ओडिशा मंदिर स्थापत्य कला : विशेष
चर्चा में क्यों?
- केंद्रीय संस्कृति मंत्रालय ने ओडिशा के दो प्रमुख मंदिरों- 11 वीं शताब्दी के भुवनेश्वर स्थित लिंगराज मंदिर और 12 वीं शताब्दी के पुरी स्थित श्री जगन्नाथ मंदिर के आसपास ओडिशा सरकार की विकास गतिविधियों को विनियमित करने के लिए कदम उठाया है।
पृष्ठभूमि :
- ओडिशा के मुख्यमंत्री, श्री नवीन पटनायक ने राज्य भर में मंदिरों के पुनर्विकास के लिए महत्वाकांक्षी योजना की घोषणा की थी।
- इस योजना के तहत जगन्नाथ मंदिर से जुड़े परिसर और अन्य प्रमुख बुनियादी ढांचों के विकास के लिए 3,500 करोड़ और लिंगराज मंदिर के सौंदर्यीकरण और बुनियादी ढांचे के विकास के लिए 700 करोड़ के निवेश की परिकल्पना की गई थी।
- केंद्रीय संस्कृति मंत्रालय के अंतर्गत आने वाले राष्ट्रीय स्मारक प्राधिकरण ने विरासत क्षेत्र के नियमों के अनुरूप न होने के कारण श्री जगन्नाथ मंदिर के पुनर्निर्माण को प्रतिबंधित करने का प्रस्ताव किया है।
- इसी तरह, भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण की एक उच्च स्तरीय टीम ने हाल ही में लिंगराज मंदिर के आसपास के क्षेत्र का निरीक्षण किया और पाया कि राज्य सरकार द्वारा सौंदर्यीकरण अभियान में एएसआई की सहमति के बिना ही कई प्राचीन स्मारकों को कथित रूप से चपटा किया गया था।
मंदिर स्थापत्य की ओडिशा शैली :
- ओडिशा के मंदिर शुद्ध नागर शैली का प्रतिनिधित्व करते हैं। ओडिशा में कलिंग साम्राज्य के समय में नागर शैली के अन्तर्गत ही ओडिशा मंदिर स्थापत्य शैली का विकास हुआ, जिसमें अनेक विशेषताएँ देखने को मिलती हैं, जैसे-
- ओडिशा के मंदिर मुख्यत: भुवनेश्वर, पुरी और कोणार्क में स्थित हैं।
- ओडिशा वास्तुकला की अपनी पहचान में देउल (गर्भगृह के ऊपर उठता हुआ विमान तल), जगमोहन (गर्भगृह के बगल का विशाल हॉल), नटमंडप (जगमोहन के बगल में नृत्य के लिये हॉल), भोगमंडप, परकोटा तथा ग्रेनाइट पत्थर का इस्तेमाल शामिल है।
- भुवनेश्वर का लिंगराज मंदिर, पुरी का जगन्नाथ मंदिर, कोणार्क का सूर्य मंदिर इस शैली के श्रेष्ठ उदाहरण हैं।
- सूर्य मंदिर (कोणार्क) का निर्माण गंग वंश के शासक नरसिंह देव प्रथम ने किया था।
- कोणार्क के सूर्य मंदिर को यूनेस्को की विश्व विरासत सूची में भी शामिल किया गया है।
- कोणार्क के ब्लैक पैगोडा (सूर्य मंदिर) के अतिरिक्त उत्तराखंड के अल्मोड़ा में कटारमल सूर्य मंदिर है।
- लिंगराज मंदिर ओडिशा मंदिर स्थापत्य की संपूर्ण विशेषताओं का सर्वोत्तम उदाहरण है।
ओडिशा शैली के प्रमुख मंदिर :
1. लिंगराज मंदिर :
- सातवीं से तेरहवीं शताब्दी के बीच बनाए गए प्रमुख मंदिरों में ओडिशा के भुवनेश्वर ज़िले में स्थित लिंगराज मंदिर पूर्ण विकसित नागर शैली का सर्वोत्तम उदाहरण है।
- इसका प्रमुख भाग गर्भगृह है जिसे देवुल कहते हैं। उससे जुड़ा दूसरा भाग जगमोहन है जो एक प्रकार का मंडप है।
- जगमोहन की छत पिरामिड के आकार की है। जगमोहन के सामने ही नृत्य मंडप और भोगमंडप हैं।
- लिंगराज मंदिर में यह सभी भाग एक ही धुरी पर पूर्व से पश्चिम की ओर फैले हुए हैं।
- सबसे आकर्षक भाग लिंगराज मंदिर का शिखर है। इसकी उंचाई 160 फुट है। शिखर पर आमलक और कलश है।
2. पुरी का जगन्नाथ मंदिर :
- पुरी का जगन्नाथ मंदिर भी लिंगराज मंदिर शैली में ही बना है। यह आकार में काफी विशाल है किन्तु इसमें लिंगराज मंदिर के समान संतुलन तथा गरिमा नहीं है।
