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गोपाल कृष्ण गोखले (Gopal Krishna Gokhale) : जयंती विशेष

 

गोपाल कृष्ण गोखले (Gopal Krishna Gokhale) : जयंती विशेष


गोपाल कृष्ण गोखले (Gopal Krishna Gokhale) : जयंती विशेष

  • हाल ही में प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ने महान स्वतंत्रता सेनानी गोपाल कृष्ण गोखले (Gopal Krishna Gokhale) को उनकी जयंती पर श्रद्धांजलि अर्पित की है।
  • प्रधानमंत्री ने कहा कि राष्ट्र सेवा के प्रति समर्पित उनका जीवन देशवासियों को हमेशा प्रेरित करता रहेगा।

गोपाल कृष्ण गोखले (Gopal Krishna Gokhale) :

गोपाल कृष्ण गोखले (9 मई 1866 - फरवरी 19, 1915) भारत के एक स्वतंत्रता सेनानी, समाजसेवी, विचारक एवं सुधारक थे। महादेव गोविंद रानाडे के शिष्य गोपाल कृष्ण गोखले को वित्तीय मामलों की अद्वितीय समझ और उस पर अधिकारपूर्वक बहस करने की क्षमता से उन्हें भारत का 'ग्लेडस्टोन' कहा जाता है। वे भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस में सबसे प्रसिद्ध नरमपंथी थे। चरित्र निर्माण की आवश्यकता से पूर्णत: सहमत होकर उन्होंने 1905 में सर्वेन्ट्स ऑफ इंडिया सोसायटी की स्थापना की, ताकि नौजवानों को सार्वजनिक जीवन के लिए प्रशिक्षित किया जा सके। उनका मानना था कि वैज्ञानिक और तकनीकी शिक्षा भारत की महत्वपूर्ण आवश्यकता है। स्व-सरकार व्यक्ति की औसत चारित्रिक दृढ़ता और व्यक्तियों की क्षमता पर निर्भर करती है। महात्मा गांधी उन्हें अपना राजनीतिक गुरु मानते थे।

  • गोपाल कृष्ण गोखले का जन्म 9 मई 1866 को महाराष्ट्र के रत्नागिरी जिले में हुआ था । उनके पिता का नाम कृष्ण राव और उनकी माता का नाम वालूबाई थीं। अपनी हाईस्कूल की शिक्षा के उपरांत उन्होंने मुंबई के एलफिंस्टन कॉलेज से स्नातक की डिग्री प्राप्त की।
  • गोपाल कृष्ण गोखले से प्रभावित होते हुए बाल गंगाधर तिलकप्रोफ़ेसर गोपाल गणेश आगरकर ने उन्हें मुंबई स्थित ‘डेकन एजुकेशन सोसाइटी’ से जुड़ने का प्रस्ताव दिया। गोपाल कृष्ण गोखले ने इस निमंत्रण को स्वीकार करते हुए इस संस्थान में 20 वर्ष तक शिक्षक के रूप में कार्य किया।
  • बाल गंगाधर तिलक से वैचारिक मतभेद के कारण महाराष्ट्र में तात्कालिक समय में दो दल बन गए। एक दल था रानाडे एवं गोखले का, वहीं दूसरे दल में तिलक और उनके सहयोगी शामिल थे। तिलक के द्वारा पूना सार्वजनिक सभा पर नियंत्रण उपरांत गोपाल कृष्ण गोखले ने पूना सार्वजनिक सभा का त्याग करते हुए एम.जी. रानाडे के निर्देशन में दक्कन सभा की स्थापना की। गोपाल कृष्ण गोखले दक्कन सभा की ओर से हुए इंग्लैंड में बेलबी आयोग के समक्ष प्रस्तुत हुए थे।
  • बंगाल विभाजन के उपरांत जहां बाल गंगाधर तिलक, लाला लाजपत राय, विपिन चन्द्र पाल और अरविन्द घोष जैसे गरम दल के नेताओं ने इस आंदोलन का नेतृत्व किया। वहीं नरम दल की तरफ से गोपाल कृष्ण गोखले ने इसकी अगुवाई की।
  • ब्रिटिश सरकार, गोपाल कृष्ण गोखले के कार्यों से प्रभावित होकर उन्हें लार्ड इजलिंगटन की अध्यक्षता में गठित पब्लिक सर्विसेज कमीशन के सदस्य के रूप में इन्हें मनोनीत किया गया। गोपाल कृष्ण गोखले ने दक्षिण अफ्रीका का भी दौरा किया, एवं वहां पर गांधीजी जी के भारतीयों के परिस्थितियों में सुधार हेतु किए जा रहे आंदोलन का भी समर्थन किया।
  • लगातार खराब स्वास्थ्य रहने के कारण उन्होंने अपने जीवन का अंतिम समय पूना में व्यक्त किया। यहीं पर उन्होंने अपना आखरी राजनीतिक वक्तव्य दिया, जिसे गोखले का ‘राजनीतिक वसीयतनामा’ कहा जाता है। और ऐसा माना जाता है कि यह ‘मांटेग्यू-चेम्सफोर्ड सुधार योजना’ का आधार बना।

सर्वेंट्स ऑफ इंडिया सोसाइटी :

  • सन 1905 में गोपाल कृष्ण गोखले, कांग्रेस के अध्यक्ष बने, तथा इसी वर्ष उन्होंने ‘सर्वेंट्स ऑफ इंडिया सोसाइटी’ की स्थापना की थी।
  • गोपाल कृष्ण गोखले द्वारा स्थापित ‘सर्वेंट्स ऑफ इंडिया सोसाइटी’ का उद्देश्य था, भारतीय लोगों को शिक्षित करना था।
  • इसके अलावा, यह संस्था लोगों की सेवा के प्रति भी समर्पित थी।
मृत्यु :

गोखले जी 1905 में आजादी के पक्ष में अंग्रेजों के समक्ष लाला लाजपतराय के साथ इंग्लैंड गए, और अत्यंत प्रभावी ढंग से देश की स्वतंत्रता की वहां बात रखी। लगातार खराब स्वास्थ्य के कारण 19 फ़रवरी 1915 को गोपालकृष्ण गोखले इस संसार से सदा-सदा के लिए विदा हो गए।


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