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सावित्रीबाई फुले (Savitribai Phule) : स्मृति विशेष

सावित्रीबाई फुले (Savitribai Phule) 

: स्मृति विशेष


सावित्रीबाई फुले (Savitribai Phule) : स्मृति विशेष
शिक्षण पंडिता : सावित्रीबाई फुले 

सावित्रीबाई फुले :

19 वी सदी का दौर भारत में धार्मिक- सांस्कृतिक एवं सामाजिक पुनर्जागरण का काल माना जाता है। उल्लेखनीय है कि इस काल में धर्म एवं समाज में आमूलचूल परिवर्तन करने हेतु कई बुद्धिजीवी और महापुरुष सामने आए एवं इन्होंने भारतीय समाज में प्रचलित दोषों को दूर करने का प्रयास किया। ऐसे ही महान समाज सुधारकों में सावित्रीबाई फुले प्रमुख हैं, जिन्होंने अपने पति यानी ज्योतिराव फूले के साथ मिलकर भारतीय समाज सुधार आंदोलन को एक नई दिशा दी। आज उनके स्मृति दिवस पर उनके जीवन से जुड़े कुछ तथ्य हैं। 

सावित्रीबाई ज्योतिराव फुले (3 जनवरी 1831 – 10 मार्च 1897) भारत की प्रथम महिला शिक्षिका, समाज सुधारिका एवं मराठी कवियत्री थीं। उन्होंने अपने पति ज्योतिराव गोविंदराव फुले के साथ मिलकर स्त्री अधिकारों एवं शिक्षा के क्षेत्र में उल्लेखनीय कार्य किए। वे प्रथम महिला शिक्षिका थीं। उन्हें आधुनिक मराठी काव्य का अग्रदूत माना जाता है। 1852 में उन्होंने बालिकाओं के लिए एक विद्यालय की स्थापना की।

परिचय

सावित्रीबाई फुले का जन्म 3 जनवरी 1831 को हुआ था। इनके पिता का नाम खन्दोजी नैवेसे और माता का नाम लक्ष्मी था। सावित्रीबाई फुले का विवाह 1840 में ज्योतिबा फुले से हुआ था।

सावित्रीबाई फुले भारत के पहले बालिका विद्यालय की पहली प्रिंसिपल और पहले किसान स्कूल की संस्थापक थीं। महात्मा ज्योतिबा को महाराष्ट्र और भारत में सामाजिक सुधार आंदोलन में एक सबसे महत्त्वपूर्ण व्यक्ति के रूप में माना जाता है। उनको महिलाओं और दलित जातियों को शिक्षित करने के प्रयासों के लिए जाना जाता है। ज्योतिराव, जो बाद में ज्योतिबा के नाम से जाने गए सावित्रीबाई के संरक्षक, गुरु और समर्थक थे। सावित्रीबाई ने अपने जीवन को एक मिशन की तरह से जीया जिसका उद्देश्य था विधवा विवाह करवाना, छुआछूत मिटाना, महिलाओं की मुक्ति और दलित महिलाओं को शिक्षित बनाना। वे एक कवियत्री भी थीं उन्हें मराठी की आदिकवियत्री के रूप में भी जाना जाता था।

उन्नीसवीं सदी के दौर में भारतीय महिलाओं की स्थिति बड़ी ही दयनीय थीं। जहां एक ओर महिलाएं पुरुषवादी वर्चस्व की मार झेल रही थीं, तो दूसरी ओर समाज की रूढ़िवादी सोच के कारण तरह-तरह की यातनाएं व अत्याचार सहने को विवश थीं। ऐसे विकट समय में सावित्रीबाई फुले ने समाज सुधारक बनकर महिलाओं को सामाजिक शोषण से मुक्त करने व उनके समान शिक्षा व अवसरों के लिए पुरजोर प्रयास किया।

सामाजिक मुश्किलें

वे स्कूल जाती थीं, तो विरोधी लोग उनपर पत्थर मारते थे। उन पर गंदगी फेंक देते थे। आज से 171 साल पहले बालिकाओं के लिये जब स्कूल खोलना पाप का काम माना जाता था तब ऐसा होता था।

