हिंद महासागर में जीनोम मैपिंग : चर्चा में क्यों ?
हाल ही में सरकार ने एक महत्त्वाकांक्षी जीनोम मैपिंग परियोजना (Genome Mapping Project) को मंज़ूरी प्रदान की है। भारतीय वैज्ञानिकों के द्वारा हिंद महासागर में मौजूद जीवो के जीनोम मैपिंग की योजना बनाई गई है। इस योजना के तहत मार्च के दूसरे सप्ताह से लेकर मध्य मई तक हिंद महासागर में एक समर्पित अभियान चलाया जायेगा।
महत्त्वपूर्ण बिंदु :
- सरकार की महत्त्वाकांक्षी जीनोम मैपिंग परियोजना को भारत की अनुवांशिक विविधता के निर्धारण की दिशा में पहला प्रयास माना जा रहा है।
- इस परियोजना की अनुमानित लागत लगभग 238 करोड़ रुपए है।
- इस परियोजना में बंगलूरु स्थित भारतीय विज्ञान संस्थान (Indian Institute of Science- IISc) एवं कुछ भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (Indian Institute of Technology- IITs) सहित लगभग 20 संस्थान शामिल होंगे।
- परियोजना से जुड़े भारतीय वैज्ञानिकों के अनुसार, अब तक के आनुवंशिक अध्ययन लगभग 95% सफेद कोकेशियान नमूनों (White Caucasian Samples) पर आधारित थे।
- वैज्ञानिक एवं औद्योगिक अनुसंधान परिषद - राष्ट्रीय समुद्र विज्ञान संस्थान (CSIR-NIO) ने हिंद महासागर में एकल-कोशिका जीवों के अंदर मौजूद जीनोम और पोषक तत्व की प्रोटेक्टिव मैपिंग का संचालन करने के लिए एक 90- दिवसीय वैज्ञानिक क्रूज मिशन शुरू करने की योजना बनायी है |
- इसके द्वारा कैंसर के उपचार तथा वाणिज्यिक जैव प्रोद्योगिकी क्रियाविधि में भारत के रिसर्च विंग को मजबूती मिलेगी |
- इसके साथ जलवायु परिवर्तन और पोषक तत्वों की प्रोटेक्टिव मैपिंग के लिए सामुद्रिक प्रतिक्रिया के अध्ययन में सहायता प्राप्त होगी |
- इस अभियान में 30 वैज्ञानिकों और शोधकर्ताओं की टीम हिस्सा लेंगे, जिसमें छह महिलाएं शामिल हैं |
- यह मार्च के दूसरे सप्ताह से लेकर मध्य मई तक (लगभग 90 दिन) कार्यान्वित अभियान होगा |
- इस अभियान में लगभग 9000 समुद्री मील तक की दूरी तय की जाएगी |
- इसमें भारत के पूर्वी तट से हिंद महासागर में ऑस्ट्रेलिया, मॉरीशस में पोर्ट लुई से होते हुए पाकिस्तान की सीमा की तरफ से भारत के पश्चिमी तट तक के सूक्ष्मजीवों की जीनोम मैपिंग के लिए नमूने एकत्र किए जाएंगे |
- ज्ञातव्य है की शोधकर्ता समुद्र के विभिन्न हिस्सों से लगभग 5 किमी की औसत गहराई पर नमूने एकत्र करेंगे ।
- वाणिज्यिक जैव प्रोद्योगिकी अनुप्रयोगो में भारत के अनुसंधान को मजबूत करने के लिए जीनोम और सूक्ष्म पोषक तत्वों की तलाश में पानी, तलछट, समुद्री पादप और विभिन्न जीवों के नमूने लिए जाएंगे |
- ज्ञातव्य है कि वैज्ञानिक समुद्र में पाए जाने वाले इन तत्वों में बैक्टीरिया, रोगाणुओं का मानचित्रण (मैपिंग) करेंगे।
- मानचित्रण का मुख्य कारण पोषक तत्वों में आयरन , जिंक , मैग्नेशियम , कैडमियम , कोबाल्ट जैसे सूक्ष्म तत्वों कि उपस्थिति कि जांच करना है |
- उल्लेखनीय है की हिन्द महासागर पृथ्वी का तीसरा सबसे बड़ा महासागर (प्रशांत और अटलांटिक महासागर के बाद) है | हिन्द महासागर जलवायु और ऑक्सीज़न के विनयमन के महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है |
