'ग्रेटर टिपरालैंड’ (Greater Tipraland) की मांग
हाल ही में त्रिपुरा के एक क्षेत्रीय राजनेता ने आदिवासियों, गैर-आदिवासियों, व त्रिपुरी आदिवासियों के लिये एक पृथक राज्य के रूप में ग्रेटर टिपरालैंड (GREATER TIPRALAND) की माँग की है ।
- ‘ग्रेटर टिपरालैंड’ इंडिजेनस पीपुल्स फ्रंट ऑफ त्रिपुरा (IPFT) द्वारा त्रिपुरा के आदिवासियों के लिये एक पृथक राज्य के रूप में टिपरालैंड की माँग का ही विस्तार है।
- प्रस्तावित मॉडल की प्रमुख माँग ‘त्रिपुरा जनजातीय क्षेत्र स्वायत्त ज़िला परिषद’ (TTAADC) के बाहर स्वदेशी क्षेत्र या गाँव में रहने वाले प्रत्येक आदिवासी व्यक्ति को शामिल करना है। त्रिपुरी समुदाय में 19 ‘कुल’ शामिल हैं, जिनमें से अधिकांश TTAADC क्षेत्र में रहते हैं। इसे ही ‘ग्रेटर टिपरालैंड’ के नाम से जाना जाता है।
- ध्यातव्य है कि यह विचार सिर्फ त्रिपुरा के आदिवासी परिषद के अंतर्गत आने वाले क्षेत्रों तक ही सीमित नहीं है, इसमें अन्य राज्यों जैसे -असम, मिज़ोरम सहित भारत के बाहर बंदरबन, चटगाँव, खगराचारी तथा बांग्लादेश के आस-पास के अन्य क्षेत्रों में फैले 'टिपरासा' समूह के लोगों को शामिल करने की बात की गई है।
- त्रिपुरी (जिन्हें टिपरा, टिपरासा, ट्विप्रा के नाम से भी जाना जाता है) त्रिपुरा का मूल नृजातीय समूह है।
ग्रेटर टिपरालैंड (GREATER TIPRALAND) के बारे में
- इंडिजेनस पीपुल्स फ्रंट ऑफ त्रिपुरा (IPFT) द्वारा त्रिपुरा के आदिवासियों के लिये एक पृथक राज्य की माँग की जा रही है जिसे ग्रेटर टिपरालैंड नाम से संबोन्धित किया जा रहा है।
- प्रस्तावित मॉडल के तहत ग्रेटर टिपरालैंड में त्रिपुरा जनजातीय क्षेत्र स्वायत्त जिला परिषद (TTAADC) के बाहर स्वदेशी क्षेत्र या गाँव में रहने वाले प्रत्येक आदिवासी व्यक्ति को शामिल करना है। हालाँकि, यह विचार केवल त्रिपुरा के आदिवासी परिषद क्षेत्रों तक ही सीमित नहीं है, बल्कि भारत के विभिन्न राज्यों जैसे असम, मिजोरम आदि में फैले त्रिपुरियों के 'टिप्रासा' (TIPRASA)को भी शामिल करना चाहता है।
- गौरतलब है कि त्रिपुरा ट्राइबल एरियाज ऑटोनॉमस डिस्ट्रिक्ट काउंसिल (TTAADC) के चुनाव होने वाले हैं। इसके अतिरिक्त टिपरलैंड राज्य पार्टी और आईपीएफटी (टिपरा) का विलय त्रिपुरा इंडीजीनस पीपुल्स रीजनल अलायंस (TIPRA) में हुआ है. ऐसे में इस नयी राजनीतिक मांग ने पूर्वोत्तर राज्य में हलचल पैदा कर दी है ।
त्रिपुरा में जातीय राजनीति
- हाल के वर्षों में त्रिपुरा में त्रिपुरा नेशनल वालंटियर्स (TNV), यूनाइटेड बंगाली लिबरेशन फ्रंट (UBLF), नेशनल लिबरेशन फ्रंट ऑफ त्रिपुरा (NLFT), ऑल त्रिपुरा टाइगर फोर्स (ATTF) जैसे विभिन्न गैरकानूनी विद्रोही संगठनों ने वहाँ की शांति व्यवस्था में अवरोध पैदा किया था । ये सभी संगठन अलग-अलग जातीय और सामुदायिक तर्ज पर राज्य के बँटवारे की मांग कर रहे थे । बिस्वामोहन देबबर्मा के नेतृत्व में नेशनल लिबरेशन फ्रंट ऑफ त्रिपुरा (NLFT) वहाँ पर एकमात्र सक्रिय विंग है।
