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मराठा आरक्षण असंवैधानिक : सर्वोच्च न्यायालय

 

मराठा आरक्षण असंवैधानिक : सर्वोच्च न्यायालय

मराठा आरक्षण असंवैधानिक : सर्वोच्च न्यायालय


हाल ही में सर्वोच्च न्यायालय (SC) ने महाराष्ट्र में आरक्षण संबंधी उस कानून को असंवैधानिक घोषित कर दिया है, जिसमें मराठा समुदाय को आरक्षण का लाभ देने संबंधी प्रावधान किये गए थे। 

प्रमुख बिंदु: 

पृष्ठभूमि:

  • वर्ष 2017: सेवानिवृत्त न्यायमूर्ति एन. जी. गायकवाड की अध्यक्षता में गठित 11 सदस्यीय आयोग ने मराठा समुदाय को सामाजिक और शैक्षिक रूप से पिछड़े वर्ग(Socially and Educationally Backward Class- SEBC) के तहत आरक्षण की सिफारिश की।
  • वर्ष 2018: महाराष्ट्र विधानसभा में मराठा समुदाय हेतु  16% आरक्षण का प्रस्ताव पारित किया गया।
  • वर्ष 2018: आरक्षण को बरकरार रखते हुए बॉम्बे उच्च न्यायालय ने कहा कि आरक्षण की सीमा 16% के बजाय शिक्षा में 12% और नौकरियों में 13% से अधिक नहीं होनी चाहिये।
  • वर्ष 2020: सर्वोच्च न्यायालय ने इस कानून के क्रियान्वयन पर रोक लगा दी, और इस मामले को भारत के मुख्य न्यायाधीश के पास एक बड़ी खंडपीठ को दिये जाने के लिये हस्तांतरित कर दिया।

वर्तमान नियम: 

  • मौलिक अधिकारों का उल्लंघन:
    • मराठा समुदाय हेतु आरक्षण की अलग व्यवस्था अनुच्छेद-14 (समानता का अधिकार) और अनुच्छेद-21 (विधि की सम्यक प्रक्रिया) का उल्लंघन करती है।
    • 50% आरक्षण की सीमा का उल्लंघन करने वाली स्थिति एक ‘जाति शासित’ समाज का निर्माण करेगी।
      • 12% और 13% (शिक्षा और नौकरियों में) मराठा आरक्षण ने कुल आरक्षण सीमा को क्रमशः 64% और 65% तक बढ़ा दिया।
      • वर्ष 1992 में इंदिरा साहनी निर्णय (Indira Sawhney judgment) में सर्वोच्च न्यायालय  ने स्पष्ट रूप से कहा था कि दूर-दराज़ के इलाकों की आबादी को मुख्यधारा में लाने हेतु केवल कुछ असाधारण परिस्थितियों में ही 50% के नियम में कुछ ढील दी जा सकती है।
  • कानून के क्रियान्वयन पर रोक:
    • महाराष्ट्र के कानून को सही ठहराने वाले बंबई उच्च न्यायालय के निर्णय के बाद मराठा कोटा के तहत की गई नियुक्तियों की यथास्थिति बनी रहेगी, परंतु इस प्रकार की नियुक्तियों में आगे किसी भी प्रकार के आरक्षण का लाभ नहीं दिया जाएगा।
  • राज्य के पास  SEBCs की पहचान करने का अधिकार नहीं:
    • प्रत्येक राज्य और केंद्र शासित प्रदेश के संबंध में भारत के राष्ट्रपति द्वारा अधिसूचित SEBCs की एक ही सूची होगी और राज्य केवल इस सूची में बदलाव से संबंधित सिफारिशें कर सकते हैं।
    • बेंच ने सर्वसम्मति से 102वें संविधान संशोधन की संवैधानिक वैधता को बरकरार रखा, लेकिन इस सवाल पर मतभेद था कि क्या इसने राज्यों की SEBCs की पहचाने की शक्ति को प्रभावित किया है।
  • NCBC को निर्देश:
    • राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग से SEBCs की सिफारिश के क्रियान्वयन में तेज़ी लाने हेतु कहा ताकि राष्ट्रपति, राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के संबंध में SEBCs की सूची युक्त अधिसूचना को शीघ्रता से प्रकाशित कर सकें।

102वांँ संशोधन अधिनियम, 2018: 

  • इस अधिनियम के  तहत सविधान में अनुच्छेद 338B और 342A को जोड़ा गया।
  • अनुच्छेद 338B पिछड़े वर्गों के लिये एक राष्ट्रीय आयोग की स्थापना से संबंधित है।
  • अनुच्छेद 342A राष्ट्रपति को राज्य में सामाजिक और शैक्षिक रूप से पिछड़े समुदायों को अधिसूचित करने का अधिकार प्रदान करता है।
    • यदि पिछड़े वर्गों की सूची में संशोधन किया जाना है, तो इसके लिये संसद द्वारा अधिनियमित कानून की आवश्यकता होगी।

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