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चीन का 'कृत्रिम सूर्य' ईएएसटी : विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी

            चीन का 'कृत्रिम सूर्य' ईएएसटी : विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी


चीन का 'कृत्रिम सूर्य' ईएएसटी : विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी

हाल ही में चीन के ‘प्रायोगिक उन्नत सुपरकंडक्टिंग टोकामक (Experimental Advanced Superconducting Tokamak- EAST) ने 288 मिलियन डिग्री फारेनहाइट का उच्चतम तापमान हासिल किया, जो सूर्य के तापमान से दस गुना अधिक है।

  • चीन अकेला ऐसा देश नहीं है, जिसने उच्च प्लाज्मा तापमान हासिल किया है। वर्ष 2020 में दक्षिण कोरिया के कोरिया सुपरकंडक्टिंग टोकामक एडवांस्ड रिसर्च (Korea Superconducting Tokamak Advanced Research) रिएक्टर ने 20 सेकंड के लिये 100 मिलियन डिग्री सेल्सियस से अधिक के प्लाज़्मा तापमान को बनाए रखते हुए एक नया रिकॉर्ड बनाया।

टोकामक :

  • यह संलयन ऊर्जा को नियंत्रित करने के लिये तैयार की गई एक प्रायोगिक मशीन है।
  • इसके अंदर परमाणुओं के संलयन से उत्पादित ऊर्जा को एक विशाल बर्तन में ऊष्मा के रूप में अवशोषित किया जाता है।
  • संलयन बिजली संयंत्र (Fusion Power Plant) पारंपरिक बिजली संयंत्र की तरह इस गर्मी का उपयोग भाप और फिर टर्बाइन तथा जनरेटर के माध्यम से बिजली पैदा करने के लिये करता है।

प्रमुख बिंदु :

प्रायोगिक उन्नत सुपरकंडक्टिंग टोकामक के विषय में :

  • ईएएसटी रिएक्टर चीन के हेफेई में चीनी विज्ञान अकादमी के प्लाज़्मा भौतिकी संस्थान (ASIPP) में स्थित एक उन्नत परमाणु संलयन प्रयोगात्मक अनुसंधान उपकरण है।

स्थापना :

  • ईएएसटी को पहली बार वर्ष 2006 में आरंभ किया गया था।

उद्देश्य :

  • इस कृत्रिम सूर्य का उद्देश्य परमाणु संलयन की प्रक्रिया को दोहराना है, यह वही प्रतिक्रिया है जो सूर्य को शक्ति प्रदान करती है।
  • यह इंटरनेशनल थर्मोन्यूक्लियर एक्सपेरिमेंटल रिएक्टर (International Thermonuclear Experimental Reactor) सुविधा का हिस्सा है, जो वर्ष 2035 में चालू होने के बाद विश्व का सबसे बड़ा परमाणु संलयन रिएक्टर बन जाएगा।
    • आईटीईआर के सदस्यों में चीन, यूरोपीय संघ, भारत, जापान, कोरिया, रूस और संयुक्त राज्य अमेरिका शामिल हैं।

कार्यचालन :

  • यह परमाणु संलयन प्रक्रिया पर आधारित है, जो सूर्य और अन्य तारों द्वारा की जाती है।
  • परमाणु संलयन करने के लिये हाइड्रोजन के परमाणुओं पर अत्यधिक ताप और दबाव डाला जाता है, ताकि वे एक साथ जुड़ जाए। हाइड्रोजन में पाए जाने वाले ड्यूटेरियम और ट्रिटियम दोनों के नाभिक एक साथ मिलकर एक हीलियम नाभिक और एक न्यूट्रॉन के साथ ऊर्जा का निर्माण करते हैं।
  • गैसीय हाइड्रोजन ईंधन को 150 मिलियन डिग्री सेल्सियस से अधिक के तापमान पर गर्म किया जाता है, ताकि यह उप-परमाणु कणों का एक गर्म प्लाज़्मा (विद्युत चार्ज गैस) बना सके।
  • एक मज़बूत चुंबकीय क्षेत्र की मदद से प्लाज़्मा को रिएक्टर की दीवारों से दूर रखा जाता है, ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि यह ठंडा न हो और बड़ी मात्रा में ऊर्जा उत्पन्न करने की क्षमता कम हो जाए।

