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बाल यौन अपराध संरक्षण कानून (पॉक्सो) 2012

 

बाल यौन अपराध संरक्षण कानून (पॉक्सो) 2012


बाल यौन अपराध संरक्षण कानून (पॉक्सो) 2012


क्या है POCSO एक्ट :

वर्ष 2012 से पहले बाल यौन शोषण पर कोई स्पष्ट कानून नहीं था l  इसलिए बच्चों से जुड़े मामलों की कारवाही भारतीय दंड सहिंता के अंतर्गत बलात्कार (धारा 375) और महिला की गरिमा का हनन (धारा 374)  जैसी धाराओं के अंतर्गत की जाती थी l खास कानून नहीं होने पर बाल यौन शोषण पर क़ानूनी कार्यवाही करना मुश्किल था l

पर अब यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण, बच्चों के खिलाफ होने वाले यौन अपराधों को रोकने के लिए एक प्रत्यक्ष एवं आसान शिकायत प्रबंधन प्रणाली शुरु की गई है जो की POCSO एक्ट हैl

POCSO एक्ट का पूरा नाम "The Protection Of Children From Sexual Offences Act" या प्रोटेक्शन आफ चिल्ड्रेन फ्राम सेक्सुअल अफेंसेस एक्ट हैl

इस एक्ट के जरिये बच्चों के प्रति यौन उत्पीड़न और यौन शोषण और पोर्नोग्राफी जैसे जघन्य अपराधों को रोकने के लिए, महिला और बाल विकास मंत्रालय ने बनाया हैl  वर्ष 2012 में बनाए गए इस कानून के तहत अलग-अलग अपराध के लिए अलग-अलग सजा तय की गई हैl 

अब 12 साल तक के बच्चे से रेप या अन्य प्रकार का यौन शोषण होने पर दोषियों को मौत की सजा मिलेगी l

पोक्सो अधिनियम की धारा 7 और 8 के तहत वो मामले पंजीकृत किए जाते हैं जिनमें बच्चों के गुप्तांग से छेडछाड़ की जाती है, इस धारा के आरोपियों पर दोष सिद्ध हो जाने पर 5 से 7 साल तक की सजा और जुर्माना हो सकता हैl इस एक्ट को बनाना इसलिए भी जरूरी था क्योंकि बच्चे बहुत ही मासूम होते हैं और आसानी से लोगों के बहकाबे में आ जाते हैंl  कई बार तो बच्चे डर के कारण उनके साथ हुए शोषण को माता पिता को बताते भी नही हैl

पोक्‍सो अधिनियम, 2012 बच्‍चों को यौन अपराधों, यौन शोषण और अश्‍लील सामग्री से सुरक्षा प्रदान करने के लिए लाया गया था। इसका उद्देश्‍य बच्‍चों के हितों की रक्षा करना और उनका कल्‍याण सुनिश्चित करना है। अधिनियम के तहत बच्‍चे को 18 साल की कम उम्र के व्‍यक्ति के रूप में परिभाषित किया गया है और हर स्‍तर पर बच्‍चों के हितों और उनके कल्‍याण को सर्वोच्‍च प्राथमिकता देते हुए उनके शारीरिक, मानसिक और सामाजिक विकास को सुनिश्चित किया गया है। यह कानून लैंगिक समानता पर आधारित है। मंत्रिमंडल द्वारा बच्‍चों को यौन अपराधों से सुरक्षा प्रदान करने के लिए 2019 में बाल यौन अपराध संरक्षण कानून 2012 (पोक्‍सो) में संशोधन करते हुए यौन अपराधों के लिए मृत्‍युदंड सहित सख्‍त दंडात्‍मक प्रावधान की मंजूरी दी गयी हैं।


यौन शोषण क्या है?

इसमें यौन उत्पीड़न और अश्लील साहित्य, सेक्सुअल और गैर सेक्सुअल हमला (penetrative and non-penetrative assault) को शामिल किया गया हैl

चर्चा में क्यों?

