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जोतीराव गोविंदराव फुले (Jyotirao Phule) : जयंती विशेष

 जोतीराव गोविंदराव फुले (Jyotirao Phule) : जयंती विशेष

प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी ने महान समाज सुधारक, चिंतक, दार्शनिक एवं लेखक महात्मा ज्योतिबा फुले को उनकी जयंती पर श्रद्धांजलि दी है।
प्रधानमंत्री ने कहा कि महात्मा ज्योतिबा फुले जीवन भर महिलाओं की शिक्षा और उनके सशक्तिकरण के लिए कृतसंकल्प रहे। सामाजिक सुधारों के लिए उनका समर्पण और निष्ठा आने वाली पीढ़ियों के लिए प्रेरणा का स्रोत बनेगा।
जोतीराव गोविंदराव फुले (Jyotirao Phule) : जयंती विशेष

महात्मा जोतीराव गोविंदराव फुले :

महात्मा जोतिराव गोविंदराव फुले (11 अप्रैल 1827 - 28 नवम्बर 1890) एक भारतीय समाजसुधारक, समाज प्रबोधक, विचारक, समाजसेवी, लेखक, दार्शनिक तथा क्रान्तिकारी कार्यकर्ता थे। इन्हें महात्मा फुले एवं ''जोतिबा फुले" के नाम से भी जाना जाता है। सितम्बर, 1873 में इन्होने महाराष्ट्र में सत्य शोधक समाज नामक संस्था का गठन किया। महिलाओं  दलितों के उत्थान के लिय इन्होंने अनेक कार्य किए। समाज के सभी वर्गो को शिक्षा प्रदान करने के ये प्रबल समथर्क थे। वे भारतीय समाज में प्रचलित जाति पर आधारित विभाजन और भेदभाव के विरुद्ध थे।
  • महात्मा ज्योतिबा फुले का जन्म 11 अप्रैल, 1827 को महाराष्ट्र के सातारा जिले में हुआ था। उनके पिता का नाम गोविंदराव फुले और माता का नाम चिमणा बाई था। महात्मा ज्योतिबा फुले का विवाह सावित्रीबाई फुले से हुआ था।
  • महात्मा ज्योतिबा फुले, अग्रणी पंक्ति के समाज सुधारकों के रूप में जाने जाते हैं जिन्होंने अपना जीवन निम्न जाति, महिलाओं और दलितों के उत्थान हेतु समर्पित कर दिया। एक समाज सुधारक होने के साथ-साथ ज्योतिबा फुले लेखक, दार्शनिक और संपादक के रूप में भी उतनी ही ख्याति प्राप्त की थी।
  • तात्कालिक समाज में सामाजिक भेदभाव अपने चरम पर था, एवं समाज के हाशिए पर रहने वाली निम्न जातियों के लोगों का उच्च जाति के लोगों के द्वारा उत्पीड़न किया जाता था। महात्मा ज्योतिराव फुले भी इस सामाजिक भेदभाव एवं उत्पीड़न का शिकार हुए। इसके उपरांत उन्होंने सामाजिक असमानता को उखाड़ फेंकने का निश्चय किया।
  • महात्मा ज्योतिबा फुले ने दलितों के उत्थान और सामाजिक बराबरी का दर्जा दिलाने की दिशा में कार्य करना प्रारंभ किया। उन्होंने दलितों और महिलाओं के अंधविश्वासों के कारण उत्पन्न उनकी सामाजिक और आर्थिक विकलांगता को भी दूर करने का प्रयास किया। उनका मानना था कि यदि आजादी, समानता, मानवता, आर्थिक न्याय, शोषणरहित मूल्यों और भाईचारे पर आधारित सामाजिक व्यवस्था का निर्माण करना है, तो असमान और शोषक समाज को उखाड़ फेंकना होगा।
  • उनके इस सामाजिक आंदोलन में ज्योतिबा फुले की पत्नी सावित्रीबाई फुले ने भी उतना ही योगदान दिया। यद्यपि वह पढ़ी-लिखी नहीं थी, लेकिन ज्योतिराव फुले ने स्वयं उनकी शिक्षा का प्रबंध करवाया। इसके उपरांत उन्होंने भारत में लड़कियों के लिए समर्पित पहला विद्यालय खोला । इसके साथ ही उन्होंने कई विद्यालय की स्थापना की एवं इनका दरवाजा निम्न जाति की लड़कियों के लिए भी खोल दिया गया। इसके साथ ही विधवाओं की निम्न दशा को देखते हुए उन्होंने विधवाओं के लिए आश्रम का निर्माण कराने के साथ-साथ विधवा पुनर्विवाह की व्यवस्था भी की गई। कन्याओं की हत्या रोकने के लिए उन्होंने नवजात शिशु के लिए एक बाल आश्रम भी बनाया।
  • भारतीय सामाजिक पुनर्जागरण को नई दिशा देने वाले इस महापुरुष का निधन 28 नवंबर, 1890 को हो गया था।
  • डा. भीमराव अंबेडकर, महात्मा ज्योतिराव फुले के विचारों से काफी प्रभावित थे।

