परिचय :-
लालबहादुर शास्त्री भारत के दूसरे प्रधानमन्त्री तथा भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन के प्रमुख आन्दोलनकर्ताओ में से एक थे। वह 9 जून 1964 से 11 जनवरी 1966 लगभग अठारह महीने भारत के प्रधानमन्त्री रहे। इनका काल में विभिन्न प्रकार के आर्थिक सुधार यथा हरित क्रांति तथा भारत-पाकिस्तान युद्ध के लिए जाना जाता है।लाल बहादुर शास्त्री जी का प्रारम्भिक जीवन :-
लालबहादुर शास्त्री का जन्म 1904 में मुगलसराय (उत्तर प्रदेश) में एक कायस्थ परिवार में मुंशी शारदा प्रसाद श्रीवास्तव के यहाँ हुआ था। उनके पिता प्राथमिक विद्यालय में शिक्षक थे, अत: सब उन्हें मुंशीजी ही कहते थे। बाद में उन्होंने राजस्व विभाग में लिपिक (क्लर्क) की नौकरी कर ली थी । लालबहादुर की माँ का नाम रामदुलारी था। परिवार में सबसे छोटा होने के कारण बालक लालबहादुर को परिवार वाले प्यार में नन्हें कहकर ही बुलाया करते थे। जब नन्हें अठारह महीने का हुआ दुर्भाग्य से पिता का निधन हो गया। उनकी माँ रामदुलारी अपने पिता हजारीलाल के घर मिर्ज़ापुर चली गयीं। बिना। ननिहाल में रहते हुए उसने प्राथमिक शिक्षा ग्रहण की। उसके बाद की शिक्षा हरिश्चन्द्र हाई स्कूल और काशी विद्यापीठ में हुई। काशी विद्यापीठ से शास्त्री की उपाधि मिलने के बाद उन्होंने जन्म से चला आ रहा जातिसूचक शब्द श्रीवास्तव हमेशा हमेशा के लिये हटा दिया और अपने नाम के आगे 'शास्त्री' लगा लिया। इसके पश्चात् शास्त्री शब्द लालबहादुर के नाम का पर्याय ही बन गया।
भारत की स्वतंत्रता के पश्चात शास्त्रीजी को उत्तर प्रदेश के संसदीय सचिव के रूप में नियुक्त किया गया था। गोविंद बल्लभ पंत के मंत्रिमंडल में उन्हें पुलिस एवं परिवहन मंत्रालय सौंपा गया। परिवहन मंत्री के कार्यकाल में उन्होंने प्रथम बार महिला संवाहकों (कण्डक्टर्स) की नियुक्ति की थी। पुलिस मंत्री होने के बाद उन्होंने भीड़ को नियंत्रण में रखने के लिये लाठी की जगह पानी की बौछार का प्रयोग प्रारंभ कराया। 1951 में, जवाहरलाल नेहरू के नेतृत्व में वह अखिल भारत कांग्रेस कमेटी के महासचिव नियुक्त किये गये। उन्होंने 1952, 1957 व 1962 के चुनावों में कांग्रेस पार्टी को भारी बहुमत से जिताने के लिये बहुत परिश्रम किया।
राजनीतिक जीवन :-
संस्कृत भाषा में स्नातक स्तर तक की शिक्षा समाप्त करने के पश्चात् वे भारत सेवक संघ से जुड़ गये और देशसेवा का व्रत लेते हुए यहीं से अपने राजनैतिक जीवन की शुरुआत की। शास्त्रीजी सच्चे गान्धीवादी थे, जिन्होंने अपना सारा जीवन सादगी से बिताया और उसे गरीबों की सेवा में लगाया। भारतीय स्वाधीनता संग्राम के सभी महत्वपूर्ण कार्यक्रमों व आन्दोलनों में उनकी सक्रिय भागीदारी रही और उसके परिणामस्वरूप उन्हें कई बार जेलों में भी रहना पड़ा। स्वाधीनता संग्राम के जिन आन्दोलनों में उनकी महत्वपूर्ण भूमिका रही उनमें 1921 का असहयोग आंदोलन, 1930 का दांडी मार्च तथा 1942 का भारत छोड़ो आन्दोलन उल्लेखनीय हैं।