  • 8 मार्च को अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस के अवसर पर कैलाश सत्यार्थी चिल्ड्रन फाउंडेशन (केएससीएफ) ने एक अध्ययन रिपोर्ट जारी की है।
  • इस अध्ययन रिपोर्ट में यह तथ्य सामने आया है कि भारत में पॉक्सो कानून का कार्यान्वयन पर्याप्त रूप से नहीं हो पा रहा है।

पॉक्सो एक्ट के संदर्भ में केएससीएफ के अध्ययन के प्रमुख निष्कर्ष

  • कैलाश सत्‍यार्थी चिल्‍ड्रेन्‍स फाउंडेशन (केएससीएफ) द्वारा पॉक्सो के क्रियान्वयन के संदर्भ में अध्ययन में निम्न बिंदु सामने आए हैं-
  1. प्रत्येक वर्ष यौन शोषण के तकरीबन 3000 मामले अदालत तक पहुंच नहीं पाते है जिसमें 99% मामले में यौन शोषण की शिकार बच्चियां होती हैं। इसका प्रमुख कारण पर्याप्त सबूत और सुराग न मिलने से पुलिस द्वारा इन मामलों की जांच को अदालत में आरोप पत्र दायर करने से पहले ही बंद कर दिया जाता है। 
  2. हाल के वर्षों में यौन अपराधों में वृद्धि के बावजूद 2017 से 2019 में पुलिस के द्वारा बंद किए गए पॉक्सो के मामलों की संख्या बढ़ी है। 
  3. देश में बाल यौन उत्पीड़न की शिकार हुई प्रत्येक चार पीड़ित लड़की न्याय से वंचित हुई क्योंकि पर्याप्त सबूतों के अभाव के कारण पुलिस के द्वारा उन मामलों को बंद कर दिया गया।
  4. एनसीआरबी के आंकड़ों के अनुसार पुलिस के द्वारा बंद किए गए या ऐसे मामले जिनका निपटारा किया गया है उनमें अधिकांश मामलों में केस को बंद करने का कारण यह दिया गया है कि ‘मामले सही हैं, लेकिन अपर्याप्त सबूत हैं’।आंकड़ों के अनुसार पुलिस ने वर्ष 2019 में 43% मामलों को इसी आधार पर बंद कर दिया गया जो 2017 और 2018 की तुलना में बंद किए गए मामलों से अधिक है।
  5. अध्ययन में यह भी तथ्य सामने आया है कि पॉक्सो से जुड़े मामलों में केस को बंद करने में दूसरा सर्वाधिक दिया गया महत्वपूर्ण कारण “झूठी शिकायतों” को दिया गया है। यद्यपि ऐसे मामलों में पिछले वर्षों के मुकाबले वर्ष 2019 में कमी आई है।
  6. इसके साथ ही फाउंडेशन के द्वारा किए गए अध्ययन से यह भी तथ्य सामने आया है कि अदालतों के द्वारा भी न्याय में काफी ज्यादा समय लिया जा रहा है। उल्लेखनीय है कि वर्ष 2019 के अद्यतन आंकड़ों के अनुसार बाल उत्पीड़न के मामलों में लगभग 89% पीड़ित पक्ष अदालत में न्याय का इंतजार कर रहे हैं।
  7. इसके साथ ही फाउंडेशन के द्वारा किए गए अध्ययन से यह भी तथ्य सामने आया है कि पॉक्सो एक्ट के आधे से भी ज्यादा मामले लगभग 51% पाँच राज्यों में दर्ज किए गए। यह राज्य हैं मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, उत्तर प्रदेश, हरियाणा और दिल्ली।