- जनवरी, 2020 के अंत में विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग के जैव प्रौद्योगिकी विभाग (Department of Biotechnology-DBT) द्वारा इस परियोजना को मंज़ूरी प्रदान की गई।
- इस परियोजना के पहले चरण में देश भर से 10,000 लोगों के नमूनों को एकत्रित किया जाएगा।
- भारत के आनुवंशिक पूल की विविधता का मानचित्रण वैयक्तिकृत चिकित्सा के आधार पर होगा।
- IISc का मस्तिष्क अनुसंधान केंद्र (Center for Brain Research) जो कि एक स्वायत्त संस्थान है, इस परियोजना के नोडल कार्यालय के रूप में कार्य करेगा तथा इसकी निदेशक प्रो. विजयलक्ष्मी रवींद्रनाथ इस परियोजना की समन्वयक होंगी।
- इस परियोजना में शामिल संस्थान परियोजना के विभिन्न पहलुओं पर काम करेंगे जिसमें नैदानिक नमूने प्रदान करना और अनुसंधान में सहायता करना, इत्यादि शामिल हैं तथा कुछ IITs द्वारा गणना के नए तरीकों में मदद की जाएगी।
- इस परियोजना के लिये एक व्यापक डेटाबेस बनाने हेतु दो नई राष्ट्रीय स्तर की विज्ञान योजनाएँ शुरू की जाएंगी।
- इन्फोसिस के सह-संस्थापक क्रिस गोपालकृष्णन द्वारा उम्र बढ़ने और अल्ज़ाइमर जैसे रोगों के लिये IISc में ब्रेन रिसर्च के लिए मस्तिष्क अनुसंधान केंद्र की स्थापना किये जाने के बाद वर्ष 2017 में इस परियोजना को शुरू करने की दिशा में कदम उठाया गया।
वैज्ञानिक एवं औद्योगिक अनुसंधान परिषद (CSIR) :
- वैज्ञानिक तथा औद्योगिक अनुसंधान परिषद (CSIR) का सबसे बड़ा अनुसंधान एवं विकास संगठन है।
- यह एक स्वायत्त संस्था है तथा भारत के प्रधानमंत्री इसके अध्यक्ष हैं ।
- वैज्ञानिक तथा औद्योगिक अनुसंधान परिषद (CSIR) की स्थापना वर्ष 1942 में हुई और इसका मुख्यालय नई दिल्ली में स्थित है |
राष्ट्रीय समुद्र विज्ञान संस्थान (NIO) :
- राष्ट्रीय समुद्र विज्ञान संस्थान भारत सरकार के वैज्ञानिक एवं औद्योगिक अनुसंधान परिषद (CSIR) की एक प्रयोगशाला है।
- इसकी स्थापना 1 जनवरी, सन् 1966 को हुई थी और इसका मुख्यालय गोवा में स्थित है तथा मुम्बई, कोच्चि एवं विशाखापट्टनम में इसके क्षेत्रीय कार्यालय हैं।
- इसका कार्य उत्तरी हिन्द महासागर के विशिष्ट समुद्र वैज्ञानिक पहलुओं का विस्तृत अध्ययन करना है।
परियोजना का महत्त्व :
- देश में जनसांख्यिकी विविधता और मधुमेह, मानसिक स्वास्थ्य आदि सहित जटिल विकारों वाले रोगों के बोझ को ध्यान में रखते हुए आनुवंशिक आधार की उपलब्धता से किसी रोग की शुरुआत से पहले ही उसकी रोकथाम की जा सकती है।
- भारत के आनुवंशिक परिदृश्य का मानचित्रण अगली पीढ़ी के चिकित्सा, कृषि और जैव-विविधता प्रबंधन के लिये महत्त्वपूर्ण है।
- आधुनिक जीवन-शैली से उत्पन्न बीमारियों जैसे- हृदय संबंधी बीमारियाँ, मधुमेह या अन्य मानसिक स्वास्थ्य मुद्दों के लिये, तकनीकी और कंप्यूटेशनल प्रयासों के साथ अधिक सहयोग किये जाने की आवश्यकता है और जीनोम मैपिंग परियोजना के तहत होने वाली खोजें इस दिशा में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाएँगी।