दूसरे विश्व युद्ध में इंग्लैण्ड को बुरी तरह उलझता देख जैसे ही नेताजी ने आजाद हिन्द फौज को "दिल्ली चलो" का नारा दिया, गान्धी जी ने मौके की नजाकत को भाँपते हुए 8 अगस्त 1942 की रात में ही बम्बई से अँग्रेजों को "भारत छोड़ो" व भारतीयों को "करो या मरो" का आदेश जारी किया और सरकारी सुरक्षा में यरवदा पुणे स्थित आगा खान पैलेस में चले गये। 9 अगस्त 1942 के दिन शास्त्रीजी ने इलाहाबाद पहुँचकर इस आन्दोलन के गान्धीवादी नारे को चतुराई पूर्वक "मरो नहीं, मारो!" में बदल दिया और अप्रत्याशित रूप से क्रान्ति की दावानल को पूरे देश में प्रचण्ड रूप दे दिया। पूरे ग्यारह दिन तक भूमिगत रहते हुए यह आन्दोलन चलाने के बाद 19 अगस्त 1942 को शास्त्रीजी गिरफ्तार हो गये।
शास्त्रीजी के राजनीतिक दिग्दर्शकों में पुरुषोत्तमदास टंडन और पण्डित गोविंद बल्लभ पंत के अतिरिक्त जवाहरलाल नेहरू भी शामिल थे। सबसे पहले 1929 में इलाहाबाद आने के बाद उन्होंने टण्डनजी के साथ भारत सेवक संघ की इलाहाबाद इकाई के सचिव के रूप में काम करना शुरू किया। इलाहाबाद में रहते हुए ही नेहरूजी के साथ उनकी निकटता बढ़ी। इसके बाद तो शास्त्रीजी का कद निरन्तर बढ़ता ही चला गया और एक के बाद एक सफलता की सीढियाँ चढ़ते हुए वे नेहरूजी के मंत्रिमण्डल में गृहमन्त्री के प्रमुख पद तक जा पहुँचे। और इतना ही नहीं, नेहरू के निधन के पश्चात भारतवर्ष के प्रधान मन्त्री भी बने।
प्रधानमंत्री के रूप में लाल बहादुर शास्त्री:-
जवाहरलाल नेहरू का उनके प्रधानमंत्री के कार्यकाल के दौरान 27 मई, 1964 को देहावसान हो जाने के बाद साफ सुथरी छवि के कारण शास्त्रीजी को 1964 में देश का प्रधानमंत्री बनाया गया। उन्होंने 9 जून 1964 को भारत के प्रधानमंत्री का पद भार ग्रहण किया।
उनके शासनकाल में 1965 का भारत पाक युद्ध शुरू हो गया। इससे तीन वर्ष पूर्व चीन का युद्ध, भारत हार चुका था। शास्त्रीजी ने अप्रत्याशित रूप से हुए इस युद्ध में नेहरू के मुकाबले राष्ट्र को उत्तम नेतृत्व प्रदान किया और जय जवान-जय किसान का नारा दिया। इससे भारत की जनता का मनोबल बढ़ा और सारा देश एकजुट हो गया। और पाकिस्तान को करारी शिकस्त दी। इसकी कल्पना पाकिस्तान ने कभी सपने में भी नहीं की थी।
हरित क्रांति तथा श्वेत क्रांति :-
इस समय का भारत भोजन संकट से गुजर रहा था। अमेरिका ने भारत की अस्मिता को आघात पहुंचाते हुए खाद्यानो की आपूर्ति कर रहा था। ऐसे में भारतीय प्रधानमंत्री ने उपवास एवं व्रत का सहारा लिया। इसके साथ ही साथ इन्होने हरित क्रांति तथा श्वेत क्रांति का बीजारोपण किया गया, जिसके परिणाम स्वरूप आज भारत कृषि उत्पादों का प्रमुख निर्यातक तथा दुग्ध उत्पादन में प्रथम स्थान पर स्थापित हो गया है।नवीन संस्थाओ का गठन :-