चीन में अन्य टोकामक :

  • ईएएसटी के अलावा चीन वर्तमान में HL-2A रिएक्टर के साथ-साथ J-TEXT का भी संचालन कर रहा है।
  • HL-2M टोकामक, चीन के सबसे बड़े और सबसे उन्नत परमाणु संलयन प्रायोगिक अनुसंधान उपकरण को दिसंबर 2020 में पहली बार सफलतापूर्वक संचालित किया गया था। यह चीन की परमाणु ऊर्जा अनुसंधान क्षमताओं के विकास में एक महत्त्वपूर्ण उपलब्धि थी।

महत्त्व :

  • यह चीन के हरित विकास (Green Development) के लिये महत्त्वपूर्ण है।
  • नाभिकीय संलयन एक ऐसी प्रक्रिया है, जिसके माध्यम से बड़ी मात्रा में अपशिष्ट उत्पन्न किये बिना उच्च स्तर की ऊर्जा का उत्पादन किया जाता है। परमाणु विखंडन के विपरीत संलयन ग्रीनहाउस गैसों का उत्सर्जन नहीं करता है, और इसे कम जोखिम के साथ एक सुरक्षित प्रक्रिया माना जाता है।

परमाणु अभिक्रियाएँ -

विवरण :

  • एक परमाणु अभिक्रिया वह प्रक्रिया है, जिसमें दो नाभिक अथवा एक नाभिक और एक बाह्य उप-परमाणु कण एक या अधिक नए न्यूक्लाइड का उत्पादन करने के लिये आपस में टकराते हैं।
  • इस प्रकार एक परमाणु अभिक्रिया में कम-से-कम एक न्यूक्लाइड का दूसरे में परिवर्तन होना चाहिये।

प्रकार:

  • नाभिकीय विखंडन:
    • इस प्रक्रिया में एक परमाणु नाभिक, दो संतति नाभिकों (Daughter Nuclei) में विभाजित होता है।
    • यह विभाजन रेडियोधर्मी क्षय द्वारा सहज प्राकृतिक रूप से या प्रयोगशाला में आवश्यक परिस्थितियों (न्यूट्रॉन, अल्फा आदि कणों की बमबारी करके) की उपस्थिति में किया जा सकता है।
    • विखंडन से प्राप्त हुए खंडों/अंशों का एक संयुक्त द्रव्यमान होता है, जो मूल परमाणु से कम होता है। द्रव्यमान में हुई यह क्षति सामान्यतः परमाणु ऊर्जा में परिवर्तित हो जाती है।
    • वर्तमान में सभी वाणिज्यिक परमाणु रिएक्टर, नाभिकीय विखंडन की प्रक्रिया पर आधारित हैं।
  • नाभिकीय संलयन :
    • नाभिकीय संलयन की प्रक्रिया को दो हल्के परमाणुओं के संयोजन से एक भारी परमाणु नाभिक के निर्माण के रूप में परिभाषित किया जाता है।
    • इस तरह की नाभिकीय संलयन प्रतिक्रियाएँ सूर्य और अन्य तारों में ऊर्जा का स्रोत होती हैं।
    • इस प्रक्रिया में नाभिक को संलयित करने के लिये अधिक मात्रा में ऊर्जा की आवश्यकता होती है। इस प्रक्रिया के लिये कई मिलियन डिग्री तापमान तथा कई मिलियन पास्कल दाब वाली परिस्थिति आवश्यक होती है।
      • हाइड्रोजन बम (Hydrogen Bomb) का निर्माण एक तापनाभिकीय संलयन (Thermonuclear Fusion) अभिक्रिया पर आधारित है। हालांँकि प्रारंभिक ऊर्जा प्रदान करने के लिये  हाइड्रोजन बम के मूल में यूरेनियम या प्लूटोनियम के विखंडन पर आधारित एक परमाणु बम को स्थापित किया जाता है।


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