने के लिये वर्ष 1859 और 1869 के बीच किया गया था।
  • स्वेज़ नहर यूरोप और एशिया को जोड़ने में भी महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती है, साथ ही यह अफ्रीका में केप ऑफ गुड होप से होकर नेविगेट (जलयात्रा) करने की आवश्यकता को समाप्त करती है, और इस तरह 7,000 किमी. तक की दूरी को कम करती है।
  • स्वेज़ नहर के कारण ही एशिया और यूरोप के बीच मिस्र की स्थिति एक रणनीतिक जंक्शन के रूप में है। उपनिवेशों और अर्द्ध-उपनिवेशों द्वारा ज़ोर दिये जाने के बाद जमाल अब्देल नासेर ने वर्ष 1956 में इस नहर का राष्ट्रीयकरण किया।
    • वर्ष 1956 में ब्रिटेन, फ्राँस और इज़रायल ने इस नहर पर निर्भर अपने कॉर्पोरेट हितों की रक्षा के लिये मिस्र पर आक्रमण किया। इस युद्ध को स्वेज़ संकट (Suez Crisis) की संज्ञा दी गई।
  • स्वेज नहर के निर्माण से वर्तमान तक की स्थिति :

    • औद्योगिकीकरण के उपरांत ब्रिटेन तथा फ़्रांस जैसे - देशो में उपनिवेशों को लेकर होड़ मची। सभी साम्राज्यवादी देश अपने - अपने उपनिवेशों को विजित करने तथा उनपर नियंत्रण स्थापित करने के प्रयासों में संलग्न हो गए।
    • एक अमेरिकी इतिहासकार, अल्फ्रेड टी महन ने एक सिद्धांत दिया जिसमे उन्होंने बताया कि किसी देश की समुद्री ताकत उस देश के नियंत्रण को प्रभावी करेगी तथा उन्होंने हिन्द महासागर को सभी महासागरों की कुंजी बताया।

    उस समय दक्षिण तथा दक्षिण पूर्व एशिया पर ब्रिटेन तथा फ़्रांस का उपनिवेश था। इन देशो में से दक्षिण एशिया तक आने के लिए दो मार्ग थे -

  1. स्थल मार्ग यहाँ ओटोमन साम्राज्य रूस तथा अफगानिस्तान का संकट था।
  2. सम्पूर्ण अफ्रीका महाद्वीप को पार कर केप ऑफ़ गुड होप से होते हुए आने का मार्ग था , परन्तु यह मार्ग समुद्री डाकुओ से संकट ग्रस्त था तथा यहाँ से आने में समय अधिक लगता था।
    • इस स्थिति में स्वेज नहर के निर्माण की आवश्यकता हुई।