इनके काल में भारत को विकास के पथ पर अग्रसर करने के उद्देश्य से इलाहाबाद में राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी संस्थान, ट्राम्बे में प्लूटोनियम प्रसंस्करण सयंत्र की स्थापना, आईसीएमआर का पुनर्गठन , होमी जहाँगीर भाभा की पहल पर स्टडी ऑफ़ नुक्लेअर एक्सप्लोजन फॉर पीसफुल पर्पस की स्थापना की। इसके साथ चेन्नई पत्तन का जवाहर डाक ,तथा अपर कृष्णा परियोजना की नीव इन्ही के समय में रखी गई।भारत पाकिस्तान युद्ध :-
1958 में पकिस्तान में तख्तापलट कर सत्ता पर काबिज हुए जनरल मोहम्मद आयूब खान ने भारत के विरुद्ध 1965 में युद्ध छेड़ दिया। अमेरिका से सहायता प्राप्ति तथा चीन से भारत की हार से पकिस्तान ने भारत पर आक्रमण का बेहतर अवसर माना। 1965 में अचानक पाकिस्तान ने भारत पर सायं 7.30 बजे हवाई हमला कर दिया। परम्परानुसार राष्ट्रपति ने आपात बैठक बुला ली, जिसमें तीनों रक्षा अंगों के प्रमुख व मन्त्रिमण्डल के सदस्य शामिल थे। तीनों प्रमुखों ने प्रधानमंत्री को सारी वस्तुस्थिति समझाते हुए पूछा: "सर! क्या हुक्म है?" शास्त्रीजी ने एक वाक्य में तत्काल उत्तर दिया: "आप देश की रक्षा कीजिये और मुझे बताइये कि हमें क्या करना है?" प्रारंभिक असफलताओ के उपरान्त भारतीय सेना के अदम्य शौर्य तथा शास्त्री जी द्वारा दिए गए "जय जवान जय किसान " के उद्घोष से भारत ने पकिस्तान के आक्रमण का मुहतोड़ जवाब दिया। पाकिस्तान के आक्रमण का सामना करते हुए भारतीय सेना ने लाहौर पर धाबा बोल दिया तथा अमेरिका ,रूस तथा संयुक्त राष्ट्र के हस्तछेप से युद्ध विराम हो गया। इस युद्ध में भारत प्रभावी स्थिति में था।ताशकंद समझौता तथा शास्त्री जी की संदिग्ध मृत्यु :-
विषय-वस्तु में:
भारत-पाकिस्तान के बीच 1965 में हुए युद्ध के समय चीन तथा अमेरिका का झुकाव पाकिस्तान तथा सोवियन संघ का झुकाव भारत की ओर था, इसकी झलक स्पष्ट रूप से देखने को मिली। कालांतर में सोवियत संघ, अमेरिका और संयुक्त राष्ट्र महासभा के दबाव में दोनों पक्ष युद्ध विराम के लिये तैयार हुए।
युद्ध विराम के बाद सोवियत संघ की मध्यस्थता से पाकिस्तान के जनरल अयूब खान तथा भारतीय प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री के मध्य ताशकंद समझौता हुआ। इसके महत्त्वपूर्ण बिंदु निम्नलिखित थे-
- भारत तथा पाकिस्तान आपसी विवादों को हल करने के लिये बल का प्रयोग न करके शांतिपूर्ण समाधान की कोशिश करेंगे।
- 1961 के वियना अभिसमय का पालन करेंगे तथा राजनयिक संबंधों को बहाल करेंगे।
- दोनों देश युद्ध से पूर्व की सीमा रेखा का पालन करेंगे।
- दोनाें देशों के मध्य आंतरिक मामलों में संबंध, गैर-हस्तक्षेप के सिद्धांत पर आधारित होंगे।
- दोनों देश एक-दूसरे को लेकर दुर्भावनापूर्ण प्रचार नहीं करेंगे।
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