सावित्रीबाई पूरे देश की महानायिका हैं। हर बिरादरी और धर्म के लिये उन्होंने काम किया। जब सावित्रीबाई कन्याओं को पढ़ाने के लिए जाती थीं तो रास्ते में लोग उन पर गंदगी, कीचड़, गोबर, विष्ठा तक फेंका करते थे। सावित्रीबाई एक साड़ी अपने थैले में लेकर चलती थीं और स्कूल पहुँच कर गंदी कर दी गई साड़ी बदल लेती थीं। अपने पथ पर चलते रहने की प्रेरणा बहुत अच्छे से देती हैं।

विद्यालय की स्थापना

3 जनवरी 1848 में पुणे में अपने पति के साथ मिलकर विभिन्न जातियों की नौ छात्राओं के साथ उन्होंने महिलोओ के लिए एक विद्यालय की स्थापना की। एक वर्ष में सावित्रीबाई और महात्मा फुले पाँच नये विद्यालय खोलने में सफल हुए। तत्कालीन सरकार ने इन्हे सम्मानित भी किया। एक महिला प्रिंसिपल के लिये सन् 1848 में बालिका विद्यालय चलाना कितना मुश्किल रहा होगा, इसकी कल्पना शायद आज भी नहीं की जा सकती। लड़कियों की शिक्षा पर उस समय सामाजिक पाबंदी थी। सावित्रीबाई फुले उस दौर में न सिर्फ खुद पढ़ीं, बल्कि दूसरी लड़कियों के पढ़ने का भी बंदोबस्त किया।

इसी मुहिम ने महिलाओं को सशक्त करने का काम किया और लोगों को इस बात को सोचने पर मजबूर कर दिया कि महिलाओं को भी पढ़ाई का अधिकार है और बराबरी का हक है। सावित्रीबाई फुले की ये कथन आज के दौर में भी बिल्कुल सटीक लगते हैं। 


सावित्रीबाई फुले के द्वारा लिखी गई मराठी कविता का हिंदी उच्चारण :


जाओ जाकर पढ़ो-लिखो, बनो आत्मनिर्भर, बनो मेहनती

काम करो-ज्ञान और धन इकट्ठा करो

ज्ञान के बिना सब खो जाता है, ज्ञान के बिना हम जानवर बन जाते है

इसलिए, खाली ना बैठो,जाओ, जाकर शिक्षा लो

दमितों और त्याग दिए गयों के दुखों का अंत करो तुम्हारे पास सीखने का सुनहरा मौका है

इसलिए सीखो और जाति के बंधन तोड़ दो, ब्राह्मणों के ग्रंथ जल्दी से जल्दी फेंक दो।   

बिना पुरोहितों के शादी एवं दहेज प्रथा को हतोत्साहित करने के साथ अंतर्जातीय विवाह करवाने हेतु उन्होंने अपने पति के साथ मिलकर सत्यशोधक समाज की स्थापना की।
विधवा महिलाओं को सहारा देने के लिए उन्होंने पुणे में महिला सेवा मंडल की स्थापना की।
समाज में नई जागृति लाने के लिए कवयित्री के रूप में सावित्रीबाई फुले ने 2 काव्य पुस्तकें ''काव्य फुले'', ''बावनकशी सुबोधरत्नाकर'' भी लिखीं।

निधन

महाराष्ट्र में प्लेग फैल जाने के उपरांत उन्होंने पुणे में अपने पुत्र के साथ मिलकर 1897 में एक अस्पताल खोला जिससे प्लेग पीड़ितों का इलाज किया जा सके, 10 मार्च 1897 को प्लेग के कारण सावित्रीबाई फुले का निधन हो गया। प्लेग महामारी में सावित्रीबाई प्लेग के मरीजों की सेवा करती थीं। एक प्लेग के छूत से प्रभावित बच्चे की सेवा करने के कारण इनको भी छूत लग गया। और इसी कारण इस दुनिया को सदा के लिए अलविदा कह दिया।

गूगल डूडल

3 जनवरी 2017 को उनके 189 वे जन्मदिवस पर गूगल ने उनका गूगल डूडल प्रसिद्ध कर उन्हें अभिवादन किया है।


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English translation of this topic below :-


       SAVITRIBAI PHULE : SPECIAL MEMORY


सावित्रीबाई फुले (Savitribai Phule)   : स्मृति विशेष
Teaching Pandita: Savitribai Phule


Savitribai Phule:

The 19th century is considered to be a period of religious-cultural and social renaissance in India. It is noteworthy that during this period, many intellectuals and great men came forward to bring about a radical change in religion and society and they tried to remove the faults prevalent in Indian society. Among such great social reformers is Savitribai Phule, who along with her husband, Jyotirao Phule, gave a new direction to the Indian social reform movement. Today, on his Memorial Day, there are some facts related to his life.