कार्यक्षेत्र :

ज्योतिबा फुले ने विधवाओं और महिलाओं के कल्याण के लिए बहुत काम किया, इसके साथ ही किसानों की हालत सुधारने और उनके कल्याण के लिए भी काफी प्रयास किये। स्त्रियों की दशा सुधारने और उनकी शिक्षा के लिए फुले ने 1848 में एक स्कूल खोला। यह इस काम के लिए देश में पहला विद्यालय था। लड़कियों को पढ़ाने के लिए अध्यापिका नहीं मिली तो उन्होंने कुछ दिन स्वयं यह काम करके अपनी पत्नी सावित्री फुले को इस योग्य बना दिया। उच्च वर्ग के लोगों ने आरम्भ से ही उनके काम में बाधा डालने की चेष्टा की, किंतु जब फुले आगे बढ़ते ही गए तो उनके पिता पर दबाब डालकर पति-पत्नी को घर से निकालवा दिया इससे कुछ समय के लिए उनका काम रुका अवश्य, पर शीघ्र ही उन्होंने एक के बाद एक बालिकाओं के तीन स्कूल खोल दिए।

सत्यशोधक समाज :

जोतीराव गोविंदराव फुले (Jyotirao Phule) : जयंती विशेष

  • सामाजिक उत्थान की दिशा में काम करते हुए, ज्योतिबा ने 24 सितंबर, 1873 को अपने अनुयायियों के साथ 'सत्यशोधक समाज' नामक संस्था की स्थापना की थी। इस संस्था का मुख्य उद्देश्य - शूद्रों और अति शूद्रों को उच्च जातियों के शोषण से मुक्त कराना था, तथा उन्हें समाज में बराबरी का दर्जा दिलाना था।
  • इनकी संस्था ने शैक्षणिक और धार्मिक नेताओं पर ब्राह्मणवाद के एकाधिकार को चुनौती देते हुए ब्राह्मण वर्ग की सर्वोच्चता को नजरअंदाज कर दिया।

वेदों व मूर्ति पूजा की आलोचना :

महात्मा ज्योतिबा फुले ने वेदों को ईश्वर रचित और पवित्र मानने से इंकार कर दिया एवं तर्क दिया कि यदि ईश्वर एक है और उसी ने सब मनुष्यों को बनाया है, तो उसने केवल संस्कृत भाषा में ही वेदों की रचना क्यों की। उन्होंने वेदों की तुलना ब्राह्मणों के स्वार्थ को पूर्ण करने वाली पुस्तकों से की। उन्होंने मूर्ति पूजा का विरोध किया एवं समाज में प्रचलित चतुर्वर्ण जाति व्यवस्था को मानने से इंकार कर दिया।

महात्‍मा की उपाधि :

निर्धन तथा निर्बल वर्ग को न्याय दिलाने के लिए ज्योतिबा ने 'सत्यशोधक समाज' 1873  मे स्थापित किया। उनकी समाजसेवा देखकर 1888 ई. में मुंबई की एक विशाल सभा में उन्हें 'महात्मा' की उपाधि दी। ज्योतिबा ने ब्राह्मण-पुरोहित के बिना ही विवाह-संस्कार आरम्भ कराया और इसे मुंबई उच्च न्यायालय से भी मान्यता मिली। वे बाल-विवाह विरोधी और विधवा-विवाह के समर्थक थे।

  • ब्रिटिश सरकार द्वारा उपाधि :1883 में स्रीयो को शिक्षा प्रदान कराने के महान कार्य के लिए उन्हें तत्कालीन ब्रिटिश भारत सरकार द्वारा "स्त्री शिक्षण के आद्यजनक" कहकर गौरव किया।

जोतीराव गोविंदराव फुले (Jyotirao Phule) : जयंती विशेष

महात्मा ज्योतिबा फुले की रचनाएँ :

  • महात्मा ज्योतिबा फुले ने ना केवल सामाजिक विभाजन एवं स्त्री की दशा को सुधारने में काम किया बल्कि उन्होंने कई पुस्तकें भी लिखी। उनकी पुस्तकों में 'तृतीय रत्न', 'ब्रह्माणंचे कसाब', 'इशारा', 'पोवाडा−छत्रपति शिवाजी भोंसले यांचा', अस्पृश्यांची कैफि़यत' इत्यादि प्रमुख हैं।
  • ज्योतिबा फुले की सबसे चर्चित पुस्तक - गुलामगिरी है, जो 1873 ई. में प्रकाशित हुई थी।
  • महात्मा ज्योतिबा व उनके संगठन के संघर्ष के कारण सरकार ने ‘एग्रीकल्चर एक्ट’ पास किया। धर्म, समाज और परम्पराओं के सत्य को सामने लाने हेतु उन्होंने अनेक पुस्तकें भी लिखी। 

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