- 1990 में एटीटीएफ (ATTF) का गठन किया गया था, यह समूह अभी निष्क्रिय है। त्रिपुरा नेशनल वालंटियर्स (TNV) ने 1988 में तत्कालीन प्रधान मंत्री राजीव गांधी के साथ एक शांति समझौते के अनुसार हथियार आत्मसमर्पण किया था ।
त्रिपुरा आदिवासी क्षेत्र स्वायत्तशासी परिषद के बारे में
- त्रिपुरा में ऑटोनॉमस डिस्ट्रिक्ट काउंसिल (एडीसी) 7,132.56 वर्ग किमी में फैला हुआ है और राज्य के भौगोलिक क्षेत्र का लगभग 68% कवर करता है। हालांकि, राज्य की 37 लाख लोगों की आबादी में आदिवासियों की संख्या एक तिहाई शामिल है।
- त्रिपुरा आदिवासी क्षेत्र स्वायत्तशासी परिषद (TTAADC) के तहत 70 प्रतिशत भूमि पहाड़ियों और जंगलों से ढकी है और अधिकांश निवासी ‘झूम’ (स्लैश और बर्न) खेती करते हैं हैं। आदिवासी परिषद की 28 सीटों के अलावा, राज्य विधान सभा में 20 सीटें अनुसूचित जनजाति (एसटी) के उम्मीदवारों के लिए आरक्षित हैं, जबकि आदिवासी मतदाता कम से कम 10 सीटों में एक निर्णायक भूमिका में रहते हैं।
- गौरतलब है कि संविधान की छठी अनुसूची असम, मेघालय, त्रिपुरा, मिजोरम राज्यों के जनजाति क्षेत्रों के प्रशासन के बारे में प्रावधान करता है। भारतीय संविधान के भाग-10 में अनुच्छेद 244 के तहत अनुसूचित तथा जनजातीय क्षेत्रों के प्रशासन के विषय में उपबंध किये गए हैं। इसी तरह से जल,जंगल, ज़मीन पर जनजातियों का अधिकार सुनिश्चित करने के लिये पेसा (PESA) कानून भी लागू किया गया है।
क्या है पेसा अधिनियम-1996
पेसा कानून समुदाय की प्रथागत, धार्मिक एवं परंपरागत रीतियों के संरक्षण पर असाधारण जोर देता है। इसमें विवादों को प्रथागत ढंग से सुलझाना एवं सामुदायिक संसाधनों का प्रबंध करना भी सम्मिलित है। कानून की धारा 4 अ एवं 4 द निर्देश देती है कि किसी राज्य की पंचायत से संबंधित कोई विधि उनके प्रथागत कानून, सामाजिक एवं धार्मिक रीतियों तथा सामुदायिक संसाधनों के परंपरागत प्रबंध व्यवहारों के अनुरूप होगी और प्रत्येक ग्राम सभा लोगों की परंपराओं एवं प्रथाओं के संरक्षण एवं संवर्द्धन, उनकी सांस्कृतिक पहचान, सामुदायिक संसाधनों एवं विवादों को प्रथागत ढंग से निपटाने में सक्षम होंगी।
पेसा कानून का पूरा नाम
पंचायत (अनुसूचित क्षेत्रों में विस्तार) अधिनियम 1996 {the Panchayat (Extension to the Scheduled Areas) Act, 1996} जो पेसा के नाम से जाना जाता है, संसद का एक कानून है न कि पांचवीं एवं छठी अनुसूची जैसा संवैधानिक प्रावधान। परंतु भारत की जनजातियों के लिए यह उतने ही महत्वपूर्ण हैं जितने वे संवैधानिक प्रावधान।
जैसा कि हम देख चुके हैं, छठी अनुसूची इसके अंतर्गत आने वाले सीमित जनजाति क्षेत्रों को ही अपने स्वयं को स्वायत्त रूप से शासित करने का अधिकार देती है। पेसा कानून अपनी परंपराओं एवं प्रथाओं के अनुसार पांचवीं अनुसूची की जनजातियों को उसी स्तर का स्वायत्त शासन देने की संभावनाओं का अवसर प्रस्तावित करता है। इसलिए इन क्षेत्रों के लिए यह अधिनियम एक मूलभूत कानून का स्थान रखता है।
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