POCSO एक्ट के प्रावधान

  1. भारतीय दंड संहिता, 1860 के अनुसार सहमती से सेक्स करने की उम्र को 16 वर्ष से बढाकर 18 वर्ष कर दिया हैl यदि कोई व्यक्ति किसी बच्चे के साथ उसकी सहमती या बिना सहमती के यौन कृत्य करता है तो उसको पोक्सो एक्ट के अनुसार सजा मिलेगी l
  2. यदि कोई व्यक्ति अपने जीवनसाथी 18 वर्ष  से कम उम्र के साथ जबरदस्ती यौन संबध बनाते है तो यह भी अपराध की श्रेणी में आता है और उस पर मुकदमा चलाया जा सकता हैl 
  3. सभी अपराधों की सुनवाई, एक विशेष न्यायालय द्वारा कैमरे के सामने बच्चे के माता पिता या जिन लोगों पर बच्चा भरोसा करता है, उनकी उपस्थिति में होगीl
  4. यदि अभियुक्त एक किशोर है, तो उसके ऊपर किशोर न्यायालय अधिनियम, 2000 (बच्चों की देखभाल और संरक्षण) में मुकदमा चलाया जाएगा l
  5. यदि अपराधी ने कुछ ऐसा अपराध किया है जो कि बाल अपराध कानून के अलावा अन्य कानून में भी अपराध है तो अपराधी को सजा उस कानून में तहत होगी जो कि सबसे सख्त हो l
  6. इसमें खुद को निर्दोष साबित करने का दायित्व अभियुक्त (accused) पर होता हैl इसमें झूठा आरोप लगाने, झूठी जानकारी देने तथा किसी की छवि को ख़राब करने के लिए सजा का प्रावधान भी हैl
  7. जो लोग यौन प्रयोजनों के लिए बच्चों का व्यापार (child trafficking) करते हैं उनके लिए भी सख्त सजा का प्रावधान हैl 
  8. सर्वश्रेष्ठ अंतरराष्ट्रीय बाल संरक्षण मानकों के अनुरूप, इस अधिनियम में यह प्रावधान है कि यदि कोई व्यक्ति यह जनता है कि किसी बच्चे का यौन शोषण हुआ है तो उसके इसकी रिपोर्ट नजदीकी थाने में देनी चाहिए, यदि वो ऐसा नही करता है तो उसे छह महीने की कारावास और आर्थिक दंड लगाया जा सकता हैl
  9. यह अधिनियम बाल संरक्षक की जिम्मेदारी पुलिस को सौंपता है, इसमें पुलिस को बच्चे की देखभाल और संरक्षण के लिए तत्काल व्यवस्था बनाने की ज़िम्मेदारी दी जाती हैl जैसे बच्चे के लिए आपातकालीन चिकित्सा उपचार प्राप्त करना और बच्चे को आश्रय गृह में रखना इत्यादि l
  10. पुलिस की यह जिम्मेदारी बनती है कि मामले को 24 घंटे के अन्दर बाल कल्याण समिति (CWC) की निगरानी में लाये ताकि CWC बच्चे की सुरक्षा और संरक्षण के लिए जरूरी कदम उठा सके l
  11. इस अधिनियम में बच्चे की मेडिकल जांच के लिए प्रावधान भी किए गए हैं, जो कि इस तरह की हो ताकि बच्चे के लिए कम से कम पीड़ादायक हो l मेडिकल जांच बच्चे के माता-पिता या किसी अन्य व्यक्ति की उपस्थिति में किया जाना चाहिए, जिस पर बच्चे का विश्वास हो, और बच्ची की मेडिकल जांच महिला चिकित्सक द्वारा ही की जानी चाहिए l
  12. अधिनियम में यह कहा गया है कि बच्चे के यौन शोषण का मामला घटना घटने की तारीख से एक वर्ष के भीतर निपटाया जाना चाहिए l
  13. पोक्सो के अंतर्गत बच्चों के खिलाफ यौन अपराध के 6118 मामले 2012 से 2016 के बीच दर्ज किये गए हैंl इसमें 85% मामले अभी भी कोर्ट में लंबित पड़े हुए है जबकि अपराधी को सजा मिलने की दर सिर्फ 2% है जो कि किसी भी तरह से ठीक नही ठहराया जा सकता हैl

कैलाश सत्यार्थी चिल्ड्रन्स फाउंडेशन (KSCF) के बारे में

  • कैलाश सत्यार्थी चिल्ड्रन्स फाउंडेशन (KSCF) की स्थापना नोबेल शांति पुरस्कार विजेता श्री कैलाश सत्यार्थी द्वारा की गयी। इस संस्था का उद्देश्य दुनिया में ऐसे परिवेश की स्थापना करना है, जहाँ सभी बच्चे स्वतंत्र, सुरक्षित, स्वस्थ हों, गुणवत्तापूर्ण शिक्षा प्राप्त करें और अपनी क्षमता को महसूस करने का अवसर प्राप्त करें। फाउंडेशन का मिशन बाल तस्करी, बाल श्रम और गुलामी सहित बच्चों के खिलाफ सभी प्रकार की हिंसा को समाप्त करना है।
  • इसके साथ ही यह संस्था युवाओं और बच्चों से संबंधित राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय कानूनों के प्रभावी कार्यान्वयन को सुनिश्चित करने के लिए सरकारों, व्यवसायों और समुदायों के बीच अधिक से अधिक सहयोग सुनिश्चित करने की दिशा में काम करता है

 

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