      • 1858 में, फर्डिनेंड डी लेसेप्स ने नहर के निर्माण के व्यक्त उद्देश्य के लिए स्वेज नहर कंपनी का गठन किया। इसमें फ्रांस , तुर्की ,मिस्र के शेयर थे बाद में इस कंपनी के शेयर को ब्रिटेन द्वारा खरीद लिया गया। 1859 में इस नहर का निर्माण आरम्भ हुआ तथा यह नहर 99 वर्षों के लिए स्वेज नहर कंपनी को लीज पर दे दिया गया।
      • 1869 में पहली बार यहाँ से नौवहन आरम्भ हुआ।
      • 1888 ई. में एक अंतरराष्ट्रीय उपसंधि के अनुसार यह नहर युद्ध और शांति दोनों कालों में सब राष्ट्रों के जहाजों के लिए बिना रोकटोक समान परिवहन की अनुमति दी गई । इस समझौते के अनुसार कोई भी सेना नहीं रख सकता था।
      • अंग्रेजों ने 1904 ई. में संधि का उलंघन किया तथा यहाँ सेनाएँ बैठा दीं और उन्हीं राष्ट्रों के जहाजों के आने-जाने की अनुमति दी जाने लगी जो युद्धरत नहीं थे।
      • 1947 ई. में स्वेज कैनाल कंपनी और मिस्र सरकार के बीच यह निश्चय हुआ कि कंपनी के साथ 99 वर्ष का पट्टा पूर्ण हो जाने पर 1968 में इसका स्वामित्व मिस्र सरकार के हाथ आ जाएगा।
      • 1954 ई. में ब्रिटेन तथा मिस्र के मध्य एक अन्य समझौता हुआ जिसके अनुसार ब्रिटेन की सरकार कुछ शर्तों के साथ नहर से अपनी सेना हटा लेने पर राजी हो गई।
      • 1956 में मिस्र ने इस लीज पूर्ण होने के पूर्व इस नहर का राष्ट्रीयकरण कर दिया। इसे ही स्वेज संकट के नाम से जाना जाता है।
      • 1957 में ब्रिटेन -फ़्रांस -इजराइल तथा मिस्र के युद्ध के कारण यह नहर 1 वर्ष तक बंद रही।
      • 1967 में इजराइल तथा मिस्र के युद्ध के दौरान भी यह नहर 8 वर्षो के लिए बंद रही।
      • इसके उपरांत यह नहर राजनैतिक कारणों से बंद नहीं रही। 2017 में एक जापानी कंटेनर तकनीकी कारणो से यहाँ फस गया था जो की कुछ घंटो में ही संचालित हो गया था।

      स्वेज नहर का महत्व :

      • उपनिवेशीकरण को सक्षम बनाने में: स्वेज़ नहर का निर्माण वैश्विक समुद्री कनेक्टिविटी की दृष्टि से एक महत्त्वपूर्ण विकास था, और इसने औपनिवेशिक इतिहास को स्पष्ट रूप से प्रभावित किया।
        • ब्रिटिश साम्राज्य का उदय काफी हद तक इस नहर द्वारा ही सक्षम हुआ था।
      • वैश्विक व्यापार की जीवन-रेखा: यह नहर पश्चिम और पूर्व के बीच सभी प्रकार के व्यापार हेतु एक जीवन रेखा के रूप में कार्य करती है क्योंकि प्रतिवर्ष लगभग 10% वैश्विक व्यापार इस मार्ग से ही होता है।
        • नहर के माध्यम से प्रतिदिन भेजे जाने वाले माल की कीमत अनुमानतः 9.5 बिलियन डॉलर है और यह नहर मिस्र सरकार के लिये राजस्व के एक बड़े हिस्से का सृजन करती है।
      • ग्लोबल चोक पॉइंट्स में से एक: वोल्गा-डॉन और ग्रैंड कैनाल (चीन) के अलावा स्वेज़ और पनामा (जो प्रशांत और अटलांटिक महासागरों को जोड़ती है) वैश्विक समुद्री क्षेत्र की दो सबसे महत्त्वपूर्ण नहरें हैं।

      स्वेज़ के अवरुद्ध होने का वैश्विक प्रभाव :

    • 7 दिनों में लगभग 350 जहाजों का आवागमन ठप्प हो गया था।
    • एशिया तथा यूरोप के मध्य होने वाले व्यापार के लिए स्वेज नहर के अतिरिक्त कोई अन्य प्रभावशाली मार्ग न होने के कारण भारत ,चीन ,सिंगापुर ,दक्षिण कोरिया , यूरोप तथा अमेरिका के व्यापार पर प्रभाव पड़ा है।
    • सप्लाई चेन के रुकने से फूल , फल , कृषिगत वस्तु के व्यापार को नुकसान हुआ है।
    • ब्रंट आयल के वैश्विक कीमत में 3% की कमी देखने को मिली है।
    • भारत का क्रूड आयल का आयात तथा पेट्रोलियम उत्पादों का निर्यात प्रभावित हुआ है।
    • भारत के कृषि तथा समुद्री वस्तुओं का व्यापार भी प्रभावित हुआ था।
    • भारत सहित सम्पूर्ण विश्व के बीमा उद्योग क्षतिपूर्ति की राशि देनी पड़ी।
    • यूरोप में तेल की कीमत कुछ समय के लिए बढ़ सकती है।
    • इस दौरान कई जहाजों ने अफ्रीका महाद्वीप पार करने का मार्ग चुना तथा उन्हें ईंधन का लगभग 26000 डॉलर प्रतिदिन का अतिरिक्त व्यय सहन करना पड़ा जो वस्तुओ की कीमत को बढ़ा देगा।