3. भुवनेश्वर का वैताल देउल मंदिर :
- भुवनेश्वर का वैताल देउल मंदिर आठवीं शताब्दीं ईसवी में बना शत्तिफ़ पंथ का ढोलाकार आकृति वाला मंदिर है।
- मंदिर का अग्रभाग या बाहरी हिस्सा पट्टी जैसी आकृतियों द्वारा विभाजित है जो ढोलाकार छत से धरातल तक जाता है।
- ये पट्टियाँ थोड़ा सा बाहर की ओर निकली हुई हैं और इनमें बने आलों में मूर्तियां रखी हुई हैं।
- वास्तविक ढोलाकार छत अत्यंत अलंकृत और क्रमानुसार होते हुए एक-दूसरे के ऊपर रखे ढांचों पर टिकी हुई है। ढोलाकार छत प्राचीन झोपड़ी की छप्पर वाली छत की पत्थर पर अनुकृति है। छप्पर की यह छत अत्यंत प्राचीन काल से लेकर वर्तमान समय में भी बंगाल और पूर्वी क्षेत्रें में देखी जा सकती है।
4. राजरानी मंदिर :
- राजा रानी मंदिर भुवनेश्वर में स्थित है। राजारानी मंदिर को कलिंग वास्तुकला शैली में 11वीं शताब्दी में बनवाया गया था।
- इस मंदिर में शिव और पार्वती की भव्य मूर्ति स्थापित है। यह माना जाता है कि राजारानी मंदिर एक खास प्रकार के लाल और पीले पत्थर से बना है। जिसे राजारानी पत्थर कहा जाता है। इसी कारण इस मंदिर का नाम राजा-रानी मंदिर पड़ा।
- इस मंदिर की दीवारों पर सुंदर कलाकृतियाँ बनी हुई हैं। मंदिर की नक्काशीदार कामुक मूर्तियाँ मध्य प्रदेश स्थित खजुराहो मंदिर की कलाकृतियों की याद दिलाती हैं।
5. परशुरामेश्वर मंदिर :
- भुवनेश्वर में स्थित 7वीं शताब्दी का परशुरामेश्वर मंदिर ओडिशा के महत्वपूर्ण मंदिरों में से एक है। जिसके आधार और गर्भ गृह के ऊपर भारी शिखर और नीची सपाट छत वाला मंडप सुंदर नर्तक और नर्तकियों तथा वाद्यकारों की मूर्तियों से अलंकृत है जो धीरे-धीरे एक अत्यंत ऊँची और विशाल इमारत में परिवर्तित हो जाता है जिसे मूर्तियों से सजाया गया है।
6. ब्रह्मेश्वर मंदिर :
- ओडिशा के भुवनेश्वर में स्थित ब्रह्मेश्वर मंदिर एक पंचायतन मंदिर है जिसके निर्माण का काल निर्धारण एक शिलालेख द्वारा सन् 1060 ईसवी में किया जा सकता है।
- इस मंदिर में केंद्रीय पूजा स्थल के इर्द-गिर्द अहाते के चार कोनों में चार छोटे पूजा-स्थल हैं। हालांकि यह एक अत्यंत सुंदर पूजा-स्थल है, लेकिन इसका शिखर अचानक ही आमलक के नीचे मुड़ा हुआ प्रतीत होता है।
- ब्रह्मेश्व मंदिर के जगमोहन की छत काफी भारी और पिरामिडी आकार की है।
7. कोणार्क का सूर्य मंदिर :
- ओडिशा की कलात्मक और स्थापत्य प्रतिभा की भव्यतम् उपलब्धि कोणार्क का सूर्य मंदिर है, जिसका निर्माण पूर्व गंग शासक नरसिंह वर्मन ने सन् 1250 ईसवी में करवाया था।
- इस विशाल और भव्य मंदिर की परिकल्पना एक विशाल रथ के रूप में की गई थी, जिसके 12 जोड़ी सजावटी पहिये हैं जिसे सात घोड़े खींच रहे हैं ये अपने पिछले पैरों पर खड़े हैं।
- इस विशाल मंदिर में मूलतः एक गर्भ-गृह है जिसके ऊपर एक वक्ररेखी शिखर है, एक जगमोहन और नृत्य कक्ष हैं जो कि समान धुरी पर बने हैं और तीन प्रवेशद्वार वाली एक विशाल अहाते की दीवार है।
- गर्भ-गृह और जगमोहन एक साथ एक विशाल चबूतरे पर खड़े हैं जो कि हाथियों, अलंकरण आभूषणों के बीच बनी मूर्तियों जिनमें से कुछ अत्यंत कामुक हैं, की चित्रवल्लरी से अलंकृत हैं।
- जगमोहन की विशालकाय छत, जिस पर समतल पंक्तियाँ तीन चरणों में विभक्त हैं, और आकर्षक मानवाकार स्त्री आकृतियां, नर्तक, करताल बजाते लोग व अन्य, प्रत्येक चरण को अलंकृत कर रहे हैं।
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