- यह परियोजना कैंसर से जुड़ी मृत्यु दर को कम करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा सकती है।
- यह परियोजना दुनिया में अपनी तरह की सबसे महत्त्वपूर्ण परियोजना है और इसके माध्यम से आनुवंशिक अध्ययन के क्षेत्र में क्रांति लाई जा सकती है। साथ ही देश की आनुवंशिक विविधता का निर्धारण भी किया जा सकता है।
संभावित चिंताएँ :
- पक्षपात: जीनोटाइप (Genotype) पर आधारित पक्षपात, जीनोम अनुक्रमण का एक संभावित परिणाम है। उदाहरण के लिये, नियोक्ता कर्मचारियों को काम पर रखने से पहले उनकी आनुवंशिक जानकारी प्राप्त कर सकते हैं। यदि कोई कर्मचारी अवांछनीय तरीके से कार्यबल के प्रति आनुवंशिक रूप से अतिसंवेदनशील पाया जाता है तो नियोक्ता द्वारा उसके जीन प्रारूप/जीनोटाइप (Genotype) के साथ पक्षपात किया जा सकता है।
- स्वामित्व और नियंत्रण: गोपनीयता और इससे संबंधित मुद्दों के अलावा आनुवंशिक जानकारी के स्वामित्व और नियंत्रण का प्रश्न अत्यंत महत्त्वपूर्ण है।
- आनुवांशिक डेटा का अनुचित उपयोग: इससे बीमा, रोज़गार, आपराधिक न्याय, शिक्षा, आदि क्षेत्रों में आनुवंशिक डेटा के अनुचित प्रयोग संबंधी चिंताएँ हैं।
निष्कर्ष :
जीनोम मैपिंग परियोजना चिकित्सा, आनुवंशिक विविधता आदि की जानकारी जैसे विभिन्न उद्देश्यों को समाहित किये हुए है, इसलिये इस परियोजना के बेहतर क्रियान्वयन की आवश्यकता है।
इस परियोजना में निहित चिंताओं का समाधान किया जाना भी आवश्यक है।
इस परियोजना में निहित चिंताओं का समाधान किया जाना भी आवश्यक है।
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English translation of this topic below :-
Genome Mapping in the Indian Ocean: Why in Discussion?
Recently, the government has approved an ambitious Genome Mapping Project. Genome mapping of organisms present in the Indian Ocean is planned by Indian scientists. Under this scheme, a dedicated expedition will be carried out in the Indian Ocean from the second week of March to mid-May.
Important Points:
- The government's ambitious Genome Mapping Project is being considered as the first attempt towards determining the genetic diversity of India.
- The estimated cost of this project is about 238 crores.
- The project will involve about 20 institutes including the Indian Institute of Science- IISc and some Indian Institutes of Technology (IITs) based in Bangalore.
- According to Indian scientists associated with the project, the genetic studies conducted so far were based on approximately 95% of white Caucasian samples.
- Council of Scientific and Industrial Research - National Institute of Oceanography (CSIR-NIO) plans to launch a 90-day scientific cruise mission to conduct protective mapping of genome and nutrient within single-cell organisms in the Indian Ocean Is.
- Through this, the research wing of India will be strengthened in cancer treatment and commercial biotechnology mechanisms.