    जहाज को निकालने में किये गए प्रयत्न :

    • वहां से मड तथा सैंड को हटाया गया।
    • 14 टगबोट्स की सहायता से जहाज को खींचा गया।
    • इसी समय इस क्षेत्र में आये एक उच्च ज्वार ने जहाज को उत्प्लावित करने में सहायता दी।
    • अब इस जहाज को ग्रेट बिटर लेक पर रोक कर निरिक्षण किया जायेगा।

    भारत द्वारा इस संकट के प्रभावों से निदान के लिए किये गए प्रयास :

    भारत सरकार के बाणिज्य विभाग के लॉजिस्टिक क्षेत्रक के सचिव की अध्यक्षता में एडीजी (शिपिंग ), पोर्ट तथा जलमार्ग मंत्रालय , एफआईईओ( भारतीय निर्यात संगठन संघ) ,सीएसएलए की संयुक्त बैठक में 4 सूत्रीय कार्यक्रम को लागू किया गया। जिसके मुख्य विन्दु निम्नलिखित थे -

    1. माल -भाड़ो की दर को स्थिर करने का प्रयास
    2. एफआईईओ , एमपीईडीए (समुद्री उत्पाद निर्यात विकास प्राधिकरण) तथा एपीईडीए (कृषि एवं प्रसंस्कृत खाद्य उत्पाद निर्यात विकास प्राधिकरण ) एक साथ ख़राब होने तथा न ख़राब होने वाले वस्तुओ को पृथक करेंगे।
    3. रूकावट ख़त्म होने के उपरान्त कई बंदरगाहों (मुंद्रा , हजीरा ) जहाँ दबाव बढ़ने की आशंका है, उन बंदरगाहों का क्षमता विकास किया जायेगा।
    4. नए मार्गो की खोज की जाएगी।

    निष्कर्ष :

    यह देखा जा सकता है कि भले ही वर्ष 1869 और 1956 से अब तक बहुत कुछ बदल गया है “जहाँ डेटा नए तेल की तरह है” फिर भी वैश्विक अर्थव्यवस्था का एक बड़ा हिस्सा ऐसा है जो अब भी इतिहास में तैयार की गई वास्तविक प्रणालियों के आधार पर चलता है।
    राजकोषीय और आपूर्ति-शृंखला में व्यवधान के कारण उत्पन्न परिणामों को देखते हुए स्वेज़ नहर के संदर्भ में विशिष्ट मौजूदा प्रक्रियाओं और प्रोटोकॉलों की निष्पक्ष समीक्षा करने की आवश्यकता है तथा निश्चित ही इसे सर्वोच्च प्राथमिकता दी जानी चाहिये।
    यद्यपि यह संकट 1 सप्ताह में समाप्त हो गया तथा इस संकट के प्रभाव भी कुछ दिनों में संतुलित हो जायेंगे परन्तु इस संकट ने कई मूल भूत प्रश्नो को जन्म दिया है जिसपर सम्पूर्ण विश्व को ध्यान देना आवश्यक है। कहीं न कहीं क्षमता बढ़ने के कारण जहाजों की आकृति में लगातार हो रही वृद्धि ने स्वेज नहर की क्षमता वृद्धि की आवश्यकता को दिखाया है। जिसप्रकार 2015 में स्वेज के उत्तरी हिस्से में टू लेन वॉटरवे का निर्माण किया गया है, उसी प्रकार दक्षिणी भाग को भी विकसित करने की आवश्यकता है। इसके साथ ही साथ अन्य व्यापारिक मार्गो की खोज करना भी आवश्यक हो गया है।



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