क्या है ऑक्सीजन थेरेपी
क्या होता है ऑक्सीजन थेरेपी?
कोविड-19 के एक लक्षणों में सांस लेने में दुश्वारी का पेश आना है। लक्षण जब बढ़कर गंभीर हो जाते हैं, तो मरीज को सांस लेने में मुश्किल आने लगती है, उसे हाइपोक्सिया यानी शरीर में ऑक्सीजन की कमी का सामना करना पड़ता है। थेरेपी के जरिए मरीज के शरीर में ब्लड के ऑक्सीजन का लेवल बढ़ाया जाता है, जिससे मरीज को राहत पहुंचती है।
इस तरह ऑक्सीजन थेरेपी इलाज का एक तरीका है, जिसमें मरीजों को जब सांस लेने में मुश्किल होने लगती है तो उन्हें अतिरिक्त (पूरक) ऑक्सीजन दिया जाता है। जब कोई बीमार मरीज खुद से सांस के जरिए सही तरीके से ऑक्सीजन नहीं ले पाता है तो उन्हें ये थेरेपी दी जाती है। कोविड-19 के मरीज जिनमें बीमारी के गंभीर लक्षण हो जाते हैं, जिन्हें सांस लेने में मुश्किल होने लगती है, हाइपोक्सिया यानी शरीर में ऑक्सीजन की कमी होने लगती है, ऐसे मरीजों को भी ऑक्सीजन थेरेपी दी जाती है। इस थेरेपी की मदद से मरीज के शरीर में ब्लड ऑक्सीजन का लेवल बढ़ने लगता है और मरीज को बेहतर महसूस होता है।
लेकिन बढ़ते कोरोना मरीज और अव्यवस्था के चलते देश में ऑक्सीजन संकट पैदा हो गया है। इसी को देखते हुए केंद्र सरकार ने कोरोना के लिए जरूरी मेडिकल उपकरणों की जांच और सप्लाई के लिए एक ग्रुप बनाया है। Empowered Group-2 नाम का ये समूह ऑक्सीजन की कमी से जूझ रहे 12 राज्यों पर खास ध्यान दे रहा है, जो कोरोना संक्रमण की सबसे ज्यादा मार झेल रहे हैं। ये राज्य हैं- महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, गुजरात, राजस्थान, कर्नाटक, उत्तर प्रदेश, दिल्ली, छत्तीसगढ़, केरल, तमिलनाडु, पंजाब और हरियाणा। बता दें कि चिकित्सा के अलावा कई दूसरे उद्योगों को भी लगातार ऑक्सीजन की जरूरत होती है। हालांकि, गहराते संकट के बीच इस कमेटी ने बहुत से उद्योगों के लिए फिलहाल इसकी आपूर्ति रोकने का फैसला लिया है। आज यानी 22 अप्रैल से ज्यादातर उद्योगों को ऑक्सीजन की आपूर्ति नहीं होगी। केवल कुछ ही उद्योगों को इससे छूट मिली है। ये कदम इसलिए उठाया गया है ताकि जितनी ऑक्सीजन बने, सारी ही मेडिकल जरूरत में लगाई जा सके।
अब एक नजर ऑक्सीजन उत्पादन और इसकी आपूर्ति से जुड़ी बातों पर डाल लेते हैं। देश रोजाना 7,000 मीट्रिक टन ऑक्सीजन बना सकता है। इनमें सबसे बड़ी कंपनी आईनॉक्स (Inox) रोज 2000 टन ऑक्सीजन बना लेती है। ऑक्सीजन बनाने वाली कंपनियां लिक्विड ऑक्सीजन बनाती हैं, जिसकी शुद्धता 99.5% होती है। इसे विशाल टैंकरों में जमा किया जाता है, जहां से वे अलग टैंकरों में एक खास तापमान पर डिस्ट्रीब्यूटरों तक पहुंचते हैं। डिस्ट्रिब्यूटर के स्तर पर तरल ऑक्सीजन को गैस के रूप में बदला जाता है और सिलेंडर में भरा जाता है, जो सीधे मरीजों के काम आते हैं।
मुश्किल यह है, कि हमारे यहां पर्याप्त संख्या में क्रायोजेनिक टैंकर नहीं हैं, यानी वे टैंकर जिनमें कम तापमान पर तरल ऑक्सीजन स्टोर होती है। इसके अलावा मेडिकल ऑक्सीजन को नियत जगह तक पहुंचाने के लिए सड़क व्यवस्था भी उतनी दुरुस्त नहीं। ऐसे में छोटी जगहों, जहां ऑक्सीजन के स्टोरेज की व्यवस्था नहीं है, वहां मरीजों को ऑक्सीजन की कमी होने पर जीवन का संकट बढ़ जाता है, क्योंकि ऑक्सीजन पहुंचने में समय लगता है। हालांकि महामारी के दौरान औद्योगिक ऑक्सीजन बनाने वाली कई कंपनियों को मेडिकल ऑक्सीजन बनाने की मंजूरी दी गई है। उम्मीद है कि यह कदम थोड़ी मददगार साबित होगी। लेकिन सबसे जरूरी बात यह है कि हमें कोरोना को लेकर जरा सी भी लापरवाही नहीं बरतनी चाहिए। इसके लिए जो भी जरूरी प्रोटोकोल हैं उनका हमें जरूर पालन करना चाहिए।
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