- This will help in the study of ocean response to climate change and protective mapping of nutrients.
- Teams of 30 scientists and researchers will participate in this expedition, including six women.
- This will be a campaign implemented from the second week of March to mid-May (about 90 days).
- In this expedition, a distance of about 9000 nautical miles will be covered.
- In this, samples will be collected for genome mapping of microorganisms from the east coast of India to the western coast of India from the border of Pakistan via Port Louis in Australia, Mauritius to the Indian Ocean.
- It is known that researchers will collect samples from different parts of the sea at an average depth of about 5 km.
- To strengthen India's research in commercial biotechnology applications, samples of water, sediment, marine plants and various organisms will be taken in search of genomes and micronutrients.
- It is known that scientists will be mapping the bacteria, microbes among these elements found in the sea.
- The main reason for mapping is to check the presence of micro elements like iron, zinc, magnesium, cadmium, cobalt in nutrients.
- It is noteworthy that the Indian Ocean is the third largest ocean on Earth (after the Pacific and Atlantic Oceans). The Indian Ocean plays an important role in the regulation of climate and oxygen.
- The project was approved by the Department of Biotechnology-DBT of the Department of Science and Technology at the end of January 2020.
- In the first phase of this project, samples from 10,000 people will be collected from across the country.
- The diversity of India's genetic pool will be mapped based on personalized medicine.
- The Center for Brain Research of IISc which is an autonomous institute will serve as the nodal office of the project and its Director Prof. Vijayalakshmi Rabindranath will be the coordinator of this project.
- The institutions involved in this project will work on various aspects of the project including providing clinical samples and assisting in research, etc. and some IITs will help in new methods of calculation.
- Two new national level science schemes will be launched to create a comprehensive database for this project.
- The move was initiated in 2017, after Infosys co-founder Chris Gopalakrishnan set up the Brain Research Center for Brain Research at IISc for diseases such as aging and Alzheimer's.
Council of Scientific and Industrial Research (CSIR):
- The Council of Scientific and Industrial Research (CSIR) is the largest research and development organization.
- It is an autonomous institution and the Prime Minister of India is its president.
- The Council of Scientific and Industrial Research (CSIR) was established in the year 1942 and its headquarters is located in New Delhi.
National Institute of Oceanography (NIO):
- The National Institute of Oceanography is a laboratory of the Council of Scientific and Industrial Research (CSIR), Government of India.
- It was established on 1 January 1966 and is headquartered in Goa and has regional offices in Mumbai, Kochi and Visakhapatnam.
- Its function is to study the specific oceanographic aspects of the northern Indian Ocean in detail.
Importance of the project:
- Keeping in view the demographic diversity in the country and the burden of diseases with complex disorders including diabetes, mental health etc., the availability of genetic base can be prevented before the onset of a disease.
- Mapping the genetic landscape of India is important for the next generation of medicine, agriculture and biodiversity management.
- For diseases caused by modern lifestyles such as cardiovascular diseases, diabetes or other mental health issues, there is a need to collaborate more with technical and computational efforts and discoveries under the genome mapping project will play an important role in this direction.
- This project can play an important role in reducing the mortality associated with cancer.
- This project is the most important project of its kind in the world and through it revolution can be made in the field of genetic studies. Also the genetic diversity of the country can also be determined.
- Inheritance: Inheritance based on genotype is a possible result of genome sequencing. For example, employers can obtain genetic information of employees before they are hired. If an employee is found to be genetically susceptible to the workforce in an undesirable manner, the employer may be biased with his / her gene format / genotype.
- Ownership and control: Apart from privacy and related issues, the question of ownership and control of genetic information is very important.
Improper use of genetic data:
There are concerns about improper use of genetic data in areas such as insurance, employment, criminal justice, education, etc.
Conclusion:
The genome mapping project encompasses various objectives such as information on medicine, genetic diversity, etc. Therefore, there is a need for better implementation of this project.
The concerns inherent in this project also need to be resolved.
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