Savitribai Jyotirao Phule (3 January 1831 - 10 March 1897) was India's first female teacher, social reformer and Marathi poet. She, along with her husband Jyotirao Govindrao Phule, did remarkable work in the field of women's rights and education. She was the first female teacher. He is considered the forerunner of modern Marathi poetry. In 1852 he established a school for girls.


Introduction

Savitribai Phule was born on 3 January 1831. His father's name was Khandoji Naivese and mother's name was Lakshmi. Savitribai Phule was married to Jyotiba Phule in 1840.

Savitribai Phule was the first principal of the first girls' school in India and the founder of the first Kisan school. Mahatma Jyotiba is considered as one of the most important figures in the social reform movement in Maharashtra and India. He is known for his efforts to educate women and Dalit castes. Jyotirao, later known as Jyotiba, was the mentor, mentor and supporter of Savitribai. Savitribai lived her life as a mission aimed at getting widows married, eradicating untouchability, emancipation of women and educating Dalit women. She was also a poet. She was also known as Adikaviyatri of Marathi.

The situation of Indian women was extremely pathetic during the nineteenth century. While women were facing malevolent domination on the one hand, on the other hand due to the conservative thinking of the society, they were forced to endure various kinds of torture and atrocities. In such a difficult time, Savitribai Phule, as a social reformer, tried very hard to free women from social exploitation and for equal education and opportunities.


Social difficulties

When she went to school, the opponents stoned her. Used to throw dirt on them. 171 years ago, when it was considered a sin to open a school for girls, it used to happen.

Savitribai is the magnate of the whole country. He worked for every community and religion. When Savitribai went to teach the girls, people used to throw dirt, mud, cow dung and even Vistha on the way. Savitribai used to carry a sari in her bag and after reaching school changed the dirty sari. It motivates you to keep walking on your path very well.


School establishment

She established a school for Mahilo on 3 January 1848 in Pune along with her husband along with nine girl students of different castes. In a year, Savitribai and Mahatma Phule succeeded in opening five new schools. The then government also honored him. How difficult it must have been for a female principal to run a girl's school in 1848 cannot be imagined even today. There was a social ban on girls' education at that time. Savitribai Phule not only studied herself at that time, but also arranged for other girls to study.

This campaign worked to empower women and made people think that women too have the right to education and the right to equality. These statements of Savitribai Phule seem perfectly accurate even today.


Hindi pronunciation of Marathi poetry written by Savitribai Phule:

Go and read and write, be self-sufficient, be hardworking

Work - gather knowledge and money

Without knowledge all is lost, without knowledge we become animals

Therefore, do not sit empty, go and study

End the sufferings of the oppressed and abandoned cows You have a golden opportunity to learn

Therefore learn and break the bonds of caste, throw away the texts of Brahmins as quickly as possible.


She, along with her husband, founded the Satyashodhak Samaj to discourage marriage and dowry without priestly intermarriage.

She founded Mahila Seva Mandal in Pune to support widow women.

As a poetess, Savitribai Phule also wrote 2 poetic books "Kavya Phule", "Bawankashi Subodhratnakar" to bring a new awakening in the society.


Death

After the plague spread to Maharashtra, he, along with his son in Pune, opened a hospital in 1897 to treat plague victims, Savitribai Phule died on 10 March 1897 due to the plague. In the plague epidemic, Savitribai served the patients of the plague. They also got fingered due to serving a child affected by the contagion of a plague. And that's why he said goodbye to this world forever.


Google Doodle

On January 3, 2017, on his 189th birthday, Google has greeted him by making him famous for his Google Doodle.



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